परिचय
रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित ‘उर्वशी‘ एक कालजयी काव्यकृति है, जो प्रेम, आत्मा, कामना और आदर्श के गहरे द्वंद्व को प्रस्तुत करती है। यह रचना प्रेम की उच्चतम भावनाओं के साथ-साथ मानव और देवत्व के बीच की खाई को भी उजागर करती है। ‘उर्वशी’ का नायक पुरुरवा है — जो एक मानवीय राजा है और स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी से प्रेम करता है। यह नायक प्रेम का प्रतीक भी है और संघर्षशील आत्मा का प्रतिनिधि भी। उसका व्यक्तित्व जटिल है, जिसमें मोह, विरह, आत्मचिंतन और आत्मोन्नति के भाव एक साथ मिलते हैं।
नायक की भूमिका और विशेषताएँ
‘उर्वशी’ का नायक पुरुरवा एक ऐसा मानव है जो स्वर्ग की अनुपम सुंदरी उर्वशी से प्रेम करता है। उसका प्रेम केवल शारीरिक आकर्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि वह प्रेम की गहराइयों में उतरता है। वह उर्वशी को केवल एक अप्सरा या सौंदर्य की प्रतिमा नहीं मानता, बल्कि उसके भीतर आत्मा की खोज करता है।
पुरुरवा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह मानव की सीमाओं और आकांक्षाओं का प्रतीक है। वह प्रेम करता है, वह मोह में पड़ता है, वह बिछड़ने पर दुखी होता है, लेकिन अंत में वह आत्मबोध की ओर भी बढ़ता है। यह उसका विकास उसे एक साधारण प्रेमी से एक आध्यात्मिक नायक बना देता है।
प्रेम और आत्मसंघर्ष का प्रतीक
इस काव्य में पुरुरवा का चरित्र प्रेम की अनुभूति से शुरू होता है, परंतु धीरे-धीरे वह आत्मसंघर्ष और आत्मबोध की दिशा में अग्रसर होता है। जब उर्वशी उसे छोड़कर चली जाती है, तो वह टूटता है, बिखरता है, लेकिन उसी टूटन में वह खुद को पहचानता है। उसका यह आंतरिक द्वंद्व उसे एक साधारण व्यक्ति से ऊपर उठाकर चेतना का पात्र बनाता है।
पुरुरवा यह समझता है कि प्रेम केवल मिलन का नाम नहीं है, बल्कि विरह और त्याग भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। उर्वशी के साथ उसके प्रेम का अनुभव उसे यह सिखाता है कि आत्मा की पूर्णता बाहरी सुंदरता या भोग में नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धता और विचार की ऊँचाई में है।
नायक का मनोवैज्ञानिक पक्ष
पुरुरवा की सोच में निरंतर बदलाव होता है। शुरुआत में वह उर्वशी के सौंदर्य और संगति से मोहित रहता है। वह स्वर्गीय सुख की लालसा करता है। लेकिन जब वह उर्वशी को खो देता है, तो उसके भीतर मनोवैज्ञानिक मंथन शुरू होता है। वह प्रश्न करता है — क्या प्रेम केवल मिलन का नाम है? क्या आत्मा केवल भोग की वस्तु है?
इन प्रश्नों के माध्यम से नायक का चरित्र गहराता है। वह केवल भावुक नहीं है, बल्कि चिंतक और आत्मपरीक्षक भी है। वह उर्वशी को पाना चाहता है, लेकिन जब उसे खोता है, तो वह खुद को खोज लेता है। यह खोज ही उसे मानव प्रेम की ऊँचाई और आध्यात्मिकता की गहराई से जोड़ देती है।
नायक और आधुनिकता
‘उर्वशी’ का नायक केवल पौराणिक कथा का पात्र नहीं है, बल्कि वह आधुनिक मनुष्य का प्रतिनिधि भी है। आज का इंसान भी बाहरी आकर्षण और आंतरिक सच्चाई के बीच उलझा हुआ है। पुरुरवा की तरह वह भी भोग और आत्मज्ञान के द्वंद्व में जी रहा है। इसलिए यह नायक आज भी प्रासंगिक है।
निष्कर्ष
‘उर्वशी’ का नायक पुरुरवा एक ऐसा पात्र है जो प्रेम के माध्यम से आत्मा की खोज करता है। वह केवल प्रेमी नहीं, साधक भी है। उसका संघर्ष और विकास इस काव्य को केवल प्रेमकथा नहीं, बल्कि मानव आत्मा के जागरण का आख्यान बना देता है। रामधारी सिंह दिनकर ने इस नायक के माध्यम से यह दिखाया है कि प्रेम यदि सही दिशा में बढ़े, तो वह आत्मा को भी प्रकाशित कर सकता है।
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