परिचय:
अर्थशास्त्र में जब किसी बाजार में केवल एक ही विक्रेता होता है जो किसी वस्तु या सेवा की आपूर्ति करता है और उस पर उसका पूरा नियंत्रण होता है, तो उसे “एकाधिकार (Monopoly)” कहा जाता है।
एकाधिकार की स्थिति में विक्रेता के पास मूल्य निर्धारण की शक्ति होती है, क्योंकि उपभोक्ताओं के पास कोई वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता नहीं होता।
मूल्य भेदभाव (Price Discrimination) एक ऐसी स्थिति है जब एकाधारी विक्रेता एक ही वस्तु या सेवा को अलग-अलग उपभोक्ताओं को अलग-अलग कीमतों पर बेचता है, भले ही वस्तु की लागत और गुणवत्ता समान हो। इसका मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक लाभ अर्जित करना होता है।
मूल्य भेदभाव क्या है?
परिभाषा:
“जब कोई विक्रेता एक ही वस्तु को एक ही समय पर अलग-अलग उपभोक्ताओं से अलग-अलग मूल्य पर बेचता है, तो उसे मूल्य भेदभाव कहा जाता है।”
यह केवल एकाधिकार बाजार में संभव है, क्योंकि प्रतिस्पर्धी बाजार में उपभोक्ता दूसरी जगह से सस्ती वस्तु खरीद सकते हैं।
एकाधिकार में मूल्य भेदभाव की शर्तें:
एकाधारिता बाजार में मूल्य भेदभाव तभी संभव है जब कुछ विशेष परिस्थितियाँ या शर्तें पूरी हों। नीचे हम इन शर्तों को विस्तार से समझते हैं:
1. विक्रेता के पास मूल्य नियंत्रण की शक्ति होनी चाहिए
- मूल्य भेदभाव की सबसे पहली और अनिवार्य शर्त है कि विक्रेता को मूल्य निर्धारण की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
- इसका मतलब यह है कि विक्रेता को यह तय करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह किस उपभोक्ता से कितना मूल्य वसूलेगा।
- यह तभी संभव है जब बाजार में पूर्ण प्रतिस्पर्धा न हो और विक्रेता एकाधारी स्थिति में हो।
2. बाजारों का पृथक्करण संभव होना चाहिए (Market Separation)
- विक्रेता को अपने ग्राहकों या बाजारों को आपस में अलग करना आना चाहिए।
- उसे यह पता होना चाहिए कि कौन-से ग्राहक उच्च कीमत चुकाने को तैयार हैं और कौन-से नहीं।
- यह भेद उम्र, स्थान, आय, उपयोग, समय या उद्देश्य के आधार पर किया जा सकता है।
उदाहरण:
रेलवे में सीनियर सिटीज़न, स्टूडेंट्स और सामान्य यात्रियों के लिए अलग-अलग किराया लागू करना।
3. पुनर्विक्रय की संभावना न हो (No Resale Possibility)
- मूल्य भेदभाव तभी टिकाऊ हो सकता है जब एक बाजार का उपभोक्ता दूसरे बाजार से सस्ती वस्तु खरीदकर उसे महंगे बाजार में बेच न सके।
- अगर यह संभव हो तो सस्ते बाजार के लोग उसे पुनः बेचकर मुनाफा कमाएँगे, जिससे विक्रेता की नीति विफल हो जाएगी।
उदाहरण:
अगर कोई दवा भारत में सस्ती और अमेरिका में महंगी बिक रही है, तो भारत का ग्राहक उसे अमेरिका में बेच दे तो मूल्य भेदभाव काम नहीं करेगा।
4. माँग की लोच में अंतर होना चाहिए (Elasticity of Demand Should Differ)
- अलग-अलग उपभोक्ताओं की माँग की लोच (Elasticity) अलग-अलग होती है।
- विक्रेता उच्च कीमत वहाँ लगाता है जहाँ माँग अविलोचनीय (Inelastic) हो, और कम कीमत वहाँ जहाँ माँग लोचनीय (Elastic) हो।
- इससे कुल राजस्व अधिकतम होता है।
उदाहरण:
- जीवन रक्षक दवाओं की माँग अविलोचनीय होती है – इसलिए इनकी कीमत ऊँची रखी जा सकती है।
- जबकि मनोरंजन जैसी चीजों की माँग लोचनीय होती है – इनमें कीमत कम रखनी पड़ती है।
5. उपभोक्ताओं की पहचान करना संभव हो (Identification of Consumers)
- विक्रेता को यह पता लगाना आना चाहिए कि किस उपभोक्ता की भुगतान करने की क्षमता अधिक है और किसकी कम।
- इसके आधार पर वह उसी वस्तु की अलग-अलग कीमतें तय करता है।
उदाहरण:
हवाई जहाज़ की टिकटें अक्सर सप्ताह के दिनों में सस्ती और वीकेंड या छुट्टियों में महँगी होती हैं, क्योंकि माँग बदलती रहती है।
6. कानूनी या प्रशासनिक नियंत्रण नहीं होना चाहिए
- मूल्य भेदभाव तभी संभव है जब सरकार या कोई अन्य संस्था उस पर रोक न लगाए।
- यदि कोई क़ानून हो जो कहे कि सभी को एक ही कीमत पर सामान बेचना है, तो विक्रेता ऐसा नहीं कर सकता।
7. एक से अधिक बाजारों तक पहुँच होना
- विक्रेता को भिन्न-भिन्न स्थानों, समूहों या समयों तक पहुँचना आना चाहिए।
- तभी वह एक ही वस्तु को अलग-अलग कीमत पर बेच सकता है।
उदाहरण:
- एक पुस्तक की हार्डकॉपी भारत में ₹500 की है और अमेरिका में $20 की – क्योंकि बाजार और भुगतान क्षमता अलग हैं।
8. समय आधारित भेदभाव (Time-Based Discrimination)
- एकाधारी विक्रेता समय के आधार पर भी मूल्य भेदभाव करता है।
- जैसे: नई फिल्म के पहले दिन का टिकट ₹300 का होता है और एक हफ्ते बाद ₹150 का।
यह दर्शाता है कि उपभोक्ताओं के लिए समय का मूल्य भी मूल्य निर्धारण को प्रभावित करता है।
9. उत्पाद को विभाजित न किया जा सके
- उत्पाद का विभाजन असंभव या अव्यवहारिक होना चाहिए।
- इससे एक उपभोक्ता के लिए निर्धारित कीमत दूसरे तक न पहुँचे।
10. भेदभाव करने की लागत लाभ से कम हो
- मूल्य भेदभाव की प्रक्रिया में विक्रेता को उपभोक्ता की पहचान, बिक्री नियंत्रण आदि पर खर्च भी होता है।
- यह लागत इतनी अधिक नहीं होनी चाहिए कि मुनाफा ही न बचे।
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