देकार्त मन और शरीर में किस प्रकार भेद करता है? कार्टेशियन द्वैतवाद को स्पष्ट कीजिए।


1. परिचय: देकार्त कौन थे?

रेने देकार्त (René Descartes) एक फ्रांसीसी दार्शनिक, गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे। वे आधुनिक पश्चिमी दर्शन के जनक माने जाते हैं। 17वीं शताब्दी में उन्होंने ज्ञान, संदेह, आत्मा और शरीर को लेकर गहराई से विचार किया। उनका प्रसिद्ध कथन —

Cogito, ergo sum
यानी “मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ” — आज भी दर्शन के क्षेत्र में अत्यंत चर्चित है।

देकार्त का दर्शन मुख्य रूप से द्वैतवाद (Dualism) पर आधारित था, जिसे कार्टेशियन द्वैतवाद (Cartesian Dualism) कहा जाता है। इसमें उन्होंने मन (चेतना) और शरीर (भौतिक वस्तु) को दो अलग-अलग स्वतंत्र तत्त्व माना।


2. द्वैतवाद (Dualism) क्या है?

द्वैतवाद वह दार्शनिक सिद्धांत है, जो कहता है कि संसार में दो प्रकार की सत्ताएँ हैं

  1. मानसिक (Mental) — यानि आत्मा या मन या चेतना
  2. भौतिक (Physical) — यानि शरीर, वस्तुएँ, पदार्थ

देकार्त का द्वैतवाद मुख्यतः मानव अस्तित्व पर केंद्रित था — मन और शरीर का संबंध क्या है, यही उनका मुख्य प्रश्न था।


3. देकार्त का मन और शरीर का भेद

देकार्त ने तर्क और विचार के आधार पर यह कहा कि मन और शरीर दो स्वतंत्र और भिन्न सत्ता हैं। आइए इसे विस्तार से समझें:

(क) मन (Mind)

  • मन यानी “चेतन सत्ता” या आत्मा — जो सोचती है, अनुभव करती है, संदेह करती है, कल्पना करती है।
  • यह अ-भौतिक (immaterial) है — इसका कोई आकार, भार या विस्तार नहीं है।
  • मन की विशेषता है — “विचार करना” (thinking)।
  • यह केवल व्यक्ति को ही महसूस होता है, इसे किसी वैज्ञानिक यंत्र से मापा नहीं जा सकता।

(ख) शरीर (Body)

  • शरीर एक भौतिक वस्तु (physical substance) है — जिसका विस्तार है, वजन है, आकार है।
  • यह प्राकृतिक नियमों के अनुसार चलता है।
  • इसे देखा, छुआ, मापा जा सकता है।
  • शरीर के कार्यों को मांसपेशियाँ, तंत्रिकाएँ, हड्डियाँ और कोशिकाएँ संचालित करती हैं।

(ग) मुख्य अंतर:

विशेषतामन (Mind)शरीर (Body)
प्रकृतिअ-भौतिक (immaterial)भौतिक (material)
गुणविचारशील, चेतनआकारयुक्त, विस्तारयुक्त
नियमविचार और आत्मनिरीक्षण द्वाराभौतिक विज्ञान के नियमों द्वारा
अनुभूतिआंतरिक अनुभवबाह्य संवेदी अनुभव
नश्वरताअमर (according to देकार्त)नश्वर

4. कार्टेशियन द्वैतवाद (Cartesian Dualism) क्या है?

कार्टेशियन द्वैतवाद देकार्त द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत है जिसमें यह माना गया कि मन और शरीर दो भिन्न तत्त्व हैं, परंतु वे परस्पर किसी प्रकार से संपर्क में आते हैं।

इस सिद्धांत के प्रमुख बिंदु:

1. द्वैतीय सत्ता की स्वीकृति:

  • देकार्त मानते थे कि मन और शरीर दोनों अपनी-अपनी जगह पर पूर्ण सत्ता (complete substances) हैं।
  • एक सोचने वाला (thinking) तत्त्व है — मन
  • एक फैला हुआ (extended) तत्त्व है — शरीर

2. मन का आत्म-प्रमाणन (Self-certainty):

  • देकार्त ने सबसे पहले अपने अस्तित्व को संदेह के माध्यम से सिद्ध किया —
    “मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ”
  • यानि, भले ही सारी दुनिया झूठी हो, लेकिन सोचने की क्रिया सिद्ध करती है कि मैं, सोचने वाला, मौजूद हूँ।

3. कारण और प्रभाव का प्रश्न (Mind-body interaction):

  • देकार्त ने यह भी माना कि मन और शरीर एक-दूसरे को प्रभावित कर सकते हैं
    जैसे — जब हम डरते हैं (मानसिक अनुभव), तो हमारा शरीर काँपता है (शारीरिक प्रतिक्रिया)।
    इसी प्रकार यदि शरीर में चोट लगे, तो हमें पीड़ा महसूस होती है — जो मानसिक अनुभव है।

4. पाइनियल ग्रंथि (Pineal Gland):

  • देकार्त ने यह कहा कि मन और शरीर के बीच संपर्क का स्थान मस्तिष्क की पाइनियल ग्रंथि (pineal gland) है।
  • यह मस्तिष्क का एक छोटा हिस्सा है जो उन्होंने “आत्मा का निवास स्थान” कहा।

5. देकार्त के तर्क और विचार प्रक्रिया

(क) विधिपूर्वक संदेह (Methodic Doubt):

  • देकार्त ने ज्ञान की शुरुआत संदेह से की।
  • उन्होंने सब चीज़ों पर संदेह किया — इंद्रियों पर, सपनों पर, दुनिया के अस्तित्व पर।
  • लेकिन जिस पर संदेह नहीं किया जा सकता, वह है — “मैं सोचता हूँ”
    क्योंकि संदेह करना भी एक सोचने की क्रिया है।

(ख) मन की प्राथमिकता (Primacy of Mind):

  • देकार्त ने मन को शरीर से पहले माना।
  • उन्होंने कहा कि शरीर पर विश्वास नहीं किया जा सकता, लेकिन मन — विचार करने की प्रक्रिया — पर पूर्ण विश्वास किया जा सकता है।

(ग) द्वैत के पीछे तर्क:

  • अगर मैं सोच सकता हूँ, और मेरा शरीर भौतिक है — तो ये दो अलग सत्ता हैं।
  • क्योंकि शरीर बिना चेतना के भी हो सकता है, और सोच (मन) बिना शरीर के भी कल्पना की जा सकती है।

6. देकार्त के द्वैतवाद की आलोचना और परीक्षण

(क) मन और शरीर की अंतःक्रिया पर प्रश्न:

  • यदि मन और शरीर अलग-अलग हैं, तो वे एक-दूसरे को कैसे प्रभावित करते हैं?
  • शरीर भौतिक है, मन अ-भौतिक — दोनों के बीच कोई प्रत्यक्ष कारण कैसे बनेगा?

(ख) पाइनियल ग्रंथि का संदेहास्पद चुनाव:

  • वैज्ञानिक दृष्टि से पाइनियल ग्रंथि सिर्फ जैविक कार्यों के लिए जिम्मेदार है।
  • आज यह स्वीकार नहीं किया जाता कि यह मन और आत्मा का केंद्र है।

(ग) आधुनिक तंत्रिका विज्ञान (Neuroscience):

  • आधुनिक विज्ञान शरीर और मन को एक ही जैविक प्रक्रिया के हिस्से के रूप में देखता है।
  • मस्तिष्क की गतिविधियों को मानसिक स्थितियों से जोड़ा जाता है।

(घ) वैकल्पिक दृष्टिकोण:

  • स्पिनोज़ा जैसे दार्शनिकों ने एकात्मकता (Monism) का समर्थन किया — शरीर और मन एक ही तत्त्व के दो पहलू हैं।
  • गिल्बर्ट रायल ने देकार्त के द्वैतवाद को “ghost in the machine” कहकर नकारा।
  • उन्होंने कहा कि मन को शरीर से अलग सत्ता मानना गलत है — यह सिर्फ भाषा की गड़बड़ी है।

7. कार्टेशियन द्वैतवाद के प्रभाव

(क) दर्शन में प्रभाव:

  • देकार्त के सिद्धांत ने मन और आत्मा के अस्तित्व पर नए सिरे से बहस को जन्म दिया।
  • उनकी सोच ने आत्म-चिंतन और व्यक्तित्व की अवधारणा को बढ़ावा दिया।

(ख) धर्म और आध्यात्मिकता:

  • देकार्त के द्वैतवाद ने आत्मा और शरीर के अलग अस्तित्व को धार्मिक विचारों से जोड़ने में सहायता की।

(ग) विज्ञान और मनोविज्ञान पर प्रभाव:

  • यद्यपि आधुनिक विज्ञान देकार्त के द्वैतवाद को नहीं मानता, फिर भी उनकी सोच ने मस्तिष्क और चेतना के अध्ययन की दिशा तय की।

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