उपमा कालिदासस्य’ पर टिप्पणी कीजिए।

‘उपमा कालिदासस्य’ एक प्रसिद्ध संस्कृत कहावत है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – “उपमा की बात आए तो कालिदास ही याद आते हैं।” यह कथन कालिदास की उपमा शक्ति यानी उपमाओं (सादृश्य अलंकार) के प्रयोग की उत्कृष्टता को दर्शाता है। संस्कृत साहित्य में उपमा अलंकार बहुत ही लोकप्रिय और प्रभावशाली अलंकार माना गया है, और इसमें कालिदास का स्थान सबसे ऊपर रखा गया है।

कालिदास की रचनाओं में उपमाएं केवल सजावट नहीं हैं, वे भाव की गहराई को स्पष्ट करने और चित्रों को मन के सामने जीवंत करने का माध्यम बनती हैं। उन्होंने प्राकृतिक दृश्यों, ऋतुओं, मानव भावनाओं, स्त्री-सौंदर्य और प्रेम की कोमल भावनाओं को उपमाओं के माध्यम से अत्यंत प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया है।

उनकी काव्यशैली में उपमाएं इतनी सहज, स्वाभाविक और सटीक होती हैं कि पाठक या श्रोता को भाव समझने में कोई कठिनाई नहीं होती। वे जैसे प्रकृति और भावना को एक सूत्र में बांध देते हैं। उदाहरण के रूप में जब वह मेघदूतम् में यक्ष द्वारा अपनी प्रेयसी के वर्णन में कहते हैं:

“कान्तारोऽयं मधुरवचनैः स्निग्धया दृष्ट्या…”
यहाँ उपमाओं का प्रयोग केवल नायिका की सुंदरता को बताने के लिए नहीं, बल्कि प्रेमी के विरह की पीड़ा और प्रेम की कोमलता को उभारने के लिए किया गया है।

कालिदास की एक अन्य प्रसिद्ध उपमा ‘मुखं चन्द्र इवापगतमलम्’ है, जिसमें नायिका के मुख की तुलना चंद्रमा से की गई है – लेकिन यह तुलना केवल रूप-सौंदर्य की नहीं, बल्कि शांति, शीतलता और सौम्यता की भी प्रतीक है।

अभिज्ञान शाकुंतलम् में भी उपमाओं का सुंदर प्रयोग मिलता है। जैसे ऋतुओं का वर्णन करते हुए कालिदास ने वसंत को प्रेम का सहायक ऋतु कहा है। उन्होंने शृंगार रस को अत्यंत कोमल और मधुर उपमाओं से सजाया है।

उनकी उपमाएं केवल दृश्यात्मक नहीं हैं, वे भावात्मक, सांस्कृतिक और दार्शनिक भी होती हैं। जैसे उन्होंने मेघ को केवल जल देने वाला नहीं, बल्कि विरह में डूबे यक्ष का संदेशवाहक, सखा, और भावनाओं का माध्यम बना दिया।

कालिदास की उपमाओं में एक विशेष गुण यह भी है कि वे कभी भी बोझिल या कृत्रिम नहीं लगतीं। वे प्राकृतिक रूप से भाव के साथ बहती हैं, और पाठक को ऐसा प्रतीत होता है जैसे वही उपमा सबसे उपयुक्त थी। यही कारण है कि संस्कृत के विद्वानों ने कहा –
“उपमा कालिदासस्य, भारवेरर्थगौरवम्” – अर्थात उपमा की श्रेष्ठता कालिदास में है, तो अर्थ की गंभीरता भारवि में।

कालिदास की उपमा शक्ति केवल संस्कृत साहित्य तक सीमित नहीं रही, बल्कि हिंदी, मराठी, बंगाली, तमिल सहित अनेक भाषाओं के कवियों ने उनसे प्रेरणा ली है। उनकी उपमाएं न केवल कल्पनाशील हैं, बल्कि संवेदना और सौंदर्य का अद्भुत संतुलन भी प्रस्तुत करती हैं।

इसलिए ‘उपमा कालिदासस्य’ कहावत केवल एक प्रशंसा नहीं, बल्कि एक साहित्यिक सत्य के रूप में स्वीकार की गई है।

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