राष्ट्रीय सेवा योजना (National Service Scheme – NSS) भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही एक ऐसी योजना है, जिसका उद्देश्य युवाओं को सामाजिक जिम्मेदारी, सेवा भावना और राष्ट्रीय विकास की दिशा में सक्रिय बनाना है। इस योजना के अंतर्गत लाखों छात्र-छात्राएँ ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में समाज सेवा से जुड़े कार्यों में भाग लेते हैं। लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि NSS कार्यक्रमों का समाज और स्वयंसेवकों पर वास्तव में क्या असर पड़ रहा है। इसीलिए, NSS के प्रभावों का मूल्यांकन (Evaluation of Impact) एक आवश्यक प्रक्रिया बन जाती है। इस मूल्यांकन से यह स्पष्ट होता है कि कार्यक्रम अपने उद्देश्यों को कितनी सफलता से पूरा कर रहा है।
NSS के प्रभावों का मूल्यांकन विभिन्न स्तरों पर, विभिन्न तरीकों से और अनेक कारकों के आधार पर किया जाता है। नीचे इस प्रक्रिया का विस्तार से विवरण दिया गया है।
1. सामाजिक प्रभाव का मूल्यांकन (Social Impact Assessment):
NSS कार्यक्रमों का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य समाज में सकारात्मक बदलाव लाना है। इसलिए यह देखा जाता है कि जिन क्षेत्रों में NSS ने काम किया, वहाँ क्या सुधार हुए हैं। जैसे:
- क्या गाँव में स्वच्छता की स्थिति में सुधार हुआ?
- क्या साक्षरता दर में वृद्धि हुई?
- क्या स्वास्थ्य जागरूकता में सुधार आया?
- क्या सामाजिक कुरीतियों (जैसे बाल विवाह, नशा, जातिवाद) में कमी आई?
इन सभी सामाजिक पहलुओं पर NSS के कार्यक्रमों के प्रभाव को आंकने के लिए जन सर्वेक्षण, फीडबैक फॉर्म, स्थानीय लोगों से साक्षात्कार और ग्राम पंचायत की रिपोर्टें ली जाती हैं।
2. स्वयंसेवकों के व्यक्तिगत विकास का मूल्यांकन:
NSS का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू स्वयंसेवकों का व्यक्तिगत विकास होता है। यह मूल्यांकन निम्न बिंदुओं के आधार पर किया जाता है:
- क्या स्वयंसेवक में नेतृत्व क्षमता विकसित हुई?
- क्या उसमें सामाजिक संवेदना बढ़ी?
- क्या उसमें आत्मविश्वास, समय प्रबंधन और संवाद कौशल का विकास हुआ?
- क्या उसने सामूहिक कार्य में सहयोग करना सीखा?
इन पहलुओं को जानने के लिए स्वयंसेवकों से प्रश्नावली भरवाई जाती है, उन्हें कार्यों के आधार पर आंका जाता है, और NSS कार्यक्रम अधिकारी द्वारा रिपोर्ट तैयार की जाती है।
3. कार्यक्रम की योजना और निष्पादन का मूल्यांकन:
किसी भी NSS गतिविधि की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि उसकी योजना कितनी अच्छी थी और उसे कितनी प्रभावी तरीके से लागू किया गया। इसके लिए मूल्यांकन में निम्नलिखित देखा जाता है:
- कार्यक्रम समय पर हुआ या नहीं।
- भागीदारी कितनी रही – स्वयंसेवकों, स्थानीय लोगों और अधिकारियों की।
- कार्यक्रम का उद्देश्य स्पष्ट था या नहीं।
- संसाधनों का सही उपयोग हुआ या नहीं।
इन सबकी समीक्षा NSS कार्यक्रम अधिकारी और विश्वविद्यालय स्तर पर निरीक्षण समितियों द्वारा की जाती है।
4. दीर्घकालिक परिणामों का विश्लेषण (Long-term Impact):
NSS कार्यक्रमों का असर केवल एक सप्ताह या एक शिविर तक सीमित नहीं होता। इसलिए यह भी देखा जाता है कि कार्यक्रम समाप्त होने के बाद भी क्या उसके परिणाम टिकाऊ रहे। जैसे:
- यदि NSS स्वयंसेवकों ने गाँव में शौचालय बनवाए, तो क्या गाँववाले अब नियमित रूप से उनका उपयोग कर रहे हैं?
- क्या स्वच्छता और शिक्षा को लेकर जागरूकता स्थायी बनी रही?
इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए एक निश्चित समय अंतराल पर फॉलो-अप विज़िट और समीक्षा की जाती है।
5. दस्तावेज़ और रिपोर्ट विश्लेषण (Documentation and Reporting):
हर NSS इकाई को अपने कार्यों की रिपोर्ट तैयार करनी होती है। इनमें फ़ोटो, प्रतिभागियों की सूची, गतिविधियों का विवरण, खर्च का लेखा-जोखा आदि शामिल होता है। ये रिपोर्टें जिला, विश्वविद्यालय और राज्य स्तर पर भेजी जाती हैं, जहाँ उनका विश्लेषण कर के यह तय किया जाता है कि कार्यक्रम अपने उद्देश्यों में कितना सफल रहा।
6. पुरस्कार और मान्यता के माध्यम से प्रभाव का मापन:
NSS स्वयंसेवकों और इकाइयों को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाता है। यह पुरस्कार भी इस बात का संकेत होते हैं कि NSS कार्यक्रम समाज में कितना प्रभाव डाल रहा है। किसी इकाई या स्वयंसेवक को मिलने वाले सम्मान से उसकी गुणवत्ता का आकलन किया जाता है।
7. बाहरी मूल्यांकन (External Evaluation):
कभी-कभी NSS के कार्यों की समीक्षा बाहरी एजेंसियों, NGO या विश्वविद्यालयों द्वारा भी की जाती है। वे स्वतंत्र रूप से NSS परियोजनाओं का मूल्यांकन करते हैं और निष्पक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। इससे पारदर्शिता बनी रहती है।
इस प्रकार NSS के प्रभावों का मूल्यांकन एक सुनियोजित, बहुस्तरीय और समग्र प्रक्रिया है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि योजना केवल कागज़ों पर नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर भी सार्थक बदलाव ला रही है।