जय हिन्द। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड क्लास 12वीं हिन्दी किताब दिगंत भाग – 2 के पद्य खण्ड के अध्याय 6 ‘जन-जन का चेहरा एक’ के व्याख्या को पढ़ेंगे। इसके रचनाकार गजानन माधव मुक्तिबोध है। गजानन माधव मुक्तिबोध | जन-जन का चेहरा एक | Jan-Jan ka Chehra Ek class 12 hindi
Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek
कवि परिचय
कवि का नाम – गजानन माधव मुक्तिबोध
- जन्म : 13 नवंबर 1917
- निधन : 11 सितंबर 1964
- जन्म-स्थान : श्योपुर, ग्वालियर, मध्य प्रदेश ।
- माता का नाम : पार्वती बाई
- पिता का नाम : माधवराज मुक्तिबोध ।
- शिक्षा : उज्जैन, विदिशा, अमझरा, सरदारपुर आदि स्थानों पर प्रारंभिक शिक्षा ।
- 1930 में उज्जैन के माधव कॉलेज से ग्वालियर बोर्ड की मिडिल परीक्षा में असफल । पुनः 1931 में सफलता प्राप्त।
- 1935 में माधव कॉलेज से इंटरमीडिएट ।
- 1937 में इंदौर के होल्कर कॉलेज से बी० ए० में असफल । पुनः 1938 में सफलता प्राप्त।
- 1953 में नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम० ए० ।
- वृत्ति : 20 वर्ष की छोटी उम्र में बड़नगर मिडिल स्कूल से मास्टरी आरंभ।
- तत्पश्चात शुजालपुर, उज्जैन, कोलकाता, इंदौर, मुंबई, बंगलौर, बनारस, जबलपुर आदि स्थानों पर भिन्न-भिन्न नौकरियाँ मास्टरी से वायुसेना, पत्रकारिता से पार्टी तक।
- 1948 में नागपुर आए। नागपुर के प्रकाशन तथा सूचना विभाग में पत्रकार के रूप में अक्टूबर 1948 से सितंबर 1965 तक रहे।
- फिर नागपुर में ही रेडियो के हिंदी प्रादेशिक सूचना विभाग में अक्टूबर 1954 से अक्टूबर 1956 तक रहे।
- 1956 में ही नागपुर से निकलने वाले पत्र ‘नया खून’ का संपादन।
- 1958 में ‘नया खून’ से मुक्त हो गए।
- अंततः 1958 से दिग्विजय महाविद्यालय, राजनांदगाँव में प्राध्यापक ।
- अभिरुचि अध्ययन-अध्यापन, लेखन-पत्रकारिता राजनीति की नियमित अनियमित व्यस्तता के बीच ।
- कृतियाँ :
- ‘तार सप्तक’ के एक कवि। (तार सप्तक, 1943 में प्रकाशित हिंदी कविताओं का एक संकलन है, जिसमें अज्ञेय, गजानन माधव मुक्तिबोध, नेमी चंद्र जैन, भारत भूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे, गिरिजा कुमार माथुर और राम विलास शर्मा की कविताएँ शामिल हैं। मुक्तिबोध तार सप्तक के पहले खंड में शामिल सात कवियों में से एक थे, और उनकी कविताएँ इस संकलन में प्रकाशित हुईं, जिससे हिंदी साहित्य में एक नया दौर शुरू हुआ।
- कविता संग्रह: चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल।
- कथा साहित्य: काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी।
- आलोचना: कामायनीः एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्मसंघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, जिसका नया संस्करण अब कुछ परिवर्तित रूप में ‘आखिर रचना क्यों ?’ नाम से प्रकाशित, समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी
- तथा भारत : इतिहास और संस्कृति (इतिहास)। मुक्तिबोध रचनावली (6 खंडों में) नेमिचंद्र जैन के संपादन में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित ।
- गजानन माधव मुक्तिबोध बीसवीं शती के उत्तरार्ध के हिंदी के प्रमुख कवि, चिंतक, आलोचक और कथाकार हैं।
- उनका जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था किंतु वे मराठी थे।
- हिंदी साहित्य में उनका उदय प्रयोगवाद के एक कवि के रूप में हुआ था।
- अज्ञेय के द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ के एक कवि के रूप में वे सामने आए ।
- किंतु शीघ्र ही अपने कठिन जीवन तथा रचना संघर्ष के कारण उन्होंने अपना पथ अलग और स्वतंत्र कर लिया।
- वे अपने रचनात्मक जीवन में युग की दो प्रधान वैश्विक विचारधाराओं अस्तित्ववाद एवं मार्क्सवाद के संसर्ग में आए और विकट वैचारिक एवं रचनात्मक संघर्षों की प्रक्रिया से गुजरते हुए एक सच्चे मार्क्सवादी बनकर निखरे।
- मुक्तिबोध ने अपने जीवन से ही रचना की कीमत चुकाई। इस लिहाज से उनकी तुलना के लिए हिंदी में एक ही कवि हैं-निराला ।
- मुक्तिबोध निराला की ही तरह अपनी पीढ़ी के महान क्रांतिकारी कवि हैं।
- यहाँ उनकी एक अपेक्षाकृत आरंभिक दौर की ऐसी कविता दी जा रही है जो कथ्य और संप्रेषण की दृष्टि से कम जटिल और सुगम है। उन्होंने प्रायः लंबी कविताएँ ही लिखी हैं।
- यह कविता तुलनात्मक रूप से कम लंबी है। इस कविता में कवि की दृष्टि और संवेदना वैश्विक और सार्वभौम दिखाई पड़ती है।
- कवि पीड़ित और संघर्षशील जनता का, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कर्मरत है, चित्र प्रस्तुत करता है।
- “जमाने भर का कोई इस कदर अपना न हो जाए, कि अपनी जिंदगी खुद आपको बेगाना हो जाए ! चमन खिलता था, तू खिलता था; और वो खिलना कैसा था-कि जैसे हर कली से दर्द का याराना हो जाए इधर मैं हूँ; उधर मैं हूँ; अजल तू बीच में क्या है ? फकत एक नाम है, यह नाम भी धोखा न हो जाए ।”
—शमशेर(मुक्तिबोध के लिए)
जन-जन का चेहरा एक कविता का अर्थ
(Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
जन-जन का चेहरा एक
चाहे जिस देश प्रांत पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक !
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे किसी भी देश या प्रांत का निवासी हो उन सबमें समानता पाई जाती है। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
एशिया की, यूरोप की अमरीका की
गलियों की धूप एक ।
कष्ट-दुख संताप की
चेहरों पर पड़ी हई झरियों का रूप एक !
जोश में यों ताकत से बंधी हुई
मुठियों का एक लक्ष्य !
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे किसी भी देश या प्रांत का निवासी हो उन सबमें समानता पाई जाती है।
एशिया यूरोप अमेरिका सभी जगह सूर्य अपनी किरणें समान रूप से बिखेरता है। कष्ट अथवा दुख में व्यक्ति के चेहरे पर पड़ने वाली रेखाएँ, झुर्रियां एक समान होती है जोश में अथवा ताकत में बंधी मुठियाँ एक समान होती है और उनका लक्ष्य भी एक होता है। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
पृथ्वी के गोल चारों ओर के धरातल पर
है जनता का दल एक, एक पक्ष ।
जलता हुआ लाल कि भयानक सितारा एक
उद्दीपित उसका विकराल सा इशारा एक ।
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। इन पंक्तियों में कवि ने प्राणियों की समस्याओं की चर्चा की है।
कवि कहते हैं कि इस धरातल पर चारों तरफ संघर्ष कर रहे व्यक्तियों का समूह और पक्ष का लक्ष्य भी एक है क्योंकि सभी की समस्याएँ एक-सी हैं। जनता की शक्ति को लाल रंग के एक प्रज्ज्वलित सितारे रूप में दर्शाते हुए कवि ने कहा है कि जन-शोषक जब भी इस सितारे से छेड़छाड़ करता है तो यह भयानक रूप धारण कर लेता है। इसका एक ही इशारा या लक्ष्य है-जन-शोषक को सत्ता से बेदखल करना। यह इस भ्रष्ट व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन लाने की ओर इशारा करता है। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
गंगा में, इरावती में, मिनाम में
अपार अकुलाती हुई,
नील नदी, आमेजन, मिसौरी में वेदना से गति हुई
बहती-बहाती हुई जिंदगी की धारा एक;
प्यार का इशारा एक, क्रोध का दुद्धारा एक।
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है।
कवि कहते हैं कि गंगा, इरावती, मिनाम, नील, आमेजन, मिसौरी इन सब में अपार जल प्रवाहित होता रहता है। इनके जलों में कोई मौलिक अंतर नहीं है। ये नदियाँ मनुष्य को निरंतर बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है। ये नदियाँ प्यार और क्रोध दोनों का संदेश देती है। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
पृथ्वी का प्रसार
अपनी सेनाओं से किए हुए गिरफ्तार,
गहरी काली छायाएँ पसारकर,
खड़े हुए शत्रु का काले से पहाड़ पर
काला-काला दुर्ग एक,
जन शोषक शत्र एक ।
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है।
कवि कहते हैं कि इस संसार में दुष्ट लोग अनेक अत्याचार करते है। वे अपनी काली छाया सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैला रहे हैं। ये लोग मानवता के दुश्मन है और इन्होंने अपनी अमानवीय कार्यों तथा शोषण का किला खड़ा कर दिया है। जनता का शोषण करने वाले ये सभी शत्रु एक है। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
आशामयी लाल-लाल किरणों से अंधकार
चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक;
जन-जन का मित्र एक।
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है।
कवि कहते हैं कि आज दुनिया में आर्थिक विषमता और शोषण का अंधकार छाया हआ है। इस अंधकार को आशामयी लाल किरणें अर्थात समाजवाद द्वारा ही दूर किया जा सकता है। कवि कहते हैं कि इस अंधकार के समाप्त होते ही सर्वत्र स्वर्ग की तरह शांति हो जाएगी। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
विराट प्रकाश एक क्रांति की ज्वाला एक
धड़कते वृक्षों में है सत्य का उजाला एक
लाख-लाख पैरों की मोच में है वेदना का तार एक,
हिये में हिम्मत का सितारा एक।
चाहे जिस देश प्रांत पर का हो
जन-जन का चेहरा एक।
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है।
कवि कहते हैं कि प्रकाश का रूप एक है | सभी जगह होने वाली क्रांति की ज्वाला एक है। प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में एक ही प्रकार के सत्य का संचार हो रहा है। लाखों लोगों के पैरो में एक ही प्रकार के मोच का अनुभव हो रहा है। शोषण के खिलाफ सभी के हृदय में एक ही प्रकार का साहस है। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
एशिया के, यूरोप के, अमरीका के
भिन्न-भिन्न वास स्थान
भौगोलिक, ऐतिहासिक बंधनो के बावजूद,
सभी ओर हिंदुस्तान सभी ओर हिंदुस्तान।
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है।
कवि कहते हैं कि भिन्न-भिन्न संस्कृतियों वाले एशिया, यूरोप तथा अमेरिका में भौगोलिक और ऐतिहासिक विशिष्टता के बावजूद वे भारत की जीवन शैली से प्रभावित है। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
सभी ओर बहनें है सभी ओर भाई है
सभी ओर कन्हैया ने गायें चराई है
जिंदगी की मस्ती की अकुलाती भोर एक
बंसी की धुन सभी ओर एक।
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है।
कवि कहते है कि भारत की संस्कृति में प्रत्येक स्थान पर भाई-बहन सा प्रेम है। यहाँ भगवान कृष्ण की छवि चारों ओर व्याप्त है। यहाँ हर जगह कृष्ण ने गाय चराई है। यहाँ जिंदगी में मस्ती भरी पड़ी है। सभी ओर कृष्ण के बंसी की धुन व्याप्त है। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
दानव दुरात्मा एक,
मानव की आत्मा एक
शोषक और खूनी और चोर एक
जन-जन के शीर्ष पर,
शोषण का खड्ग अति घोर एक
दुनिया के हिस्सों में चारों ओर
जन-जन का युद्ध एक
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है।
कवि कहते हैं कि पूरे विश्व में दानव और दुरात्मा एक है। शोषक, खूनी और चोर एक है तथा दुनिया के हरेक हिस्से में दुरात्माओं, चोरों के खिलाफ युद्ध भी एक है।
Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek
मस्तक की महिमा
व अंतर की ऊष्मा से उठती है ज्वाला अति क्रुद्ध एक।
संग्राम का घोष एक,
जीवन का संतोष एक।
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है।
कवि कहते हैं कि सभी जन समूह के मस्तिष्क की चिंता एक है और उनके हृदय की प्रबलता भी एक सी है। उनके भीतर क्रोध की ज्वाला भी एक सी है। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
क्रांति का, निर्माण का, विजय का चेहरा एक,
चाहे जिस देश, प्रांत, पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक !
भावार्थ : प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता से ली गई है। इसके रचनाकार मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है।
कवि कहते हैं कि क्रांति निर्माण और विजय का सेहरा एक जैसा होता है। चाहे वह किसी देश, किसी भी प्रांत और किसी भी गाँव का क्यों न हो ! आम आदमी का शोषण के खिलाफ जो संघर्ष है उसका मूल स्वर एक ही होता है। (Class 12 Jan Jan ka Chehra Ek)
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