परिचय:
मनुष्य के सोचने, समझने और अनुभव करने की क्षमता को समझने के लिए दार्शनिकों और मनोवैज्ञानिकों ने सदियों से अध्ययन किया है। इसी अध्ययन में एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि क्या कुछ विचार, ज्ञान या समझ हमारे जन्म के साथ ही आती है, या हम इसे अनुभव से प्राप्त करते हैं? इस संदर्भ में ‘जन्मजात विचार’ (Innate Ideas) की अवधारणा आती है।
जन्मजात विचार की परिभाषा:
जन्मजात विचार वे विचार, ज्ञान या मान्यताएँ होती हैं जो व्यक्ति के मस्तिष्क में जन्म से ही मौजूद होती हैं।
यह विचार अनुभव से प्राप्त नहीं होते, बल्कि मनुष्य के साथ पहले से ही होते हैं। इन्हें मनुष्य जीवन की शुरुआत से ही जानता या समझता है।
जन्मजात विचारों का ऐतिहासिक दृष्टिकोण:
- प्लेटो (Plato):
प्लेटो ने सबसे पहले जन्मजात विचारों की अवधारणा प्रस्तुत की। उनके अनुसार आत्मा पहले से ही सब कुछ जानती है, लेकिन जन्म के समय यह ज्ञान भूल जाती है। जीवन में अनुभव के माध्यम से वह इस ज्ञान को “स्मरण” (recollection) करती है। - रेने देकार्त (René Descartes):
17वीं शताब्दी के प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक देकार्त ने कहा – “कुछ विचार ऐसे हैं जो हमारे अनुभव से नहीं, बल्कि हमारे मन में पहले से होते हैं।”
उदाहरण के लिए, “ईश्वर का अस्तित्व”, “सत्य क्या है”, “स्व-अस्तित्व” (Cogito Ergo Sum – मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ) आदि। - जॉन लॉक (John Locke) – विरोधी मत:
लॉक ने जन्मजात विचारों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि मनुष्य का मस्तिष्क जन्म के समय एक कोरा कागज (Tabula Rasa) होता है, और वह सभी ज्ञान अनुभव, इंद्रियों और शिक्षा के माध्यम से प्राप्त करता है।
जन्मजात विचारों के उदाहरण:
- अच्छाई और बुराई की समझ:
कई लोग मानते हैं कि नैतिकता (morality) की कुछ बुनियादी बातें, जैसे “हत्या करना गलत है” या “दूसरों की मदद करना सही है”, हर व्यक्ति को जन्म से पता होती हैं। - ईश्वर का विचार:
कुछ दार्शनिक मानते हैं कि ईश्वर की अवधारणा, आत्मा, पुनर्जन्म आदि विचार किसी भी बाहरी ज्ञान से पहले से मन में होते हैं। - गणितीय अवधारणाएँ:
जैसे “1 + 1 = 2” या “एक रेखा दो बिंदुओं को जोड़ती है” — यह तर्कशक्ति हमारे भीतर जन्म से मौजूद रहती है।
जन्मजात विचारों के पक्ष में तर्क:
- हर संस्कृति में समान मूल्यों की उपस्थिति:
भले ही सभ्यताएँ अलग हों, लेकिन कुछ मूल नैतिक मूल्य (जैसे चोरी बुरी है, सत्य बोलना अच्छा है) लगभग सभी समाजों में पाए जाते हैं। - छोटे बच्चों में कुछ बुनियादी समझ:
नवजात शिशु बिना सिखाए ही चेहरे पहचानने, ध्वनियों पर प्रतिक्रिया देने और खुशी-दुख जैसी भावनाओं को समझने की क्षमता रखते हैं।
आलोचना और सीमाएँ:
- संस्कृति और वातावरण का प्रभाव:
बहुत से विचार व्यक्ति के वातावरण, परवरिश, भाषा और समाज से आते हैं — इसलिए सब कुछ जन्मजात नहीं कहा जा सकता। - विज्ञान और न्यूरोलॉजी:
आधुनिक विज्ञान का मत है कि मस्तिष्क में कुछ जैविक प्रवृत्तियाँ (biological instincts) होती हैं, परंतु “विचार” धीरे-धीरे विकसित होते हैं।
निष्कर्ष:
जन्मजात विचार एक पुरानी लेकिन रोचक दार्शनिक अवधारणा है, जो यह समझाने का प्रयास करती है कि क्या मनुष्य कुछ ज्ञान लेकर ही जन्म लेता है। यह विचार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हमारी सोच, नैतिकता और विश्वास क्या पूरी तरह से अनुभव पर आधारित हैं या हमारे भीतर कुछ पहले से ही होता है।
हालाँकि इस पर विद्वानों के बीच मतभेद हैं, फिर भी यह स्पष्ट है कि मानव मस्तिष्क की क्षमता केवल अनुभव का परिणाम नहीं है, बल्कि कुछ मूल प्रवृत्तियाँ और सोच की क्षमताएँ जन्म से ही मौजूद होती हैं। यही जन्मजात विचारों की मूल भावना है।