जैविक विविधता पर टिप्पणी करें।

परिचय

जैविक विविधता (Biodiversity) शब्द दो शब्दों “जैविक” और “विविधता” से मिलकर बना है। जैविक का अर्थ है “जीवों से संबंधित” और विविधता का अर्थ है “विभिन्न प्रकार का होना”। इस प्रकार जैविक विविधता का अर्थ होता है – धरती पर पाए जाने वाले सभी प्रकार के जीवों, पौधों, सूक्ष्मजीवों तथा उनके पारिस्थितिक तंत्रों की विभिन्नता। यह न केवल पृथ्वी पर जीवन की समृद्धता को दर्शाता है, बल्कि प्रकृति की जटिलता और उसकी संतुलनकारी शक्ति को भी उजागर करता है।

जैविक विविधता प्रकृति की एक अनमोल धरोहर है, जिसमें लाखों प्रजातियाँ एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। ये सभी जीव-जंतु, पौधे, पेड़, जीवाणु, कवक आदि मिलकर एक ऐसा जाल बनाते हैं, जिसे “जीवन का जाल” (Web of Life) कहा जा सकता है। इस जीवन के जाल में हर कड़ी का अपना एक विशेष स्थान और महत्व होता है।


जैविक विविधता के प्रमुख घटक

जैविक विविधता को तीन मुख्य स्तरों पर वर्गीकृत किया गया है:

  1. प्रजातीय विविधता (Species Diversity):
    यह विविधता विभिन्न प्रजातियों की संख्या और उनकी विविधता को दर्शाती है। जैसे – बाघ, हाथी, मोर, आम का पेड़, गुलाब आदि। जितनी अधिक प्रजातियाँ किसी क्षेत्र में पाई जाती हैं, उस क्षेत्र की जैव विविधता उतनी ही अधिक मानी जाती है।
  2. आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity):
    एक ही प्रजाति के जीवों में पाए जाने वाले आनुवंशिक भिन्नताओं को आनुवंशिक विविधता कहा जाता है। जैसे – एक ही आम के पेड़ की विभिन्न किस्में (लंगड़ा, दशहरी, तोतापुरी आदि)। यह विविधता ही यह तय करती है कि जीव अलग-अलग परिस्थितियों में कैसे प्रतिक्रिया देंगे।
  3. पारिस्थितिकीय विविधता (Ecosystem Diversity):
    यह विविधता विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्रों (जैसे – वन, मरुस्थल, नदी, पर्वत, दलदल आदि) और उनमें रहने वाले जीवों की परस्पर क्रियाओं को दर्शाती है। एक देश में जितने अधिक प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र होंगे, उसकी पारिस्थितिकीय विविधता उतनी अधिक होगी।

जैविक विविधता का महत्व

जैविक विविधता का मानव जीवन में अत्यधिक महत्व है। यह हमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अनेक लाभ देती है:

  1. आहार और पोषण:
    मनुष्य अपने भोजन के लिए पौधों और पशुओं पर निर्भर है। अनाज, फल, सब्जियाँ, दूध, मांस, मछली आदि जैव विविधता के ही उपहार हैं। विभिन्न प्रकार की फसलों और पशुधन की किस्में हमें पोषण संबंधी विविधता प्रदान करती हैं।
  2. औषधियाँ और चिकित्सा:
    हजारों वर्षों से मनुष्य विभिन्न पौधों और जैविक पदार्थों से औषधियाँ बनाता आया है। आज भी आयुर्वेद, होम्योपैथी और एलोपैथी में जैव विविधता का भरपूर उपयोग होता है। जैसे – नीम, तुलसी, अश्वगंधा, हल्दी आदि अनेक औषधीय पौधों के उदाहरण हैं।
  3. पर्यावरणीय सेवाएँ:
    जैव विविधता वनों, महासागरों और झीलों के रूप में पर्यावरणीय सेवाएँ प्रदान करती है। ये पारिस्थितिक तंत्र कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर वायुमंडल को शुद्ध करते हैं, जलचक्र को बनाए रखते हैं और प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करते हैं।
  4. आर्थिक योगदान:
    पर्यटन, मत्स्य पालन, कृषि, औषधि उद्योग, लकड़ी उद्योग आदि जैव विविधता आधारित गतिविधियाँ देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूती देती हैं। कई देशों की आय का मुख्य स्रोत “इको-टूरिज्म” होता है।
  5. सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व:
    भारत जैसे देशों में कई पौधों और जानवरों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। तुलसी, पीपल, गाय, नाग आदि को पूजनीय माना जाता है। यह न केवल धार्मिक विश्वासों को पोषित करता है, बल्कि जैविक संरक्षण में भी मदद करता है।

जैविक विविधता को खतरे

हाल के वर्षों में जैविक विविधता पर कई प्रकार के संकट मंडरा रहे हैं। यह संकट अधिकांशतः मानव जनित हैं:

  1. वनों की कटाई और भूमि उपयोग में परिवर्तन:
    शहरीकरण, कृषि विस्तार और औद्योगीकरण के कारण वनों का तेजी से विनाश हो रहा है, जिससे वहाँ की प्रजातियाँ समाप्त हो रही हैं।
  2. प्रदूषण:
    जल, वायु, भूमि और ध्वनि प्रदूषण का सीधा असर जैव विविधता पर पड़ता है। प्रदूषित जल स्रोतों में मछलियाँ और जलीय जीव मर जाते हैं।
  3. जलवायु परिवर्तन:
    ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु में अत्यधिक बदलाव जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा हैं। तापमान में वृद्धि से अनेक प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक आवास में जीवित नहीं रह पातीं।
  4. विदेशी प्रजातियों का आगमन (Invasive Species):
    जब कोई बाहरी प्रजाति किसी नए क्षेत्र में पहुँचती है और वहाँ की मूल प्रजातियों को प्रतिस्पर्धा में हरा देती है, तो यह जैव विविधता के लिए नुकसानदायक होता है। उदाहरण के लिए, भारत में लैंटाना नामक झाड़ी कई स्थानों पर जैव विविधता के लिए खतरा बन चुकी है।
  5. अत्यधिक शिकार और व्यापार:
    दुर्लभ जानवरों और पौधों का अवैध शिकार तथा व्यापार जैव विविधता को सीधा नुकसान पहुँचाता है। जैसे – बाघ, गेंडा, हाथी की आबादी तेजी से घट रही है।

भारत में जैविक विविधता

भारत विश्व के उन कुछ गिने-चुने देशों में से एक है जिसे “मेगाडायवर्स” (Mega-diverse) देश कहा जाता है। भारत में लगभग 47,000 पौधों की प्रजातियाँ और 90,000 से अधिक जानवरों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारत के कुछ प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं:

  • पश्चिमी घाट (Western Ghats)
  • हिमालय क्षेत्र
  • पूर्वोत्तर भारत
  • अंडमान-निकोबार द्वीप समूह

भारत में सांस्कृतिक विविधता की तरह ही जैविक विविधता भी समृद्ध और गहन है, जो इसे एक जैविक खजाना बनाती है।


जैव विविधता संरक्षण के प्रयास

जैविक विविधता को बचाने के लिए अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयास किए जा रहे हैं। इनमें से कुछ हैं:

  • राष्ट्रीय जैव विविधता अधिनियम, 2002 (Biological Diversity Act, 2002)
    भारत सरकार द्वारा पारित यह अधिनियम जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग को बढ़ावा देता है।
  • जैव विविधता बोर्ड (National Biodiversity Authority)
    यह संस्था देशभर में जैव विविधता के संरक्षण से जुड़े कार्यों की निगरानी करती है।
  • वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रम
    जैसे – प्रोजेक्ट टाइगर, प्रोजेक्ट एलिफेंट आदि।
  • संयुक्त राष्ट्र का जैव विविधता सम्मेलन (CBD – Convention on Biological Diversity)
    यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो जैव विविधता की रक्षा और इसका न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
  • स्थानीय समुदायों की भागीदारी
    जैव विविधता का संरक्षण तभी सफल हो सकता है जब स्थानीय लोग – विशेषकर आदिवासी और ग्रामीण समुदाय – इसमें भाग लें। इनके पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक प्रयासों से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है।

जैविक विविधता पर यह विस्तृत टिप्पणी यह स्पष्ट करती है कि प्रकृति की यह संपदा केवल देखने और सराहने की वस्तु नहीं है, बल्कि मानव जीवन के हर पहलू में इसकी उपस्थिति और उपयोगिता है। जैव विविधता का संरक्षण न केवल पर्यावरण की दृष्टि से, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत आवश्यक है।

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