परिचय:
उत्पादन का अर्थ होता है — किसी वस्तु या सेवा का निर्माण करना। इस निर्माण प्रक्रिया में कुछ इनपुट्स (inputs) का प्रयोग किया जाता है, जैसे – श्रम, पूँजी, भूमि, कच्चा माल आदि। इन इनपुट्स का प्रयोग करके हम आउटपुट प्राप्त करते हैं। जब किसी उत्पादन प्रक्रिया में कुछ इनपुट्स को स्थिर (Fixed) रखते हुए अन्य इनपुट्स को बदला जाता है, तो हमें परिवर्ती अनुपात का नियम (Law of Variable Proportions) समझने को मिलता है।
यह नियम उत्पादन सिद्धांत के अंतर्गत आता है और इसका अध्ययन मुख्यतः अल्पकाल (Short-run) में किया जाता है क्योंकि इस अवधि में कुछ इनपुट्स स्थिर रहते हैं और कुछ को बदला जा सकता है।
1. एक या अधिक परिवर्ती इनपुट्स की अवधारणा:
कोई भी वस्तु जब उत्पादन की जाती है, तो उसमें एक से अधिक इनपुट्स की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, गेहूं उगाने के लिए भूमि, बीज, श्रमिक, उर्वरक और मशीनें लगती हैं।
अगर हम किसी खेत में भूमि को स्थिर मानते हैं और श्रमिकों की संख्या को बढ़ाते हैं, तो हम देख सकते हैं कि कुल उत्पादन किस प्रकार बदलता है। यहीं से परिवर्ती अनुपात का नियम उत्पन्न होता है।
लेकिन अगर दो या अधिक इनपुट्स को परिवर्ती माना जाए, तो स्थिति थोड़ी जटिल हो जाती है। परन्तु, अर्थशास्त्र में अधिकतर अध्ययन इस आधार पर होता है कि एक इनपुट परिवर्ती है और अन्य स्थिर।
हालांकि, जब हम कहते हैं “एक या अधिक परिवर्ती इनपुट्स”, तो इसका अर्थ होता है – उत्पादन में विभिन्न कारकों की भागीदारी अलग-अलग अनुपात में हो सकती है और उनका उत्पादन पर प्रभाव भी अलग होता है। इस कारण हमें अलग-अलग स्थितियों में परिवर्ती अनुपात के नियम का अवलोकन करना होता है।
2. परिवर्ती अनुपात का नियम क्या है?
परिभाषा (Law of Variable Proportions):
जब हम किसी उत्पादन प्रक्रिया में एक इनपुट को परिवर्ती मानते हुए अन्य को स्थिर रखते हैं, और उस परिवर्ती इनपुट की मात्रा में धीरे-धीरे वृद्धि करते हैं, तो पहले तो उत्पादन बढ़ता है, फिर उसकी वृद्धि दर धीमी हो जाती है और अंततः उत्पादन में गिरावट आने लगती है।
यह नियम मुख्यतः तीन चरणों में विभाजित होता है।
3. मुख्य अवधारणाएँ (Concepts):
परिवर्ती अनुपात का नियम समझने से पहले हमें निम्नलिखित तीन उत्पादन से जुड़ी अवधारणाओं को समझना जरूरी है:
1. कुल उत्पादन (Total Product – TP):
- यह बताता है कि किसी विशेष संयोजन से कुल कितना उत्पादन हुआ है।
- जैसे: 2 श्रमिकों से 20 यूनिट उत्पादन, 3 श्रमिकों से 30 यूनिट उत्पादन इत्यादि।
2. औसत उत्पादन (Average Product – AP):
- प्रति इनपुट (जैसे प्रति श्रमिक) कितना उत्पादन हो रहा है।
- AP = TP / श्रमिकों की संख्या
3. सीमांत उत्पादन (Marginal Product – MP):
- जब एक अतिरिक्त इनपुट (जैसे एक और श्रमिक) जोड़ा जाए तो कुल उत्पादन में कितना परिवर्तन होता है।
- MP = ΔTP / ΔInput
4. परिवर्ती अनुपात के नियम के चरण:
अब हम इस नियम के तीन प्रमुख चरणों को विस्तार से समझते हैं:
चरण 1: बढ़ती प्रतिफल की अवस्था (Increasing Returns to the Variable Input)
- इस चरण में जब हम परिवर्ती इनपुट बढ़ाते हैं (जैसे श्रमिक), तो कुल उत्पादन तेजी से बढ़ता है।
- सीमांत उत्पादन (MP) भी बढ़ता है और औसत उत्पादन (AP) के ऊपर होता है।
- इसका कारण यह है कि प्रारंभ में स्थिर संसाधनों (जैसे भूमि, मशीन) का उपयोग पूरी तरह नहीं हो पाता। जैसे-जैसे श्रमिक बढ़ते हैं, संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है, और उत्पादन तेजी से बढ़ता है।
उदाहरण: | श्रमिक | TP | MP | |——–|—-|—-| | 1 | 10 | 10 | | 2 | 25 | 15 | | 3 | 45 | 20 |
यहाँ MP बढ़ रहा है।
चरण 2: घटती प्रतिफल की अवस्था (Diminishing Returns to the Variable Input)
- इस चरण में कुल उत्पादन बढ़ता तो है, लेकिन उसकी दर घट जाती है।
- सीमांत उत्पादन (MP) घटने लगता है लेकिन अभी भी सकारात्मक होता है।
- औसत उत्पादन भी एक समय बाद घटने लगता है।
- इसका कारण है कि स्थिर संसाधनों की तुलना में अधिक इनपुट होने से संसाधनों पर भीड़ बढ़ जाती है और उनकी उत्पादकता घट जाती है।
उदाहरण: | श्रमिक | TP | MP | |——–|—-|—-| | 4 | 60 | 15 | | 5 | 70 | 10 | | 6 | 75 | 5 |
यहाँ MP घट रहा है।
चरण 3: ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था (Negative Returns to the Variable Input)
- इस चरण में अतिरिक्त इनपुट जोड़ने से कुल उत्पादन घटने लगता है।
- सीमांत उत्पादन (MP) ऋणात्मक (Negative) हो जाता है।
- कारण यह है कि संसाधनों की अधिकता से कार्य असंगठित होने लगता है और उत्पादकता में गिरावट आती है।
उदाहरण: | श्रमिक | TP | MP | |——–|—-|—-| | 7 | 70 | -5 | | 8 | 60 | -10 |
5. एक या अधिक परिवर्ती इनपुट्स के साथ व्यवहार:
जब उत्पादन प्रक्रिया में दो या अधिक परिवर्ती इनपुट्स होते हैं, तब हमें यह देखना होता है कि किस इनपुट का योगदान अधिक है और कौन-सा इनपुट सीमित संसाधन के कारण अधिक लाभ नहीं दे पा रहा।
उदाहरण: मान लीजिए आप एक छोटी फैक्टरी चला रहे हैं जिसमें:
- आप श्रमिकों की संख्या बढ़ा रहे हैं।
- साथ ही मशीनों की संख्या भी कुछ हद तक बढ़ा सकते हैं।
इस स्थिति में अगर दोनों इनपुट्स (श्रम और पूंजी) को समान अनुपात में बढ़ाया जाए, तो प्रारंभिक अवस्था में उत्पादन में तेजी आएगी। परन्तु जब किसी एक इनपुट की उपलब्धता सीमित हो जाएगी (जैसे – मशीन की सीमा), तो श्रमिकों की संख्या बढ़ाने से उत्पादन में अपेक्षित लाभ नहीं होगा। तब वही परिवर्ती अनुपात का नियम लागू होगा।
अर्थशास्त्र में इस परिस्थिति को समझने के लिए आइसोक्वांट विश्लेषण (Isoquant Analysis) का प्रयोग किया जाता है, जहाँ दो इनपुट्स (जैसे श्रम और पूंजी) के मिश्रण से एक ही स्तर के उत्पादन को दर्शाया जाता है।
लेकिन अगर एक इनपुट (जैसे श्रमिक) को बढ़ाया जाए और दूसरा (जैसे मशीन) स्थिर रहे, तो वही क्लासिकल “Law of Variable Proportions” लागू होता है।
6. यह नियम कब और कहाँ लागू होता है?
- अल्पकाल में यह नियम सबसे अधिक लागू होता है क्योंकि सभी इनपुट परिवर्ती नहीं होते।
- कृषि उत्पादन, मैन्युफैक्चरिंग, लघु उद्योग आदि में यह नियम व्यवहारिक रूप से देखा जा सकता है।
- यह नियम यह नहीं कहता कि उत्पादन घटेगा, बल्कि यह कहता है कि उत्पादन की वृद्धि की दर घटेगी।
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