परिचय:
अरस्तू (Aristotle) यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक थे, जिन्होंने प्लेटो के शिष्य के रूप में शिक्षा ग्रहण की और स्वयं दर्शन, तर्कशास्त्र, विज्ञान, राजनीति, नैतिकता आदि क्षेत्रों में मूलभूत योगदान दिया। प्लेटो ने जहाँ ‘रूपों की दुनिया’ पर ज़ोर दिया, वहीं अरस्तू ने इस भौतिक संसार को ही यथार्थ माना।
अरस्तू का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है – “कार्य-कारण संबंध की धारणा” (Theory of Causation), जिसके माध्यम से उन्होंने यह समझाने का प्रयास किया कि कोई भी वस्तु या घटना क्यों और कैसे अस्तित्व में आती है।
अरस्तू के अनुसार, जब तक किसी वस्तु के चार प्रकार के कारणों को नहीं समझा जाए, तब तक उस वस्तु का पूर्ण ज्ञान संभव नहीं है।
अरस्तू की कार्य-कारण संबंधी धारणा:
अरस्तू का मानना था कि संसार में घटने वाली हर चीज़ का कोई-न-कोई कारण होता है। किसी भी वस्तु या प्रक्रिया को समझने के लिए हमें उसके पीछे काम कर रहे कारणों को जानना ज़रूरी है। उन्होंने चार कारणों (Four Causes) की अवधारणा दी:
1. भौतिक कारण (Material Cause):
यह वह पदार्थ या सामग्री होती है जिससे कोई वस्तु बनी होती है।
उदाहरण:
- एक मूर्ति पत्थर से बनी होती है, तो पत्थर उसका भौतिक कारण है।
- एक कुर्सी लकड़ी से बनी होती है, तो लकड़ी उसका भौतिक कारण है।
व्याख्या:
भौतिक कारण वस्तु का सांसारिक आधार होता है। यह यह दर्शाता है कि वस्तु का भौतिक रूप कहाँ से आया, उसका मूल क्या है।
2. औपचारिक कारण (Formal Cause):
यह वह रूप, योजना या संरचना होती है, जो उस वस्तु को उसकी पहचान देती है।
उदाहरण:
- मूर्ति का आकार, चेहरा, भंगिमा आदि उसका औपचारिक कारण है।
- एक घर की डिज़ाइन या योजना उसका औपचारिक कारण है।
व्याख्या:
औपचारिक कारण बताता है कि कोई वस्तु अपने स्वरूप में कैसी है। यह उस वस्तु की पहचान का आधार होता है। इसका संबंध रूप और संरचना से है।
3. प्रेरक कारण (Efficient Cause):
(यह उत्तर में दिया जाने वाला पहला कारण है)
यह वह शक्ति, व्यक्ति या प्रक्रिया होती है, जो किसी वस्तु या घटना को अस्तित्व में लाती है। इसे ही मुख्य क्रियाशील कारण कहा जाता है।
उदाहरण:
- मूर्ति को गढ़ने वाला मूर्तिकार उसका प्रेरक कारण है।
- मकान बनाने वाला राजमिस्त्री मकान का प्रेरक कारण है।
व्याख्या:
अरस्तू के अनुसार, जब तक हम यह नहीं समझते कि वस्तु को किसने बनाया या किस प्रक्रिया से बनाई गई, तब तक उसका पूरा ज्ञान नहीं हो सकता।
प्रेरक कारण वह होता है जो निर्माण की प्रक्रिया की शुरुआत करता है।
4. अंतिम कारण (Final Cause):
(यह उत्तर में दिया जाने वाला दूसरा कारण है)
यह किसी वस्तु या कार्य का उद्देश्य या कारण-प्रधान लक्ष्य होता है।
अरस्तू के अनुसार, कोई भी वस्तु केवल इसलिए अस्तित्व में नहीं आती कि उसे बनाया गया, बल्कि इसलिए आती है कि उसका कोई विशेष उद्देश्य होता है।
उदाहरण:
- एक मूर्ति को पूजने के लिए बनाया गया है – तो पूजा उसका अंतिम कारण है।
- एक कुर्सी बैठने के लिए बनाई गई है – तो आराम उसका अंतिम कारण है।
व्याख्या:
अंतिम कारण, जिसे अरस्तू “टेलोस (Telos)” कहते हैं, किसी वस्तु की प्राकृतिक पूर्णता को दर्शाता है।
यह बताता है कि वस्तु का अस्तित्व किस लक्ष्य की पूर्ति के लिए हुआ है।
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