इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 की संस्कृत के अध्याय 7 नीतिश्लोकाः (Nitishloka Path Sanskrit Class 10) के अर्थ को आसान भाषा में समझेंगे। प्रत्येक श्लोक का सरल भाषा में अर्थ और व्याख्या को पढ़ेंगे। साथ ही सारे पश्नो के उत्तर को पढ़ेंगे। (नीतिश्लोकाः) (Nitishloka ka arth)
नीतिश्लोकाः
पाठ परिचय
इस पाठ (Niti Sloka) में व्यास रचित महाभारत के उद्योग पर्व के अन्तर्गत आठ अध्यायों की प्रसिद्ध विदुरनीति से संकलित दस श्लोक हैं। महाभारत युद्ध के आरम्भ में धृतराष्ट्र ने अपनी चित्तशान्ति के लिए विदुर से परामर्श किया था। विदुर ने उन्हें स्वार्थपरक नीति त्याग कर राजनीति के शाश्वत पारमार्थिक उपदेशक दिये थे। इन्हें ‘विदुरनीति‘ कहते हैं। इन श्लोकों में विदुर के अमूल्य उपदेश भरे हुए हैं। (नीतिश्लोकाः) (Nitishloka ka arth)
भूमिका —
(अयं पाठः सुप्रसिद्धस्य ग्रन्थस्य महाभारतस्य उद्योगपर्वणः अंशविशेष (अध्यायाः 33-40) रूपायाः विदुरनीतेः संकलितः। युद्धम् आसन्नं प्राप्य धृतराष्ट्रो मन्त्रिप्रवरं विदुरं स्वचित्तस्य शान्तये कांश्चित् प्रश्नान् नीतिविषयकान् पृच्छति । तेषां समुचितमुत्तरं विदुरो ददाति । तदेव प्रश्नोत्तररूपं ग्रन्थरत्नं विदुरनीतिः । इयमपि भगवद्गीतेव महाभारतस्याङ्गमपि स्वतन्त्रग्रन्थरूपा वर्तते।)
भूमिका का अर्थ —
यह पाठ सुप्रसिद्ध ग्रन्थ महाभारत के उद्योगपर्व के अंश विशेष (अध्याय 33-40) रूप में विदुरनीति से संकलित है। युद्ध को निकट पाकर धृतराष्ट्र ने मंत्री श्रेष्ठ विदुर को अपने चित की शन्ति के लिए कुछ प्रश्न निति विषयक पुछे। उनके सारे प्रश्नों का उत्तर विदुरनीति देते हैं। वहीं प्रश्नोत्तर रूप ग्रन्थरत्न विदुरनीति है। यह भी भगवद् गीता की तरह महाभारत का अंग स्वतंत्र ग्रन्थ रूप में है।
श्लोक 1—
यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः।समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते।। 1।।
अन्वयः —
यस्य कृत्यं शीतम्, उष्णं, भयं, रतिः, समृद्धि, असमृद्धिः वा (च) न विघ्नन्ति सः वै पण्डित उच्यते ।।1।।
अर्थ —
जिसके कर्म को शीत, उष्ण, भय, आनंद, समृद्धि अथवा असमृद्धि विघ्न नहीं पहुँचाते है, वहीं पंडित कहलाता है।
श्लोक 2 —
तत्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम् ।उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ।। 2।।
अन्वयः —
सर्वभूतानां तत्त्वज्ञः सर्वकर्मणां योगज्ञः मनुष्याणाम् (च) उपायज्ञः नरः पण्डितः उच्यते ।।2।।
अर्थ —
सभी जीवों के तत्वों को जानने वाला, सभी कर्मों के योग को जानने वाला और मनुष्यों के उपाय जानने वाला नर पंडित कहलाता है।
श्लोक 3 —
अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहुभाषते ।अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः ।। 3।।
अन्वयः —
मूढचेता नराधमः अनाहूतः प्रविशति, अपृष्टः (अपि) बहु भाषते, अविश्वस्ते (च) विश्वसिति ।।3।।
अर्थ —
मूर्ख हृदय वाला , नरों में नीच, बिन बुलाए प्रवेश करता है, बिन पूछे बहुत बोलता है और अविश्वास पात्र पर विश्वास करता है।
श्लोक 4 —
एको धर्मः परं श्रेयः क्षमैका शान्तिरुत्तमा।विद्यैका परमा तृप्तिः अहिंसैका सुखावहा ।। 4।।
अन्वयः —
एकः (एव) धर्मः परं श्रेयः, एका (एव) क्षमा उत्तमा शान्तिः, एका विद्या परमा तृप्तिः, एका अहिंसा (च) (परमा) सुखावहा (भवति) ।।4।।
अर्थ —
एक ही धर्म परम श्रेष्ठ है। एक ही क्षमा उतम शांति है। एक ही विद्या परम तृप्ति है और एक अहिंसा परम सुखदायक होता है।
श्लोक 5 —
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत् ।।
अन्वयः —
नरकस्य इदम् त्रिविधं द्वारं कामः, क्रोधः तथा लोभः (चेति)। तस्मात् आत्मनः नाशनम् एतत् त्रयं त्यजेत् ।।5।।
अर्थ —
नरक के तीन द्वार है- काम, क्रोध और लोभ। इससे आत्मा का नाश होता है, इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए।
श्लोक 6 —
षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ।। 6 ।।
अन्वयः —
भूतिम् इच्छता पुरुषेण इह निद्रा, तन्द्रा, भयं, क्रोधः, आलस्यं, दीर्घसूत्रता (च) षड् दोषाः हातव्याः ।।6।।
अर्थ —
उन्नति ( ऐश्वर्य ) की चाहने वाले पुरुषों को निन्द्रा, तन्द्रा (उंघना), भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता ( किसी काम को देर तक लगे रहना ) । इन छः दोषों को त्याग देना चाहिए।
श्लोक 7 —
सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते ।मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ।। 7।।
अन्वयः —
धर्मः सत्येन रक्ष्यते, विद्या योगेन रक्ष्यते, रूपं मृजया रक्ष्यते, कुलं (च) वृत्तेन रक्ष्यते ।।7।।
अर्थ —
सत्य से धर्म की रक्षा होती है। अभ्यास से विद्या की रक्षा होती है। उबटन से रूप की रक्षा होती है। वृत (आजीविका) से कुल (परिवार) की रक्षा होती है।
श्लोक 8 —
सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः ।अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ।। 8।।
अन्वयः —
हे राजन् ! सततं प्रियवादिनः पुरुषाः सुलभाः (सन्ति) तु अप्रियस्य पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः (अस्ति) ।।8।।
अर्थ —
हे राजन ! सदैव प्रिय बोलने वाले पुरूष आसानी से मिल जाते हैं, किंतु अप्रिय ही सही उचित बोलने वाले कठिन है ।
श्लोक 9 —
पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः । स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्तास्तस्माद्रक्ष्या विशेषतः ।। 9।।
अन्वयः —
गृहस्य श्रियः, गृहदीप्तयः पुण्याः महाभागाश्च स्त्रियः पूजनीयाः उक्ताः (सन्ति)। तस्मात् (एताः) विशेषतः रक्ष्याः (भवन्ति) ।।9।।
अर्थ —
घर की लक्ष्मी, घर की ज्योति, पुण्यात्मा महाभाग्यशालिनी स्त्रियाँ पूजनीय कही गई हैं । इसलिए स्त्रियाँ विशेष रूप से रक्षा करने योग्य होती है।
श्लोक 10 —
अकीर्तिं विनयो हन्ति हन्त्यनर्थं पराक्रमः ।हन्ति नित्यं क्षमा क्रोधमाचारो हन्त्यलक्षणम् ।।
अन्वयः —
विनयः अकीर्ति हन्ति, पराक्रमः अनर्थं हन्ति, क्षमा नित्यं क्रोधं हन्ति, आचारः (च) अलक्षणं हन्ति ।।1011
अर्थ —
विनय अकीर्ति का नाश करता है, पराक्रम अनर्थ का नाश करता है, क्षमा नित्य क्रोध का नाश करता है और आचार (आचरण) अलक्षण का नाश करता है।
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