कामायनी का रूपक तत्व


‘कामायनी’ हिन्दी के महाकवि जयशंकर प्रसाद की कालजयी काव्य-रचना है, जिसे हिन्दी साहित्य का श्रेष्ठतम प्रतीकात्मक (symbolic) महाकाव्य माना जाता है। यह महाकाव्य केवल भावों की श्रृंखला नहीं, बल्कि मानव-मन की गहराइयों, विचारों और जीवन-दर्शन का चित्रण है। इसमें रूपक (allegory) या प्रतीकात्मकता का अत्यंत प्रभावशाली प्रयोग हुआ है।

‘कामायनी’ में हर पात्र, हर घटना, और हर स्थल के पीछे गहरे दार्शनिक अर्थ छिपे हैं। यह कविता प्रत्यक्ष से परोक्ष की ओर, साकार से निराकार की ओर, और मानव से ब्रह्म की ओर एक यात्रा है — जिसे कवि ने रूपक तत्व के माध्यम से अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है।


रूपक तत्व की समझ:

रूपक तत्व का अर्थ होता है — किसी वास्तविक पात्र या घटना के माध्यम से कोई गूढ़, गहरा या अमूर्त विचार प्रकट करना। जैसे, कोई पात्र केवल व्यक्ति नहीं होता, बल्कि वह एक विचार, एक भाव, या जीवन की अवस्था का प्रतीक बन जाता है।

‘कामायनी’ इसी शैली में रची गई है। इसमें प्रयुक्त पात्र, घटनाएँ और स्थल — सभी किसी न किसी भावनात्मक, मानसिक या दार्शनिक अवस्था का रूपक हैं।


प्रमुख रूपक तत्व ‘कामायनी’ में:

1. मनु – मन का प्रतीक:

‘कामायनी’ का मुख्य पात्र मनु केवल पौराणिक राजा नहीं है। वह मनुष्य का प्रतिनिधि है, और उससे भी अधिक, वह मन (mind) का प्रतीक है।

  • मनु का संघर्ष, द्वंद्व, मोह और ज्ञान की यात्रा — ये सब मानव-मन की यात्रा को दर्शाते हैं।
  • मनु के माध्यम से कवि ने दिखाया कि मन कैसे इच्छाओं, विवेक और भावना के बीच झूलता है।

2. श्रद्धा – भावना और आस्था की प्रतीक:

श्रद्धा केवल एक स्त्री पात्र नहीं, बल्कि वह आध्यात्मिक विश्वास, करुणा और संवेदना की प्रतीक है।

  • जब मनु श्रद्धा से जुड़ता है, तो वह संतुलित और शांत होता है।
  • श्रद्धा का त्याग करने पर ही विपत्ति आती है, जिससे स्पष्ट होता है कि भावना और आस्था के बिना जीवन असंतुलित हो जाता है।

3. इड़ा – बुद्धि, तर्क और विवेक की प्रतीक:

इड़ा का आगमन मनु के जीवन में बुद्धि और तर्क के रूप में होता है।

  • वह मानव चेतना का वैज्ञानिक पक्ष है।
  • इड़ा के आने से मनु में चिंतन, शंका और आत्ममंथन का जन्म होता है।
  • लेकिन केवल बुद्धि से भी समाधान नहीं मिलता — यही संदेश रूपक के माध्यम से दिया गया है।

4. प्रलय – आत्मविस्मृति और मानसिक उथल-पुथल का प्रतीक:

‘कामायनी’ की शुरुआत प्रलय से होती है। यह प्रलय केवल भौतिक नहीं, बल्कि एक अंतरात्मा की टूटन, चेतना का बिखराव है।

  • यह आधुनिक जीवन की विघटनकारी स्थितियों का रूपक है।
  • प्रलय के बाद ही नया निर्माण होता है, ठीक वैसे ही जैसे आत्मसाक्षात्कार के बाद नया दृष्टिकोण जन्म लेता है।

5. नदी, पर्वत, वन आदि – चेतना की अवस्थाओं के प्रतीक:

‘कामायनी’ में वर्णित प्राकृतिक दृश्य भी प्रतीकात्मक हैं:

  • नदी = बहती हुई चेतना
  • पर्वत = स्थायित्व और ध्यान
  • वन = आत्म-चिंतन और एकांत

इन सब के माध्यम से कवि ने मानव जीवन की भीतरी अवस्थाओं को चित्रित किया है।


रूपक तत्व का प्रभाव:

‘कामायनी’ का रूपक तत्व इसे केवल एक काव्य नहीं, बल्कि एक दर्शन ग्रंथ बना देता है। पाठक जब इसे पढ़ता है, तो वह मनु, श्रद्धा और इड़ा के रूप में खुद को देखता है

यह काव्य सतह से नीचे उतरकर आत्मा को छूता है, और यह काम केवल रूपक तत्व की शक्ति से ही संभव हो सका है।


निष्कर्ष:

‘कामायनी’ में प्रयुक्त रूपक तत्व ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। जयशंकर प्रसाद ने पौराणिक कथाओं को केवल दोहराया नहीं, बल्कि उन्हें आधुनिक मानव-चेतना की प्रतीकात्मक कथा बना दिया।

इस रूपक के माध्यम से उन्होंने बताया कि जीवन का उद्देश्य केवल सुख-दुख नहीं, बल्कि आत्मा की पूर्णता और संतुलन है। यही ‘कामायनी’ का रूपक तत्व हमें सिखाता है — और इसी कारण यह रचना हिन्दी साहित्य की अमर निधि बन गई है।


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