धूमिल पर टिप्पणी


धूमिल

परिचय:

धूमिल हिंदी कविता के उन साहसी और विद्रोही स्वर वाले कवियों में से एक हैं, जिन्होंने कविता को आम आदमी की आवाज़ बनाया। उनका असली नाम सुधीर कुमार चौधरी था, लेकिन वे साहित्यिक दुनिया में ‘धूमिल’ नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म 1936 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी ज़िले के खेवली गाँव में हुआ था।

धूमिल की कविता में गुस्सा, असंतोष, विद्रोह और व्यवस्था के प्रति तीखा तंज मिलता है। वे उस समय सामने आए जब हिंदी कविता में ‘नया प्रयोग’ और ‘नया स्वर’ खोजा जा रहा था, और उन्होंने अपने अनोखे अंदाज़ से कविता को एक नई दिशा दी।


कविता का स्वर और विषयवस्तु:

धूमिल की कविता का स्वर तीखा, व्यंग्यात्मक और बेहद स्पष्ट है। वे शब्दों की चाशनी में लपेटकर बात करने के बजाय सीधे, दो टूक और कठोर भाषा में व्यवस्था की पोल खोलते हैं। उनकी कविताएँ व्यवस्था के झूठे आदर्शों, भ्रष्ट राजनीति, और आम आदमी के शोषण के खिलाफ एक लड़ाई की तरह हैं।

वे कहते हैं:

“शब्द किस तरह
आदमी के रूप में
बदल जाते हैं
यह कोई धूमिल से पूछे।”

यह पंक्ति बताती है कि धूमिल के लिए कविता केवल भावनाओं का नहीं, बल्कि जीवन का दस्तावेज़ है।


भाषा और शैली:

धूमिल की भाषा आम बोलचाल की हिंदी है, जिसमें लोक का स्वाद और गली-मोहल्लों की आवाज़ सुनाई देती है। वे कविता को किताबों से निकालकर सड़क तक लाते हैं। उनकी शैली में गाली तक भी आ जाती है, लेकिन वह गाली नहीं लगती — वह एक ग़ुस्से की चीख़ बन जाती है।

उनकी कविता में सवाल होते हैं, संघर्ष होता है, और सबसे अहम — एक आम आदमी की भाषा होती है। यह शैली उन्हें भीड़ से अलग करती है।


प्रमुख कृतियाँ:

धूमिल का प्रमुख काव्य-संग्रह है “संसद से सड़क तक”, जो उनके नाम जितना ही प्रसिद्ध है। इसके अलावा “कल सुनना मुझे” और “सुधीर गेहलोत की कविताएं” भी उल्लेखनीय हैं। हालाँकि उनका साहित्यिक जीवन छोटा रहा (1975 में उनका निधन हो गया), लेकिन उनकी कविताओं ने हिंदी कविता की दिशा को गहराई से प्रभावित किया।


निष्कर्ष:

धूमिल हिंदी कविता के ऐसे कवि हैं जो व्यवस्था से भिड़ते हैं, सवाल पूछते हैं, और कविता को क्रांति का हथियार बनाते हैं। उन्होंने यह साबित किया कि कविता केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि संघर्ष भी हो सकती है। उनकी कविताएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, क्योंकि आज भी आम आदमी के सवाल वहीं हैं।

इसलिए, धूमिल को “जनकवि”, “क्रांतिकारी स्वर”, और “सत्य की कठोर आवाज़” के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।


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