संस्कृत साहित्य के महाकवि भवभूति द्वारा रचित ‘उत्तररामचरित’ संस्कृत नाट्य साहित्य में एक उत्कृष्ट स्थान रखता है। यह नाटक त्रिस्तरीय नाट्यरचना का अनुपम उदाहरण है, जिसमें करुण रस की प्रधानता है। भवभूति ने इस नाटक में भगवान राम के जीवन के उत्तरकाल का वर्णन किया है, जो उनके जीवन के सबसे मार्मिक और संवेदनशील पक्ष को उजागर करता है।
कथावस्तु का परिचय
‘उत्तररामचरित’ की कथा महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के उत्तरकांड पर आधारित है। इसमें सीता के निर्वासन, राम की मानसिक पीड़ा, और दोनों के पुनर्मिलन की कथा को चित्रित किया गया है। नाटक सात अंकों में विभाजित है, जिसमें:
- सीता का वन में त्याग,
- वाल्मीकि के आश्रम में उनके जीवन का वर्णन,
- राम का विरह, और
- अंततः लव-कुश के माध्यम से राम और सीता के पुनर्मिलन की कथा को प्रस्तुत किया गया है।
भवभूति की दृष्टि और रचना शैली
भवभूति ने इस नाटक में राम और सीता के चरित्रों को मानवीय और दार्शनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। उन्होंने राम को केवल एक आदर्श राजा के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है जो अपने कर्तव्यों और भावनाओं के संघर्ष से जूझता है।
1. करुण रस की प्रधानता
‘उत्तररामचरित’ करुण रस का उत्कृष्ट उदाहरण है। राम और सीता के विरह, राम की आत्मग्लानि, और सीता का त्याग दर्शकों के हृदय को गहराई से स्पर्श करता है।
2. चरित्रों की गहराई
भवभूति ने राम, सीता, और अन्य पात्रों के मनोभावों को अत्यंत संवेदनशीलता और गहराई से प्रस्तुत किया है। सीता के त्याग और धैर्य, राम की पीड़ा और प्रेम, और वाल्मीकि की दार्शनिकता को अद्भुत रूप से चित्रित किया गया है।
3. भाषा और शैली
‘उत्तररामचरित’ की भाषा अत्यंत काव्यात्मक और प्रभावशाली है। भवभूति ने संस्कृत के आलंकारिक शब्दों, गहन विचारों और उपमाओं का कुशलता से प्रयोग किया है।
4. संवादों की दार्शनिकता
इस नाटक के संवाद गहरे दार्शनिक और मानवीय विचारों से परिपूर्ण हैं। राम और सीता के संवादों में जीवन, प्रेम, और कर्तव्य के गहन प्रश्नों का उत्तर मिलता है।
नाटक की प्रमुख विशेषताएँ
1. सामाजिक और नैतिक आदर्श
भवभूति ने नाटक में राम और सीता के माध्यम से सामाजिक और नैतिक आदर्शों को प्रस्तुत किया है। राम का कर्तव्यपरायणता और सीता का त्याग भारतीय संस्कृति के मूल्यों को दर्शाते हैं।
2. प्रकृति चित्रण
नाटक में प्रकृति का सजीव वर्णन मिलता है। वाल्मीकि के आश्रम का चित्रण, वन की शांति, और वातावरण की सजीवता कथा में गहराई जोड़ती है।
3. स्त्री का सम्मान
सीता के चरित्र को भवभूति ने अत्यंत गरिमा और सम्मान के साथ प्रस्तुत किया है। उन्होंने सीता के धैर्य, त्याग, और मातृत्व को एक आदर्श रूप में दिखाया है।
उत्तररामचरित का स्थान और महत्व
‘उत्तररामचरित’ भवभूति की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है। यह नाटक साहित्य, दर्शन, और मानवीय संवेदनाओं का ऐसा संगम है, जो इसे संस्कृत नाट्य साहित्य में अद्वितीय बनाता है। भवभूति ने इस नाटक के माध्यम से यह संदेश दिया है कि प्रेम और कर्तव्य के बीच संघर्ष में प्रेम की विजय होती है।
निष्कर्ष
‘उत्तररामचरित’ केवल एक नाटक नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं और आदर्शों का दर्पण है। भवभूति ने इस नाटक के माध्यम से रामायण की कथा को नई दृष्टि और गहराई प्रदान की है। इसकी संवेदनशीलता, दार्शनिकता, और करुण रस इसे संस्कृत साहित्य की अमूल्य धरोहर बनाते हैं।
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