परिचय:
‘काव्य हेतु’ का अर्थ है – काव्य रचना का कारण या प्रेरणा। अर्थात् कवि किस कारण से कविता की रचना करता है, उसकी क्या मूल प्रेरणा होती है, यही काव्य हेतु कहलाता है। भारतीय काव्यशास्त्र में यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि इससे न केवल काव्य की उत्पत्ति का आधार समझा जाता है, बल्कि यह भी जाना जा सकता है कि काव्य का उद्देश्य क्या है।
भिन्न-भिन्न आचार्यों ने अपने-अपने मतों के अनुसार काव्य हेतु को परिभाषित किया है। कोई इसे रचना का आंतरिक कारण मानता है, कोई सर्जनात्मक प्रेरणा, और कोई रस की उत्पत्ति का कारक।
1. भरत मुनि का दृष्टिकोण:
भरत मुनि ने काव्य हेतु को सीधे तौर पर स्पष्ट नहीं किया, परंतु उनके नाट्यशास्त्र में यह स्पष्ट है कि काव्य का हेतु लोकविनोद, शिक्षा और संवेदना की प्रस्तुति है। उन्होंने कहा कि नाटक (जिसमें काव्य भी आता है) का कार्य मनोरंजन के साथ-साथ सांस्कृतिक upliftment भी है।
उनके अनुसार, भावों की अनुभूति और रस की निष्पत्ति ही कवि को काव्य रचने की प्रेरणा देती है।
2. भामह का दृष्टिकोण: कवि की स्वाभाविक प्रतिभा
भामह ने कहा कि काव्य हेतु में सबसे आवश्यक तत्व है — कवि की प्रतिभा। उन्होंने कहा:
“न कश्चिदप्रयत्नेन कवित्वेन प्रतिष्ठति।”
यानी कोई भी व्यक्ति बिना प्रयत्न और प्रतिभा के कवि नहीं बनता।
उनके अनुसार, काव्य हेतु में मुख्य रूप से दो बातें होती हैं — प्रकृति (स्वाभाविक क्षमता) और परिश्रम (शिक्षा, अभ्यास)। जब इन दोनों का संगम होता है, तब कवि को प्रेरणा मिलती है।
3. वामन का दृष्टिकोण: प्रेरणा और रीतिवादी नजरिया
वामन ने कहा कि काव्य हेतु में कवि की प्रेरणा, उसकी भाषा पर पकड़ और रीति का ज्ञान अनिवार्य है। उनके अनुसार, जब कवि किसी विषय से प्रभावित होता है, और वह अपने अनुभवों को सौंदर्यपूर्ण शैली में व्यक्त करना चाहता है, तो वह काव्य की रचना करता है।
वह ‘रीति’ को काव्य की आत्मा मानते हैं, इस कारण शैली और प्रस्तुति ही काव्य हेतु के प्रमुख आधार बनते हैं।
4. आनंदवर्धन और अभिनवगुप्त का दृष्टिकोण: रस और व्यंजना प्रेरणा
आनंदवर्धन ने ध्वनि (व्यंजना) को काव्य की आत्मा माना, और इसी संदर्भ में काव्य हेतु को भी अंतर्मन की गूढ़ भावनाओं को प्रकट करने का माध्यम माना।
उनके अनुसार, कवि जब किसी भावना या विचार से अत्यधिक प्रभावित होता है और उसे व्यंजना द्वारा पाठक के हृदय तक पहुँचाना चाहता है, तब वह काव्य रचता है। अभिनवगुप्त ने भी इसे आगे बढ़ाते हुए कहा कि रस की अनुभूति ही कवि को रचना के लिए प्रेरित करती है।
5. विश्वनाथ कविराज का दृष्टिकोण: अनुभूति ही काव्य हेतु
विश्वनाथ ने स्पष्ट कहा कि काव्य हेतु कवि की निजी अनुभूति होती है। जब वह किसी दृश्य, विचार, घटना या भावना से अंदर तक हिल जाता है, तब वह उसे शब्दों में ढालता है — यही उसकी काव्य प्रेरणा बनती है।
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