जय हिन्द। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड क्लास 10 हिन्दी किताब गोधूली भाग – 2 के पद्य खण्ड के पाठ 6 ‘जनतंत्र का जन्म’ के व्याख्या को पढ़ेंगे। इस कविता के कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी है । दिनकर जी ने इस पाठ में बताया है कि सदियों से राजतंत्र शासन से पीड़ित भारतीय जनता अब जग चुकी है। भारत में दुनिया का सबसे विशाल जनतंत्र की स्थापना होने वाला है । |(Bihar Board Class 10 Hindi रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ) (Bihar Board Class 10 Hindi जनतंत्र का जन्म )(Bihar Board Class 10th Hindi Solution) ( जनतंत्र का जन्म )
5. जनतंत्र का जन्म
जनतंत्र का जन्म : कवि परिचय
- कवि का नाम – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
- जन्म – 23 सितंबर 1908 ई०
- जन्म स्थान – सिमरिया बेगूसराय ( बिहार )
- मृत्यु – 24 अप्रैल 1974 ई०
- माता का नाम – मनरूप देवी
- पिता का नाम – रवि सिंह
- प्रारंभिक शिक्षा – गाँव और उसके आस-पास में हुई।
- मैट्रिक – मोकामा घाट रेलवे हाई स्कूल ( 1928 ई० में)
- बी०ए० – पटना कॉलेज से ( इतिहास में ऑनर्स ) (1932 ई० में )
- प्रकार – उत्तर छायावाद
- उपाधि – राष्ट्रकवि
- कार्य –
- प्रधानाध्यापक – एच० ई० स्कूल, बरबीघा में,
- सब-रजिस्ट्रार और सब-डायरेक्टर– जनसंपर्क विभाग में,
- हिंदी के प्रोफेसर – बिहार विश्वविद्यालय में
- उपकुलपति – भागलपुर विश्वविद्यालय में
- सांसद – राज्यसभा 1952 में
- प्रमुख रचनाएँ –
- काव्य-कृतियाँ – ‘प्रणभंग’, ‘रेणुका’, ‘हुंकार’, ‘रसवंती’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी’, ‘नीलकुसुम’, ‘उर्वशी’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हारे को हरिनाम’ आदि।
- गद्य कृतियाँ – ‘मिट्टी की ओर’, ‘अर्धनारीश्वर’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’, ‘काव्य की भूमिका’, ‘वट पीपल’, ‘शुद्ध कविता की खोज’, ‘दिनकर की डायरी’ आदि
- पुरस्कार –
- साहित्य अकादमी पुरस्कार – ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पर
- ज्ञानपीठ पुरस्कार – ‘उर्वशी’ पर
- सम्मान – ‘पद्मविभूषण’ भारत सरकार की ओर से।
- वे भारतेन्दु युग से प्रवहमान राष्ट्रीय भावधारा के एक महत्त्वपूर्ण आधुनिक कवि हैं।
- वे कविता लिखने की शुरुआत तीस के दशक में किए थे
- किंतु अपनी संवेदना और भावबोध से वे चौथे दशक के प्रमुख कवि के रूप में पहचाने गये।
जनतंत्र का जन्म : पाठ परिचय
यह कविता भारत में जनतंत्र के उदय का जयघोष है। सदियों की देशी-विदेशी पराधीनताओं के बाद स्वतंत्रता प्राप्ति हुई और भारत में जनतंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा हुई। जनतंत्र के ऐतिहासिक और राजनीतिक अभिप्रायों को कविता में उजागर करते हुए कवि यहाँ एक नवीन भारत का शिलान्यास सा करता है जिसमें जनता ही स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने को है। इस कविता का ऐतिहासिक महत्त्व है। ( जनतंत्र का जन्म )
6. जनतंत्र का जन्म (Jantantra ka janm)
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
अर्थ – राष्ट्रकवि दिनकर जी कहते है कि सदियों की ठंडी और बुझी हुई राख में सुगबुगाहट दिखाई पड़ रही है अर्थात क्रांति की चिनगारी भड़क उठी है। मिट्टी यानी जनता सोने की ताज पहनने के लिए व्याकुल है। राह छोड़ो, समय साक्षी है-जनता के रथ के पहियों की घर्घर आवाज सुनाई दे रही है। सिंहासन खाली करों जनता आ रही है। ( जनतंत्र का जन्म )
जनता ? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हो चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहने वाली ।
अर्थ – इन पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर जी कहते है कि जनता मिट्टी की अबोध मुरतें हैं। वह जाड़े की रात में जाड़ा-पाला की कसक (रूक-रूक कर होने वाली पीड़ा) को हमेशा सहती है। वह थोड़ा भी आह नहीं करती है। ठंड से शरीर ऐसा कंपकपाता है कि लगता है शरीर में हजारों साँप डंस रहे हैं। इतना पीड़ा और दुख के बावजूद वह अपनी दुख किसी से नहीं कहती है। ( जनतंत्र का जन्म )
जनता ? हाँ, लम्बी-बड़ी जीभ की वही कसम,
“जनता, सचमुच ही, बड़ी वेदना सहती है।”
“सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है ?”
“है प्रश्न गूढ़ः जनता इस पर क्या कहती है ?”
अर्थ – इन पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर जी कहते है कि जनता सचमुच असह्य वेदना को सह कर जीती है फिर भी जीवन में उफ तक नहीं करती है। कवि शपथ लेकर कहता है कि लंबी-चौड़ी जीभ की बातों पर विश्वास किया जाए। जनता सचमूच बहुत ही पीड़ा सहती है। कवि कहता कि जनमत का सही-सही अर्थ क्या है ? कवि इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहता है। यह प्रश्न बहुत ही गंभीर है। ( जनतंत्र का जन्म )
मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दुधमुँही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।
अर्थ – इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहता है कि जनता फूल नहीं है कि इसे जब चाहो तब सजा लो , या कोई दुधमुही बच्ची नहीं कि इसे दो-चार खिलौने देकर बहला दो। जनता की हृदय सेवा और प्रेम से जीता जा सकता है। ( जनतंत्र का जन्म )
लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
अर्थ – इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहता है कि जनता के पास असीम शक्तियाँ होती है। जनता जब क्रोधित होकर भृकुटी चढ़ती है तो उसके हुंकारों से भूकंप आ जाता है। बवंडर उठ खड़ा होता है। जनता के हुंकार के सामने कोई टिक नहीं सकता है। जनता की राह को कोई रोक नहीं सकता है। सुनो, जनता रथ पर सवार होकर आ रही है, उसकी राह को छोड़ दो और सिंहासन खाली करो क्योंकि जनता आ रही है। ( जनतंत्र का जन्म (
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है;
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है ।
अर्थ – इन पंक्तियों के द्वारा राष्ट्रकवि दिनकर जी ने कहा है कि जनता की हुँकार से महलों की नींव उखड़ जाती है। जनता की साँसों के बल से राजमुकुट हवा में उड़ते हैं। समय में वह शक्ति नहीं है जो जनता की राह को रोक सके। जनता जैसी चाहती है समय भी वैसा ही चलता है। ( जनतंत्र का जन्म )
अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अन्धकार,
बिता, गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय
चिरते तिमिर का वक्ष उमड़ते आते हैं।
अर्थ – इन पंक्तियों के द्वारा राष्ट्रकवि दिनकर जी कहते हैं कि वर्षों, सैकड़ों वर्षों, हजारों वर्षों का अंधकार में जीवन जी रही जनता का समय बीत गया। अब जनता प्रकाश युग का दरवाजा खोल दी है । यह जनता के स्वप्न है जो अंधकार को चिरते हुए धरा पर उतर रहे हैं। ( जनतंत्र का जन्म )
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुँचा।
तैतिस कोटी-हित सिंहासन तैयार करो;
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैतिंस कोटी जनता के सिर पर मुकुट धरो।
अर्थ – इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहता है कि भारत में लोकतंत्र का उदय हो रहा है। भारत स्वाधीन हो चूका है। यहाँ लोकतंत्र की स्थाना हो रही है। तैंतीस करोड़ जनता की हीत की बात है। तैंतीस करोड़ सिंहासन तैयार करो क्योंकि अभिषेक राजा का नहीं बल्कि जनता का होनेवाला है। आज का शुभ दिन तैंतिस करोड़ जनता के सिर पर मुकुट रखने का है। ( जनतंत्र का जन्म )
आरती लिए तुम किसे ढ़ुढ़ता है मुरख,
मंदिरों, राजप्रसादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगें खेतों में, खलिहानों में।
अर्थ – इन पंक्तियों के द्वारा कवि का कहता है कि आरती लेकर मुर्ख बनकर किसे ढूँढ रहे हो? मेंदिरों, राजमहलों, तहखानों में देवता नहीं मिलेंगे। वास्तविक देवता तो मजदूर और किसान है । जो सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे मजदूर और खेत-खलिहानों में काम कर रहे किसना है। ( जनतंत्र का जन्म )
फावड़े और हल राजदंड बनने को है,
धूसरता सोने में सिंगार सजाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो की जनता आती है।
अर्थ – इन पंक्तियों के द्वारा कवि कहता है कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है। लोकतंत्र का राजदंड कोई राजपत्र, कोई हथियार या कोई औजार नहीं होता है। लोकतंत्र का मूल राजदंड जनता का हल और कुदाल है। इसी से वह धरती से सोना उगाता है। धरती की धुसरता का सिंगार आज सोना से सजा हुआ है। अर्थात धूल ही स्वर्ण है। रास्ता शीघ्र दो, सिंहासन शीघ्रता से खाली करो, देखो जनता स्वयं आ रही है। ( जनतंत्र का जन्म )
जनतंत्र का जन्म : पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि रामधारी सिंह दिनकर ने सदियों से राजतंत्र से शासित जनता की जागृति को उजागर करते हुए कहा है कि अब नवीन व्यवस्था को लेकर जनतंत्र का आगमन हो रहा है। राजतंत्र का जमाना समाप्त हो गया है। समय बदल चुका है और समय का यह कहना है कि भारत की सत्ता अब प्रजा संभालेगी। अविलंब उसके लिए सिंहासन , समय का पुकार का शंखनाद ही राथ का घर्घर नाद है। यहां पर कवि ने सत्ता परिवर्तन की ओर इशारा किया है।
प्रश्न 2. कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है ?
उत्तर – कविता के आरंभ में कवि रामधारी सिंह दिनकर ने यह स्पष्ट किया है कि जनता सहनशील होती है। वह सुख – दुख में एक समान रहती है वह मिट्टी की मूर्ति की तरह अबोध है। जानता वह फूल है जिसे जब चाहे जहां रख दो , जानता वह छोटी बच्ची है जिसे छोटे प्रलोभन देकर भी खुश किया जा सकता है। अर्थात् भारत की जनता भोली भाली है और असहनीय पीड़ा को सह कर भी चुप रहने वाली है। राजा के द्वारा शोषित होने पर भी उसका प्रतिकार नहीं करती। जानता की इसी दशा का वर्णन कवि ने अपनी कविता के आरंभ में किया है।
प्रश्न 3. कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दुधमुँही बच्ची की तरह है और क्यों ? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है ?
अर्थ – राष्ट्रकवि दिनकर जी का कहना है कि जो राज सत्ता प्राप्त करके घमंड में जनता पर शासन करते हैं, वे जनता की शक्ति को पहचानने का प्रयास नहीं करते। उन्हें जानता भोली – भाली लगती है। तत्कालीन अंग्रेजी सरकार भी जनता को भोली-भाली समझती थी। उनकी नजर में भारतीय जनता फूल या दूधमुंही बच्ची की तरह है जिसे प्रलोभन देकर चुप किया जा सकता है। यहां पर कवि ने ऐसे अत्याचारी शासक को चेतावनी देते हुए कहा है कि भोली भाली लगने वाली यह जनता जब जग जाती है तब राजतंत्र ही टूटता है। जनता की जागृति वह बवंडर है जिसका सामना करना अत्यंत मुश्किल होता है।
इस प्रकार यहां। इस प्रकार से यहां पर कवि ने राजतंत्र के समाप्त होने की दिशा की ओर संकेत किया है।
प्रश्न 4. कवि जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचता है ?
उत्तर – स्वाधीन भारत का नींव जनता है। गणतंत्र जनता पर निर्भर है। जनता का स्वप्न अजय है। सदियों से अंधकार युग में रहने वाली जनता प्रकाश युग में जा रही है। वर्षों से स्वप्न को संजोए रखने वाली जनता निर्भय होकर एक नए युग की शुरुआत कर रही है। आज अंधकार युग का अंत हो चुका है। भारत में विशाल जनतंत्र का उदय हुआ है। यहां राजा की नहीं प्रजा का अभिषेक होने वाला है।
प्रश्न 5. विराट जनतंत्र का स्वरूप क्या है? कवि किनके सिर पर सुकुट धरने की बात करता है और क्यों ?
उत्तर – कवि रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार भारत में आने वाला जनतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा जनतंत्र है। इस जनतंत्र में 33 करोड़ जनता की भागीदारी है। संसार का कोई भी देश ऐसा नहीं है जो भारत की इस विशाल और व्यापक जनतंत्र का मुकाबला कर सके।
कवि ने 33 करोड़ जनता के सिर पर मुकुट धरने की बात करता है। जनतंत्र में सभी नागरिकों की समान भागीदारी होती है। जनतंत्र में सारे नागरिक सम्मान अधिकार एवं कर्तव्य बोध से शामिल होते हैं। जनतंत्र में जनता का , जनता के लिए , जनता के द्वारा शासन होता है। अतः कवि ने प्रत्येक नागरिक के सिर पर मुकुट धरने की बात कही है।
प्रश्न 6. कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे ?
उत्तर – कवि रामधारी सिंह दिनकर की दृष्टि में आज का देवता मेंदिरों, राजमहलों, तहखानों में नहीं मिलेंगे। आज के देवता तो मजदूर और किसान है । जो सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे मजदूर और खेत-खलिहानों में काम कर रहे किसना है।
प्रश्न 7. कविता का मूल भाव क्या है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए
उत्तर – कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित ‘जनतंत्र का जन्म’ एक उद्देश्य वादी कविता है। यह कविता आधुनिक भारत में जनतंत्र के उदय का जयघोष है। सदियों से देसी विदेशी प्रधानताओं के बाद स्वतंत्रता प्राप्त हुई और भारत में जनतंत्र की प्राण प्रतिष्ठा हुई। जनतंत्र के ऐतिहासिक और राजनीतिक अभिप्राय को कविता में उजागर करते हुए कभी यहां एक नवीन भारत की शिलान्यास सा करता है जिसमें जनता ही स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने को है।
8. व्याख्या करें- ( जनतंत्र का जन्म )
(क) सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
उत्तर – प्रस्तुत व्याख्यये पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग 2 में संकलित ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचनाकार राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर हैं।
कवि कहता है कि युग– युग से पीड़ित जनता अपनी शिथिलता को त्याग करके अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने को तैयार हो गई है। जिस तरह ठंडी बुझी राख के भीतर कभी-कभी बची कुची चिंगारी अचानक हवा का झोंका पाकर सुलग उठती है। उसी तरह युग–युग से प्रताड़ित जनता आज अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्षशील हो उठी है। तुच्छ समझी जाने वाली जनता ने अपने निरंतर संघर्ष से सत्ता पर अपना अधिकार जमा लिया है। राजशासन अब जनता को गर्व से फूली नहीं समा रहे। ( जनतंत्र का जन्म )
(ख) हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती, साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है; जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ? वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
उत्तर – प्रस्तुत व्याख्यये पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग 2 में संस्कृत ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता से ली गई है जिसकी रचनाकार राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर हैं।
कवि दिनकर के अनुसार युग–युग से पीड़ित जनता अब जाग गई है। उसकी ललकार में इतनी ताकत है कि इससे महलों की नींव उखड़ जाती है और उसकी सांसो में इतना बल है कि उससे राजमुकुट हवा में उड़ने लगता है। समय अब जनता की मुट्ठी में है। जनता क्रांति के मार्ग पर बढ़ चुकी है। अब समय में भी इतना दम नहीं कि वह उसके मार्ग में कोई बाधा उत्पन्न कर सके। इस प्रकार यहां पर जनता की असीम शक्ति का चित्रण किया है और यह बताने का प्रयास किया है कि अब समय जनता का है , जनतंत्र का है। ( जनतंत्र का जन्म )