कड़बक कविता का भावार्थ | Karbad class 12th | मालिक मुहम्मद जायसी

जय हिन्द। इस पोस्‍ट में बिहार बोर्ड क्लास 12वीं हिन्दी किताब दिगंत भाग – 2 के पद्य खण्ड के अध्याय 1 ‘कड़बक’ | के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। इस पद के रचनाकार मलिक मुहम्मद जायसी है । (कड़‍बक कविता का अर्थ | Karbak Class 12)

कड़बक का अर्थ

कवि परिचय

कवि का नाम — मलिक मुहम्‍मद जायसी

  • जन्म : 15वीं शती उत्तरार्ध, 1492 अनुमानतः
  • निधन : 1548 अनुमानतः
  • निवास-स्थान : जायस, कब्र अमेठी, उत्तर प्रदेश
  • पिता : मलिक शेख ममरेज (मलिक राजे अशरफ )
  • गुरु : सूफी संत शेख मोहिदी और सैयद अशरफ जहाँगीर
  • वृत्ति :
    • आरंभ में जायस में रहते हुए किसानी,
    • बाद में शेष जीवन फकीरी में,
  • बचपन में ही अनाथ, साधुओं-फकीरों के साथ भटकते हुए बचपन बीता ।
  • व्यक्तित्व :
    • चेचक के कारण रूपहीन तथा
    • बाई आँख और कान से वंचित
    • मृदुभाषी, मनस्वी और स्वभावतः संत
  • उनकी 21 रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं
  • कृतियाँ : प‌द्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, चित्ररेखा, कहरानामा (महरी बाईसी), मसला या मसलानामा (खंडित प्रति प्राप्त) चंपावत, होलीनामा, इतरावत आदि
  • मलिक मुहम्‍मद जायसी ‘प्रेम के पीर’ के कवि हैं।
  • यह काव्य पद्मावत से लिया गया है।
  • पद्मावत में चितौड़ के राजा रतनसेन और और सिंहल द्वीप के राजकुमारी पद्मावती की प्रेम कथा है।

कविता परिचय

इस पाठ में दो कड़बक प्रस्तुत किया गया है। पहला कड़बक पद्मावत के प्रारंभिक छंद तथा दूसरा कड़बक पद्मावत के अंतिम छंद से लिया गया है। प्रथम कड़बक में कवि अपने रूपहीनता  और एक आंख के अंधेपन के बारे में कहते हैं। वह रूप से अधिक अपने गुणों की ओर अपना ध्‍यान खींचते हैं।

द्वितीय कड़बक में कवि अपने काव्‍य और उसकी कथासृष्टि के बारे में हमें बताते हैं। वह कहते हैं कि मनुष्‍य मर जाता हैं पर उसकी कीर्ति सुगंध की तरह पीछे रह जाती है।

कड़बक कविता का अर्थ और भावार्थ

कड़बक (1)

एक नैन कबि मुहमद गुनी। सोइ बिमोहा जेइँ कबि सुनी।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

इसमे कवि कहते है कि एक नैन के होते हुए भी जायसी गुणी (गुणवान) है। जो भी उनकी काव्य को सुनता है वो मोहित हो जाता है

चाँद जइस जग बिधि औतारा। दीन्ह कलंक कीन्ह उजिआरा।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

इसमें कवि कहते है ईश्वर ने चाँद को इस संसार में बनाया लेकिन उसके भी कलंक है, दाग है, कमी है। फिर भी चाँद जगत को प्रकाशित करता है। वैसे ही कवि चंद्रमा की तरह अपने काव्य की प्रकाश पूरे संसार में फैला रहे है।

जग सूझा एकइ नैनाहाँ। उवा सूक अस नखतन्ह माहाँ।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

इसमें कवि कहते है कि वो एक ही नयन से संसार के देख लिए है, समझ लिए है, जैसे अकेला शुक्र नक्षत्रों के बीच जब उदित होता है, तब अन्य तारों की कांति फीकी पड़ जाती है उसी प्रकार कवि साहित्य गगन के शुक्र तारा है।

जौं लहि अंबहि डाभ न होई। तौ लहि सुगंध बसाइ न सोई।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

इसमें कवि कहते है कि जबतक आम मे डाभ नहीं होता, चेप नहीं लगता है, मंजरी नहीं आती है, तब तक उसमे सुगंध नहीं आती।

कीन्ह समुद्र पानि जौं खारा। तौ अति भएउ असूक्ष अपारा।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

इसमें कवि कहते है कि समुद्र का पानी खारा होता है इसलिए ही वह असूझ और अपार है।

जौं सुमेरु तिरसूल बिनासा। भा कंचनगिरि लाग अकासा।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

कवि कहते है कि जबतक सुमेरु पर्वत में त्रिशूल नहीं लगा तबतक वो सोने का नहीं हआ। जब उसमें त्रिशूल लगा तब वह सोने का बना और आकाश को छूने लगा।

जौं लहि घरी कलंक न परा। काँच होई नहिं कंचन करा।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

कवि कहते है कि जबतक घरिया (सोना गलाने वाला पात्र) मे सोने को गलाया नहीं जाता तबतक वह कच्चा ही रहता है। सोने को चमकने के लिए तपना पड़ता है।

एक नैन जस दरपन औ तेहि निरमल भाउ।
सब रूपवंत गहि मुख जोवहिं कइ चाउ॥

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

इसमें कवि कहते है कि वे एक नैन के होते हए भी दर्पण की तरह निर्मल और स्वच्छ भाव वाले है और उनकी इसी गुण की वजह से बड़े-बड़े रूपवान लोग उनके चरण पकड़ कर कुछ पाने की इच्छा लिए उनके मुख की तरफ ताका करते हैं।

कड़बक (2)

मुहमद यहि कबि जोरि सुनावा। सुना जो पेम पीर गा पावा। जोरी लाइ रकत कै लेई । गाढ़ी प्रीति नैन जल भेई।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

इसमें कवि अपने काव्य के बारे में बताते हुए कहते हैं कि यह काव्य शब्दों को जोड़ जोड़कर रचकर सुनाया है और जिसने भी इसे सुना उसे प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ। इस काव्य को रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है तथा गहरी प्रीत को आँसुओं के जल मे भिंगोया है।

औ मन जानि कबित अस कीन्हा। मकु यह रहै जगत महँ चीन्हा।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

कवि कहते हैं कि मैंने इस काव्य की रचना यह जानकार किया है कि मेरे ना रहने के बाद इस संसार में मेरी आखिरी चिह्न (निशानी) यहीं हो ।

कहाँ सो रतनसेनि अस राजा।
कहाँ सुवा असि बुधि उपराजा।
कहाँ अलाउद्दीन सुलतानू।
कहँ राघौ जेइँ कीन्ह बखानू।
कहँ सुरूप पदुमावति रानी।
कोइ न रहा जग रही कहानी।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

कवि कहते है कि अब कहाँ है वे रतनसेन है जिससे राजा, कहाँ है वह तोता, वो अद्भुत बुद्धि वाला था। कहाँ है वह सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी तथा कहाँ है वो राधव चेतन जिसने अलाउद्दीन खिलजी के समक्ष रानी पद्मावती का रूप सौंदर्य का वर्णन किया था, कहाँ है वह सौंदर्य से भरपूर रूपवती रानी पद्मावती। इसमें से कोई भी इस संसार में नहीं बचा। केवल उनकी कहानियाँ शेष रह गई है।

धनि सो पुरुख जस कीरति जासू । फूल मरै पै मरे न बासू ।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

कवि कहते है कि वह पुरुष धन्य है जिसकी कीर्ति और प्रतिष्ठा इस संसार में उसी तरह रह जाती है जिस प्रकार पुष्प के मुरझा जाने पर भी उसका सुगंध रह जाता है।

केइँ न जगत जस बेंचा केइँ न लीन्ह जस मोल ।
जो यह पढ़े कहानी हम सँवरै दुइ बोल ।।

भावार्थ — प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

कवि कहते हैं यस अनमोल होता है। इस संसार में कोई भी यश न तो किसी ने बेचा है और न ही किसी ने खरीदा है। कवि कहते हैं कि मेरी यही इच्छा है कि जो मेरे कलेजे के खून से रचित इस कहानी को पढ़े, वह मुझे दो शब्दों मे याद कर लें।

कड़बक कविता का question answer

1. कवि ने अपनी एक आँख से तलना दर्पण से क्यों की है ?

उत्तर ⇒ महाकवि जायसी ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है कि दर्पण जिस प्रकार स्वच्छ और निर्मल होता है, ठीक उसी प्रकार कवि की आख ह। काइ मा व्यक्ति अपनी छवि जिस प्रकार साफ एवं स्पष्ट रूप से दर्पण में देख पाता ह, ठाक उसी प्रकार कवि की आँख भी स्वच्छता और पारदर्शिता का प्रतीक है। एक आख स अध होकर भी कवि काव्य-प्रतिभा से युक्त है, अतः वह पूजनीय है, वंदनीय है। कवि अपनी निर्मल वाणी द्वारा सारे जनमानस को प्रभावित करता है जिसके कारण सभी लोग कवि की प्रशंसा करते है और नमन करते हैं। जैसी छवि वैसा ही प्रतिबिंब दर्पण में उभरता है। ठीक उसी प्रकार कवि की निर्मलता और लोक कल्याणकारी भावना उनकी कविताओं में दृष्टिगत होती है।


2. पहले कड़बक में कलंक, काँच और कंचन से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर ⇒ अपनी कविताओं में कवि ने कलंक, काँच और कंचन आदि शब्दों का प्रयोग किया है। इन शब्दों की कविता में अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। कवि ने इन शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने का कार्य किया है।

जिस प्रकार काले धब्बे के कारण चन्द्रमा कलंकित हो गया फिर भी अपनी प्रभा से जग को आलोकित करने का काम किया। जिस प्रभा के आगे चन्द्रमा का काला धब्बा ओझल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार गुणीजन की कीर्तियों के सामने उनके एकाध दोष लोगों की नजरों से ओझल हो जाते हैं।

कंचन शब्द के प्रयोग करने के पीछे कवि की धारणा है कि जिस प्रकार शिव त्रिशल द्वारा नष्ट किए जाने पर सुमेरू पर्वत सोने का हो गया ठीक उसी प्रकार सज्जनों के संगति से दुर्जन भी श्रेष्ठ मानव बन जाता है। संपर्क और संसर्ग में ही यह गुण निहित है लेकिन पात्रता भी अनिवार्य है। यहाँ भी कवि ने गुण-कर्म की विशेषता का वर्णन किया है।

काँच शब्द की सार्थकता भी कवि ने अपनी कविताओं में स्पष्ट करने की चेष्टा की । बिना धारिया में (सोना गलाने के पात्र में कच्चा सोना गलाया जाता है, उसे धारिया कहते है ) गलाए काँच (कच्चा सोना) असली स्वर्ण रूप को प्राप्त नहीं कर सकता है ठीक उसी प्रकार संसार में किसी मानव को बिना संघर्ष, तपस्या और त्याग के श्रेष्ठता नहीं प्राप्त हो सकती है।


3. पहले कड़बक में व्यंजित जायसी के आत्मविश्वास का परिचय अपने शब्दों में दें।

उत्तर ⇒ महाकवि जायसी अपनी करूपता और एक आँख से अंधे होने पर शाक प्रकट नहीं करते है बल्कि आत्मविश्वास के साथ अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर लोकहित का बातें करते हैं। प्राकृतिक प्रतीकों द्वारा जीवन में गण की महत्ता की विशेषताओं का वर्णन करत ह।

जिस प्रकार चन्द्रमा काले धब्बे के कारण कलंकित तो हो गया किन्तु अपनी प्रभायुक्त आभा से सारे जग को आलोकित करता है। अत: उसका दोष गण के आगे ओझल हो जाता है।

समेरु पर्वत की यश गाथा भी शिव-त्रिशल के स्पर्श बिना निरर्थक है। घरिया म तपाए बिना सोना में निखार नहीं आता है ठीक उसी प्रकार कवि का जीवन भी नेत्रहीनता के कारण दोषभाव उत्पन्न तो करता है किन्तु उसकी काव्य-प्रतिभा के आगे सबकुछ गौण पड़ जाता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि कवि का नेत्र नक्षत्रों के बीच चमकते शुक्र तारा का तरह है जिसके काव्य का श्रवण कर सभी जन मोहित हो जाते हैं।


4. कवि ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है ? उनकी इस इच्छा का मर्म बताएँ।

उत्तर ⇒  कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी स्मृति के रक्षार्थ जो इच्छा प्रकट की है, उसका वर्णन अपनी कविताओं में किया है।

कवि का कहना है कि मैंने जान-बूझकर संगीतमय काव्य की रचना की है ताकि इस प्रबंध के रूप में संसार में मेरी स्मृति बरकरार रहे। इस काव्य-कृति में वर्णित प्रगाढ़ प्रेम सर्वथा नयनों की अश्रुधारा से सिंचित है यानि कठिन विरह प्रधान काव्य है।

दूसरे शब्दों में जायसी ने उस कारण का उल्लेख किया है जिससे प्रेरित होकर उन्होंने लौकिक कथा का आध्यात्मिक विरह और कठोर सूफी साधना के सिद्धान्तों से परिपुष्ट किया है। इसका कारण उनकी लोकैषणा है। उनकी हार्दिक इच्छा है कि संसार में उनकी मृत्यु के बाद उनकी कीर्ति नष्ट न हो। अगर वह केवल लौकिक कथा-मात्र लिखते तो उससे उनकी कीर्ति चिरस्थायी नहीं होती। अपनी कीर्ति चिरस्थायी करने के लिए ही उन्होंने पदमावती की लौकिक कथा को सूफी साधना की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित किया है। लोकेषणा भी मनुष्य की सबसे प्रमुख वृत्ति है। अंग्रेज कवि मिल्टन ने तो इसे श्रेष्ठ व्यक्ति की अंतिम दुर्बलता कहा है।

5.भाव स्पष्ट करें – जौं लहि अंबहि डाभ न होई। तौ लहि सुगंध बसाइ न सोई।

उत्तर ⇒प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

इसमें कवि कहते है कि जबतक आम मे डाभ नहीं होता, चेप नहीं लगता है, मंजरी नहीं आती है, तब तक उसमे सुगंध नहीं आती।


6. रक्त के लेई का क्या अर्थ है ?

उत्तर ⇒ यहाँ पर लेखक ने लेई के रूपक से यह बताने की चेष्टा की है कि उसने अपने कथा के विभिन्न प्रसंगों को किस प्रकार एक ही सूत्र में बाँधा है। कवि कहता है कि मैंने अपने रक्त की लेई बनाई है अर्थात् कठिन साधना की है। यह लेई या साधना प्रेमरूपी आँसो से अप्लावित की गई है। कवि का व्यंग्यार्थ है कि इस कथा की रचना उसने कठोर सफी साधना के फलस्वरूप की है और फिर इसको उसने प्रेमरूपी आँसुओं से विशिष्ट आध्यात्मिक विरह द्वारा पुष्ट किया है। लौकिक कथा को इस प्रकार अलौकिक साधना और आध्यात्मिक विरह से परिपुष्ट करने का कारण भी जायसी ने अपनी काव्यकृति के द्वारा लोक जगत में अमरत्व प्राप्ति की प्रबल इच्छा बताया है।


7. मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा। यहाँ कवि ने जोरि शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है ?

उत्तर ⇒ मलिक महम्मद जायसी ने अपने जीवन काल में समय-समय पर लिखे गए प्रसंगों को एक व्यवस्थित प्रबंध के रूप में प्रस्तुत किया है। यह जोरि-जोड़ना यानि व्यवस्थित करने के लिए प्रयुक्त हुआ है।

कवि ने विविध प्रसंगों या घटनाओं को एक साथ प्रबंध-स्वरूप में व्यवस्थित कर लोक जगत में अपनी काव्यकति को प्रस्तुत किया है। कवि ने अपनी कविता में ‘प्रेमपीर’ की चर्चा की है। सूफी साधना का सर्वस्व है-प्रेमपीर। इस प्रेमपीर की चर्चा सभी सूफी कवियों ने अपनी काव्य कृतियों में की है। जब साधक किसी गुरु की कृपा से उस दिव्य सौंदर्य स्वरूपी परमात्मा की झलक पा लेता है और उसके पश्चात जब उसकी वृत्ति की संसार की ओर पुन: पुनरावृत्ति होती है तब उसका हृदय प्रेम की पीर या आध्यात्मिक विरह-वेदना से व्यथित हो उठता है। यह विरह वेदना या प्रेम की पीर ही साधक के कल्ब के कालुल्यों को धीरे-धीरे जलाती रहती है और जब कल्ब के कालुष्य नष्ट हो जाते हैं तब वह सरलता से भावना लोक में उस सौंदर्य स्वरूपी परमात्मा के सतत दर्शन करने में समर्थ होते हैं।

8. दूसरे कड़बक का भाव सौन्दर्य स्पष्ट करें।

उत्तर ⇒ द्वितीय कड़बक में कवि अपनी सृजनशीलता के प्रति गहन विश्वास दर्शाते हुए कहता है कि उसने इस ग्रन्य की कथासृष्टि बड़ी ही मेहनत से की है। उसने इस काव्य की रचना अपने कलेजे के खून से की है तथा उसे अपने रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है जिसे गाढ़े प्रेम के आंसुओं में भिगोकर बनाया है। कवि ने इस काव्य की रचना यह सोचकर की है कि शायद जगत में उसकी यही निशानी बची रह जाए। कवि कहता है कि उसने इस ग्रन्थ में जिन पात्रों का उल्लेख किया है, उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था। उनकी तो केवल कहानियाँ ही प्रचलित हैं।

कवि में दृढ़ इच्छा शक्ति है कि जिस प्रकार फूल नष्ट हो जाता है किन्तु उसकी खुशबू रह जाती है। उसी प्रकार जब वह नहीं रहेगा तो उसकी कीर्त्ति की सुगंध ही पीछे रह जायेगी। वह चाहता है कि जो भी इस कहानी को पढ़े वह उसे भी दो शब्दों में स्मरण कर ले। अपने काव्य के प्रति कवि का यह आत्मविश्वास अत्यंत सार्थक व बहुमूल्य है।

9. व्याख्या करें- “धनि सो पुरुख जस कीरति जासू ।

फूल मरे पै मरै न बासू ।।”

उत्तर ⇒ प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग 2 में संकलित कड़बक शीर्षक पाठ के लिया गया है। यह पाठ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत महाकाव्य का अंश है।

 उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहता है कि जिस प्रकार पुष्प का शरीर नष्ट हो जाता है परन्तु उसकी सुगंध धरती पर परिव्याप्त रहती है। इसी प्रकार महान व्यक्ति भी इस धरती पर जन्म लेकर सदा के लिए अपनी कीर्त्ति पताका इस जहान में फहरा जाते हैं। पुष्प की सुगंध की भाँति यशस्वी लोगों की कीर्त्ति भी कभी विनष्ट नहीं होती। उनकी लोक हितकारी भावनाएँ युग-युगान्तर तक जन-जन के कंठ में विराजमान रहती है।


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