प्रेत का बयान पर टिप्पणी


प्रेत का बयान

परिचय:

“प्रेत का बयान” हिंदी कविता की एक अनूठी और विचारोत्तेजक रचना है, जिसे धूमिल ने लिखा है। धूमिल हिंदी के प्रसिद्ध प्रगतिशील और जनकवि रहे हैं, जिन्होंने कविता को आम आदमी की आवाज़ बनाया। उनकी कविताएँ राजनीतिक विडंबना, व्यवस्था की पोल और समाज की हकीकत को तीखी भाषा में उजागर करती हैं।

“प्रेत का बयान” एक ऐसी कविता है जो पाठक को झकझोर देती है, क्योंकि इसमें उस व्यक्ति की बात है जो अब जीवित नहीं है – यानी एक “प्रेत”। लेकिन यह प्रेत कोई भूतिया कल्पना नहीं, बल्कि समाज की उस आत्मा का प्रतीक है जो शोषण, अन्याय और सत्ता की मार के कारण मर गई है।


कविता का भाव और प्रतीकात्मकता:

कविता में एक “प्रेत” बोलता है। यह प्रेत दरअसल एक आम आदमी की आत्मा है जो व्यवस्था की बर्बरता के सामने दम तोड़ चुकी है। वह प्रेत बनकर अब समाज से सवाल कर रहा है — उस देश से, उस व्यवस्था से जिसने उसे इंसान बनने ही नहीं दिया।

यहाँ “प्रेत” कविता का प्रतीक है — उस शोषित वर्ग का, जो मरकर भी सवाल करना नहीं छोड़ता।

धूमिल की भाषा में गुस्सा है, तीखापन है, लेकिन साथ ही गहरी संवेदना भी है। वे कहते हैं:

“मैं एक मृतक नागरिक का बयान हूँ…”

यह पंक्ति अपने आप में एक राजनैतिक बयान है, जो बताती है कि नागरिकता सिर्फ जिंदा शरीर से नहीं, बल्कि न्याय और अधिकार से जुड़ी होती है।


राजनीतिक और सामाजिक आलोचना:

“प्रेत का बयान” केवल एक कविता नहीं, बल्कि सत्ता, लोकतंत्र और भ्रष्टाचार के खिलाफ सीधी चुनौती है। धूमिल दिखाते हैं कि कैसे संसद, कानून, संविधान जैसे बड़े शब्द आम आदमी के जीवन में कोई बदलाव नहीं ला पाते।

कविता में लोकतंत्र की विफलता, नेताओं की धोखाधड़ी, और जनता की लाचारी साफ झलकती है।


भाषा और शैली:

धूमिल की कविता की सबसे बड़ी ताकत है — उसकी भाषा की सादगी और मारकता। वे कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं करते, लेकिन उनकी सीधी बात दिल में सीधे उतरती है।

“प्रेत का बयान” की भाषा कहीं-कहीं आम बोलचाल की है, कहीं व्यंग्यात्मक, तो कहीं बहुत गहरी मार करने वाली। उनका शिल्प पारंपरिक नहीं है — वे भावनाओं से नहीं, तथ्यों और सच्चाई से कविता रचते हैं


समकालीन relevance (प्रासंगिकता):

आज भी जब लोकतंत्र में आम आदमी की आवाज़ दबाई जाती है, जब गरीब वर्ग हाशिए पर है, तब “प्रेत का बयान” उतना ही सच लगता है जितना अपने समय में था। यह कविता हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वाकई इस देश में हर नागरिक को बराबरी का हक़ मिला है?


निष्कर्ष:

“प्रेत का बयान” एक ऐसी कविता है जो कविता होने के पार चली जाती है — यह एक दस्तावेज़ बन जाती है, उस वर्ग का, उस आदमी का, जो पूछना चाहता है: “मेरी मौत का जिम्मेदार कौन है?”

धूमिल ने इस कविता के ज़रिए न केवल साहित्य को नया तेवर दिया, बल्कि कविता को एक राजनीतिक औज़ार भी बना दिया। यह कविता आज भी उतनी ही ताजा, उतनी ही ज़रूरी है। (प्रेत का बयान)


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