जब हम किसी विशेष विषय, विद्या, या क्षेत्र की बात करते हैं, तो उसमें कुछ ऐसे शब्द होते हैं जिनका मतलब उस क्षेत्र के बाहर अलग हो सकता है या कोई मतलब ही न हो। ऐसे शब्द, जो किसी खास विषय में एक तय और निश्चित अर्थ रखते हैं, उन्हें पारिभाषिक शब्द कहा जाता है। और ऐसे सभी शब्दों का जो संग्रह होता है, उसे पारिभाषिक शब्दावली कहते हैं।
उदाहरण के लिए, “कोण”, “त्रिज्या”, “परिमेय”, “तत्व”, “प्रोटोन”, “संविधान”, “कर्म”, “क्रिया”, “लक्षण” आदि ऐसे शब्द हैं जो गणित, विज्ञान, व्याकरण या राजनीति जैसे विषयों से जुड़े हुए हैं। आम बोलचाल की भाषा में ये शब्द भले अलग रूप में समझे जाएँ, लेकिन जब इन्हें किसी विषय के अंतर्गत प्रयोग किया जाता है, तो इनका अर्थ तय होता है और वही सही माना जाता है।
पारिभाषिक शब्दावली का उपयोग मुख्यतः तकनीकी, वैज्ञानिक, औद्योगिक, कानूनी, प्रशासनिक, चिकित्सा, तथा शैक्षणिक क्षेत्रों में होता है। जैसे-जैसे विज्ञान और तकनीक का विकास हुआ, वैसे-वैसे नये-नये विषयों के लिए अलग-अलग पारिभाषिक शब्द बनाए गए ताकि जटिल बातों को स्पष्टता से समझाया जा सके।
एक अच्छी पारिभाषिक शब्दावली किसी भी भाषा की तकनीकी क्षमता को मजबूत करती है। हिन्दी में वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों को बढ़ावा देने के लिए अनेक संस्थाओं ने पारिभाषिक शब्द तैयार किए हैं, जैसे कि वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology – CSTT)। इसने गणित, भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान, विधि, कम्प्यूटर आदि क्षेत्रों की हजारों पारिभाषिक शब्दों की हिन्दी में रूपरेखा बनाई है।
पारिभाषिक शब्दावली बनाते समय यह ध्यान रखा जाता है कि:
- शब्द का अर्थ स्पष्ट हो,
- वह स्थायी उपयोग में आ सके,
- वह सरल, संक्षिप्त और स्वाभाविक हो,
- और वह मूल विचार से मेल खाता हो।
कभी-कभी अंग्रेज़ी या अन्य भाषाओं से शब्द ज्यों का त्यों ले लिए जाते हैं, जिन्हें तद्भव या रूढ़ शब्द कहा जाता है, जैसे — “कम्प्यूटर”, “रेडियो”, “इंटरनेट”। लेकिन कई बार ऐसे शब्दों के हिन्दी रूप बनाए भी जाते हैं, जैसे — “संगणक” (कम्प्यूटर), “दूरवाणी” (टेलीफोन), “अंतरजाल” (इंटरनेट)।
पारिभाषिक शब्दावली का एक और महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि यह शिक्षा और अनुवाद में बड़ी सहायक होती है। जब विद्यार्थी किसी विषय को अपनी मातृभाषा में समझते हैं और उसमें तकनीकी शब्दों का स्पष्ट अर्थ होता है, तो उन्हें विषय आसानी से समझ में आता है।
इसलिए पारिभाषिक शब्दावली भाषा और ज्ञान के बीच सेतु का काम करती है। यह किसी भी राष्ट्र की बौद्धिक समृद्धि के लिए आवश्यक उपकरण होती है।