खड़ीबोली हिन्दी गद्य के विकास में फोर्ट विलियम कॉलेज की भूमिका

18वीं शताब्दी के अंत और 19वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में भारत में अंग्रेज़ों का शासन धीरे-धीरे स्थापित हो रहा था। अंग्रेज़ शासक भारतीय जनसामान्य से संवाद स्थापित करने, प्रशासनिक कामकाज और न्यायिक प्रक्रिया को सहज बनाने के उद्देश्य से स्थानीय भाषाओं के अध्ययन और लेखन को बढ़ावा देने लगे। इसी क्रम में सन् 1800 में लॉर्ड वेलेजली ने कलकत्ता (अब कोलकाता) में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। इस कॉलेज का उद्देश्य भारतीय भाषाओं के अध्ययन हेतु अंग्रेज़ अधिकारियों को प्रशिक्षण देना था, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से इस संस्थान ने हिन्दी गद्य, विशेषतः खड़ीबोली हिन्दी गद्य के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

खड़ीबोली हिन्दी की पृष्ठभूमि

हिन्दी भाषा की कई बोलियाँ हैं, जैसे- ब्रज, अवधी, भोजपुरी, मैथिली आदि। साहित्यिक दृष्टि से ब्रज और अवधी का वर्चस्व रहा है। खड़ीबोली, जो कि आज के पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुख्य बोली है, सामान्यतः बोलचाल की भाषा मानी जाती थी। 18वीं शताब्दी के अंत तक इसका कोई विशेष साहित्यिक स्वरूप नहीं था। लेकिन फोर्ट विलियम कॉलेज के प्रयासों के चलते खड़ीबोली हिन्दी में गद्य लेखन की एक संगठित और साहित्यिक परंपरा का आरम्भ हुआ।

फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना का उद्देश्य

फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारियों को भारतीय भाषाओं की शिक्षा देने के उद्देश्य से की गई थी। इसके अंतर्गत हिन्दी, संस्कृत, फारसी, उर्दू, बंगला, मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं के अनुभवी पंडित और लेखक नियुक्त किए गए। हिन्दी विभाग में मुख्य रूप से ऐसे लेखकों को नियुक्त किया गया जो आमजन की भाषा में सरलीकृत और सुस्पष्ट गद्य लिख सकें।

फोर्ट विलियम कॉलेज के तहत हिन्दी गद्य लेखन की प्रकृति

फोर्ट विलियम कॉलेज में तैयार किए गए हिन्दी गद्य ग्रंथों की मुख्य विशेषताएँ थीं:

  • सरल भाषा: आमजन की समझ में आने वाली सहज, बोलचाल की खड़ीबोली।
  • शुद्धता और व्याकरणिक अनुशासन: व्याकरण सम्मत और संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग।
  • शिक्षाप्रद और मनोरंजक विषयवस्तु: कथात्मक शैली में धार्मिक, नैतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों को प्रस्तुत करना।
  • प्रशासनिक उपादेयता: अंग्रेज अधिकारियों को स्थानीय संस्कृति और व्यवहार समझाने हेतु लेखन।

प्रमुख लेखकों का योगदान

फोर्ट विलियम कॉलेज में हिन्दी के विकास हेतु कई भारतीय विद्वानों और लेखकों की सेवाएँ ली गईं। इन लेखकों ने जो साहित्य रचा, वह आगे चलकर खड़ीबोली हिन्दी के गद्य रूप की आधारशिला बना।

1. लल्लू लाल

लल्लू लाल को खड़ीबोली हिन्दी गद्य का प्रथम और महत्वपूर्ण लेखक माना जाता है। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति “प्रेमसागर” है, जो कि भागवत पुराण की कृष्ण लीलाओं पर आधारित है। इसमें ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ीबोली हिन्दी का प्रयोग किया गया है, जिससे यह आमजन के लिए अधिक सुलभ बनी।

  • भाषा की विशेषताएँ: संस्कृतनिष्ठ शब्दावली, सरल वाक्य रचना, संवाद शैली।
  • महत्त्व: यह कृति हिन्दी गद्य लेखन के मानक स्वरूप का प्रारंभिक नमूना मानी जाती है।

2. सदालाल मिश्र

इन्होंने “नाथपंथियों की बातें” जैसी रचनाएँ लिखीं। इनकी भाषा में भी खड़ीबोली हिन्दी की स्पष्ट छवि मिलती है। व्याकरणिक अनुशासन और वर्णनात्मक शैली इनकी विशेषता रही।

3. सदय यादव (सदन)

इन्होंने हिन्दी में कहावतें, नीति कथाएँ, और नीति ग्रंथों का अनुवाद प्रस्तुत किया। इनका लेखन भी खड़ीबोली गद्य की परिपक्वता की ओर संकेत करता है।

4. इनाम अली

हालाँकि इनका मुख्य कार्य उर्दू में था, फिर भी इनकी भाषा शैली ने खड़ीबोली हिन्दी के विकास को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया।

प्रमुख रचनाएँ जो खड़ीबोली हिन्दी गद्य की आधारशिला बनीं

  1. प्रेमसागर (लल्लूलाल)
  2. बैताल पच्चीसी (लल्लूलाल एवं काशीनाथ)
  3. सिंहासन बत्तीसी
  4. राजा भोज का सपना
  5. चतुर बटुवन की कहानी

इन रचनाओं में धार्मिक आख्यान, नीति कथाएँ, कल्पनात्मक गाथाएँ आदि के माध्यम से न केवल मनोरंजन हुआ बल्कि खड़ीबोली हिन्दी को साहित्यिक दर्जा भी मिला।

फोर्ट विलियम कॉलेज की विशेषताएँ जो खड़ीबोली हिन्दी के विकास में सहायक बनीं

  1. पुस्तक निर्माण की सुविधा: कॉलेज में मुद्रणालय की सुविधा थी जहाँ हिन्दी में छपाई का आरंभ हुआ। इसने गद्य साहित्य को व्यापक प्रसार दिया।
  2. सरकारी संरक्षण: कॉलेज सरकार द्वारा संचालित था, जिससे लेखकों को आर्थिक सहायता और प्रोत्साहन मिला।
  3. शिक्षा हेतु सामग्री की आवश्यकता: अंग्रेज अधिकारियों को हिन्दी सिखाने के लिए शिक्षाप्रद पुस्तकों की आवश्यकता थी, जिससे विविध विषयों पर लेखन हुआ।
  4. बोलचाल की भाषा को मान्यता: पहली बार खड़ीबोली, जो अब तक केवल संवाद की बोली थी, को साहित्यिक अभिव्यक्ति मिली।

हिन्दी गद्य के विकास की दिशा

फोर्ट विलियम कॉलेज के प्रयासों से हिन्दी गद्य केवल धार्मिक आख्यानों तक सीमित न रहकर नीतिपरक, ऐतिहासिक और सामाजिक विषयों तक फैल गया। इसने आगे चलकर भारतेन्दु युग में आधुनिक हिन्दी साहित्य की नींव रखी।

फोर्ट विलियम कॉलेज के लेखकों ने भाषा को सुस्पष्ट, संप्रेषणीय और व्यावहारिक बनाया। इससे हिन्दी पत्रकारिता, नाटक, उपन्यास और अन्य विधाओं में गद्य लेखन को एक नई दिशा मिली।


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