नयी कविता का परिचय

हिन्दी साहित्य के इतिहास में ‘नयी कविता’ एक महत्वपूर्ण काव्य आंदोलन के रूप में उभरी, जिसने कविता को परंपरागत छंद, विषयवस्तु और भाषा से बाहर निकालकर एक व्यक्तिवादी, आत्माभिव्यक्तिपरक और यथार्थवादी स्वर प्रदान किया। यह आंदोलन बीसवीं शताब्दी के पाँचवें दशक के उत्तरार्ध (1943–44) से लेकर साठ-सत्तर के दशक तक हिन्दी कविता में प्रमुख रूप से सक्रिय रहा।

नयी कविता का उदय एक ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव की पृष्ठभूमि में हुआ। भारत स्वतंत्रता की दहलीज पर खड़ा था। द्वितीय विश्व युद्ध, बंगाल का अकाल, विभाजन की त्रासदी और स्वतंत्रता के बाद का मोहभंग — इन सब घटनाओं ने मनुष्य की चेतना को गहरे स्तर पर झकझोरा। नयी कविता इसी आंतरिक असंतुलन, टूटन और बेचैनी की उपज है।


1. नयी कविता की पृष्ठभूमि

‘नयी कविता’ की जड़ें कहीं न कहीं ‘छायावादोत्तर काल’ में ही दिखाई देने लगती हैं, जब प्रगतिशील आंदोलन के अंतर्गत कविता ने सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों की ओर रुख किया। लेकिन प्रगतिशीलता की सीमा यह थी कि उसमें व्यक्ति की निजी अनुभूतियों और आंतरिक यथार्थ को कम स्थान मिल पाता था।

नयी कविता ने इस स्थिति से अलग एक ऐसी राह चुनी, जिसमें कवि व्यक्तिगत अनुभव, मनःस्थितियाँ, अस्तित्व की विडंबनाएँ, आधुनिक जीवन की जटिलता और मानव अकेलापन जैसे विषयों को लेकर चला।


2. नयी कविता नामकरण

‘नयी कविता’ शब्द पहली बार अज्ञेय द्वारा संपादित संकलन “तीसरा सप्तक” (1959) के माध्यम से व्यापक चर्चा में आया। यद्यपि इसके बीज प्रथम सप्तक (1943) में ही दिखने लगे थे, लेकिन अलग पहचान के रूप में ‘नयी कविता’ 1950 के बाद ही स्थापित हुई।

अज्ञेय, जो स्वयं नयी कविता के प्रमुख प्रवक्ता थे, ने इसे एक काव्यधारा न मानकर रचनाशीलता की प्रवृत्ति कहा। नयी कविता कोई आंदोलन नहीं थी, न ही कोई पूर्वनिश्चित विचारधारा — यह तो जीवन की बदलती संवेदना की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी।


3. नयी कविता की प्रमुख विशेषताएँ

(क) व्यक्तिगत अनुभूति का महत्व

नयी कविता में ‘मैं’ का विशेष महत्व है। कवि अब समाज या राष्ट्र की नहीं, बल्कि अपनी आंतरिक दुनिया की बात करता है।

जैसे— अज्ञेय की कविताओं में व्यक्ति की अलगाव की पीड़ा और अस्तित्व का संकट बहुत तीव्रता से उभरता है।

(ख) आधुनिक जीवन की विडंबनाओं का चित्रण

नयी कविता उस समय की है जब आदमी विकास, तकनीक और महानगरीय जीवन के बीच घुटता हुआ दिखाई देता है।

प्रकृति, प्रेम, संबंध — सब कुछ कृत्रिम हो गया है। यह कविता उसी मशीनीकरण और संवेदनहीनता के विरुद्ध एक आवाज़ है।

(ग) छंद और भाषा की स्वतंत्रता

नयी कविता में छंदबद्धता और तुकांतता को त्यागकर मुक्त छंद को अपनाया गया। इससे कवियों को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का माध्यम मिला।

भाषा भी अब संवेदना के अनुरूप बदलती है — कभी सरल, कभी जटिल, कभी खामोश तो कभी तीखी।

(घ) प्रतीकात्मकता और बिंब योजना

नयी कविता में भावों को सीधे कहने के बजाय प्रतीकों और बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया गया। ये प्रतीक निजी होते हैं, लेकिन उनके माध्यम से व्यापक जीवन सत्य उद्घाटित होता है।

जैसे — धूल, पत्थर, धुआँ, शीशा, जंगल आदि प्रतीकों से गहन अनुभूतियाँ प्रकट की गई हैं।

(ङ) अस्तित्ववाद और आधुनिक दर्शन से संबंध

नयी कविता जीन-पॉल सार्त्र, कामू, नीत्शे जैसे अस्तित्ववादी दार्शनिकों के विचारों से प्रभावित थी।

इस कविता में “मनुष्य क्या है?”, “जीवन का उद्देश्य क्या है?”, “अकेलापन क्यों है?” — जैसे प्रश्न उठते हैं।


4. प्रमुख नयी कवि और उनकी प्रवृत्तियाँ

(1) अज्ञेय

  • नयी कविता के प्रवर्तक माने जाते हैं।
  • मुख्य विषय: व्यक्तित्व की खोज, आत्मसंघर्ष, अकेलापन, मौन की व्यंजना।
  • प्रसिद्ध काव्य संग्रह: “हरी घास पर क्षणभर”, “आँगन के पार द्वार”।

(2) शमशेर बहादुर सिंह

  • नयी कविता के सबसे कलात्मक कवि
  • विशेषता: बिंबों की सघनता, लयात्मकता, सौंदर्यबोध।
  • कविताएँ: “चुका भी नहीं हूँ मैं”, “उषा”।

(3) मुक्तिबोध

  • नयी कविता को बौद्धिक और सामाजिक दिशा देने वाले कवि।
  • विषय: आत्मसंघर्ष, वर्ग चेतना, बौद्धिक ईमानदारी, समाज में बदलाव की आकांक्षा।
  • प्रसिद्ध रचना: “अँधेरे में”, “ब्रह्मराक्षस”।

(4) रघुवीर सहाय

  • कवि के रूप में समय के यथार्थ को देखने वाले रचनाकार।
  • मुख्य बिंदु: मध्यवर्गीय व्यक्ति की असमर्थता, दोहरेपन की आलोचना।
  • कविताएँ: “हँसो, हँसो जल्दी हँसो”, “लोग भूल गए हैं”।

(5) केदारनाथ सिंह

  • ग्रामीण जीवन और आधुनिकता के द्वंद्व को बहुत प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया।
  • भाषा में मिट्टी की गंध और नए समय की बेचैनी दोनों को समेटा।
  • प्रसिद्ध कविता: “बाघ”, “जमीन पक रही है”।

5. नयी कविता बनाम प्रगतिशील कविता

नयी कविता और प्रगतिशील कविता में बड़ा अंतर दृष्टिकोण और संवेदना का रहा है।

  • प्रगतिशील कविता सामूहिक दृष्टिकोण और राजनीतिक चेतना पर बल देती है।
  • नयी कविता व्यक्ति की निजी अनुभूतियों, आत्मसंघर्ष और अस्तित्व पर केंद्रित है।

नयी कविता ने साहित्य को किसी भी ‘वाद’ या ‘दिशा’ से मुक्त कर स्वतंत्र सृजनात्मकता को महत्व दिया।


6. नयी कविता की आलोचना

हालाँकि नयी कविता ने हिन्दी साहित्य को एक नई दृष्टि दी, फिर भी इसकी कुछ आलोचनाएँ भी हुईं:

  • इसकी भाषा कई बार जटिल और दुरूह मानी गई।
  • आम पाठक इससे जुड़ नहीं पाता, क्योंकि यह बहुत निजी और गूढ़ हो जाती है।
  • इसके कवियों पर आलोचना और दर्शन में उलझने का आरोप भी लगता है।

फिर भी यह सत्य है कि नयी कविता ने हिन्दी साहित्य को एक गंभीर और आत्ममंथनशील दिशा प्रदान की।


7. नयी कविता के प्रभाव और विस्तार

नयी कविता का प्रभाव आज भी हिन्दी कविता पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

  • आज की समकालीन कविता में जो स्वतंत्र सोच, भाषा की सहजता, विषयों की विविधता, और व्यक्तिगत संवेदना दिखती है, उसकी नींव नयी कविता ने ही रखी।
  • इस कविता ने हिन्दी कविता को विश्व कविता के समकक्ष खड़ा किया, जहाँ मानव अस्तित्व, सामाजिक तनाव, और आंतरिक जिजीविषा सब कुछ समाहित था।

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