कामायनी हिन्दी जगत की अमूल्य धरोहर है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।

हिन्दी-साहित्य में स्थान

कामायनी को हिन्दी साहित्य जगत में विशेष स्थान प्राप्त है क्योंकि यह छायावादी युग का प्रमुख महाकाव्य माना गया है। हिन्दी साहित्य में महाकाव्य परम्परा में यह रचना अपनी मौलिकता, गूढ़ विचारधारा और प्रतीक-भाषा के कारण अलग-सी स्थापित हुई है। इसे “हिन्दी का बेजोड़ महाकाव्य” कहा गया है। इसलिए हिन्दी साहित्य में कामायनी सिर्फ एक रचना नहीं, बल्कि एक मानक-रूप बनी हुई है।


कथानक-विषय एवं प्रतीकात्मकता

कामायनी का कथानक पौराणिक रूपक पर आधारित है, जिसमें मुख्य पात्र हैं मनु (पुरुष) और श्रद्धा (नारी) तथा बाद में बुद्धि-प्रतीक “इड़ा” आदि। कहानी एक भूविनाश-(जलप्लावन) के बाद शुरू होती है, फिर मनु-श्रद्धा का मेल-विरह, अंतःमनोवैज्ञानिक संघर्ष तथा अंततः मानवता-विकास का प्रतीकात्मक चित्रण होता है।

इसमें कवि ने बाह्य घटनाओं से परे जाकर मानवीय भाव-वृत्तियों, सामाजिक-मनोवैज्ञानिक स्थितियों और सभ्यता-विकास के प्रश्नों को रूपक के माध्यम से प्रस्तुत किया है। उदाहरण के लिए, झड़ती-उठती भावनाएँ, यौवन-विरह, बुद्धि-वासना-श्रद्धा-इच्छा-क्रिया-निर्वेद आदि — ये सब महाकाव्य के अनेक सर्गों में दृश्य रूप से मिलते हैं।

इस तरह कामायनी की कथावस्तु साधारण नहीं, बल्कि गूढ़ है: यह महज कथा-गाथा नहीं, बल्कि दर्शन-मानव-प्रकृति-सम्बन्धों का चिंतन है। यह गुण इसे हिन्दी जगत में अमूल्य बनाता है।


भाषा-शैली तथा सांकेतिकता

कामायनी भाषा-शैली के दृष्टिकोण से भी विशिष्ट है। कवि ने छायावादी समय की भाषा-रचनाओं की प्रवृत्ति को आगे बढ़ाया है। इसमें प्रतीकात्मकता, रूपक-उपाय, मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि और प्रकृति-चित्रण का समावेश है। उदाहरण स्वरूप, कामायनी में “चिन्ता”, “आशा”, “श्रद्धा”, “काम”, “वासना”, “लज्जा” आदि नामकरण सर्गों (काव्यखंडों) को मिले हैं।

इसके अतिरिक्त, भाषा-सौन्दर्य, अलंकार एवं लय-गुणों का प्रयोग भी उत्कृष्ट है। उदाहरण के लिए जहाँ बाह्य वर्णन की अपेक्षा आन्तरिक भाव-वृत्तियों को व्यक्त करने की प्रवृत्ति है। इसीलिए हिन्दी-साहित्य के पाठक-पंडित इसे “उपनिषद्-काव्य” की संज्ञा देते रहे हैं।

इस प्रकार भाषा-शैली की दृष्टि से कामायनी का महत्त्व हिन्दी साहित्य में इसे स्थायी धरोहर बनाता है।


दार्शनिक एवं सामाजिक-मानवीय संदेश

कामायनी की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें केवल व्यक्तिगत भावनाओं या काव्यात्मक दृश्य का ही प्रस्तुतीकरण नहीं है, बल्कि एक व्यापक दार्शनिक चिंतन है — व्यक्ति, सभ्यता, प्रकृति, ज्ञान-क्रिया-श्रद्धा-त्याग के बीच संबंध।

कवि ने इस महाकाव्य में यह संकेत दिया है कि मनुष्य-जीवन केवल काम और वासना द्वारा नहीं संचालित होता; बल्कि श्रम, बुद्धि, श्रद्धा-समर्पण, सामाजिक समरसता-भाव आदि गुणों से भी संचित होता है। साथ ही, आधुनिक युग में जहाँ विज्ञान-उन्नति और भौतिकता का प्रभाव बढ़ा है, वहाँ कामायनी में प्राकृतिक-मानव-सम्बन्ध, आंतरिक अन्वेषण-प्रेरणा जैसे विषय उठाए गए हैं।

इसलिए कामायनी को सिर्फ काव्य-कृति के रूप में नहीं बल्कि भारतीय-मानव-चिंतन की दिशा में एक प्रेरक ग्रंथ के रूप में देखा जा सकता है। यही कारण है कि इसे हिन्दी जगत की अमूल्य धरोहर कहा जाता है।


आधुनिकता-प्रासंगिकता और हिन्दी-साहित्य में प्रभाव

हिन्दी साहित्य में कामायनी ने छायावाद के बाद अधिक सामाजिक-मनोवैज्ञानिक रूप प्राप्त किए। इसे आधुनिक युग का प्रतिनिधि काव्य माना गया है। इसकी प्रतीक योजना और अंतर्मुखी चिंतन-शैली ने बाद के कवियों-साहित्यकारों को प्रभावित किया। हिन्दी महाकाव्य-परम्परा में कामायनी ने नए मानदण्ड स्थापित किए — जहाँ विषयवस्तु, भाषा-शिल्प, दार्शनिक उद्देश्य सभी मिलकर काव्यात्मक श्रेष्ठता प्रदान करते हों।

साथ ही, आज के समय में भी जहाँ मानवीय मूल्यों-परिस्थितियों में परिवर्तन हो रहा है (जैसे‐भौतिकवाद, उपभोक्तावाद, पर्यावरणीय संकट), वहाँ कामायनी का विचार-सामग्री प्रासंगिक बनी हुई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि हिन्दी-साहित्य में कामायनी न केवल काल-बद्ध शीर्षक है, बल्कि समय-अपरिमित चिंतन है।


कुछ चुनौतियाँ एवं आलोचनाएँ

हालाँकि कामायनी को हिन्दी साहित्य में महान माना गया है, किन्तु आलोचनाएँ भी हुई हैं। कुछ समीक्षकों ने इसे कठिन, गूढ़, प्रतीक-प्रधान तथा उपभोक्ता-स्तर पर कम सुलभ काव्य बताया है। उदाहरणस्वरूप, कवि मुक्तिबोध ने इसे “फैंटसी” जैसे रूप में देखा है।

इसके अलावा, आधुनिक पाठक-समूह में इसकी भाषा-शैली और प्रतीक-सहिता कारण इसे सहजता से ग्रहण करना आसान नहीं है। अतः इस कृति को “अमूल्य” धरोहर कहने के साथ-साथ यह स्वीकार करना भी आवश्यक है कि इसे समझने के लिए पाठक को चिंतन-उन्मुख होना पड़ता है।


कामायनी हिन्दी जगत की अमूल्य धरोहर

कामायनी हिन्दी जगत की अमूल्य धरोहर

कामायनी हिन्दी जगत की अमूल्य धरोहर

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