जय हिन्द। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड क्लास 10 हिन्दी किताब गोधूली भाग – 2 के पद्य खण्ड के पाठ 2 ‘प्रेम-अयनि श्री राधिका | करील के कुजंन ऊपर वारौं’ | के व्याख्या को पढ़ेंगे। इस पद के रचनाकार रसखान जी है । रसखान ऐसे तो मुसलमान थे, फिर भी ये जीवन भर कृष्ण की भक्ति किए। कृष्णभक्त होने के कारण गोस्वामी विट्ठलनाथ जी ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया और पुष्टमार्ग में दीक्षा दी। इसमें रसखान जी जी श्री कृष्ण और श्री राधा जी को प्रेम रूपी वाटिका का माली – मालिन कहा है। (Bihar Board Class 10 Hindi Raskhan) (Bihar Board Class 10th Hindi Solution) ( प्रेम-अयनि श्री राधिका )

प्रेम-अयनि श्री राधिका। करील के कुजंन ऊपर वारौं।।
प्रेम-अयनि श्री राधिका: कवि परिचय
- कवि का नाम – रसखान
- रसखान के जीवन के संबंध में सही सूचनाएँ प्राप्त नहीं होतीं, परंतु इनके ग्रंथ ‘प्रेमवाटिका’ (1610 ई०) में यह संकेत मिलता है कि ये दिल्ली के पठान राजवंश में जन्म लिए थे।
- इनका रचनाकाल जहाँगीर का शासनकाल था।
- जब दिल्ली पर मुगलों का आधिपत्य हुआ और पठान वंश पराजित हुआ, तब ये दिल्ली से भाग खड़े हुए
- और ब्रजभूमि में आकर कृष्णभक्ति में तल्लीन हो गए।
- इनकी रचना से पता चलता है कि वैष्णव धर्म के बड़े गहन संस्कार इनमें थे।
- यह भी अनुमान किया जाता है कि ये पहले रसिक प्रेमी रहे होंगे,
- बाद में अलौकिक प्रेम की ओर आकृष्ट होकर भक्त हो गए।
- ‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता’ से यह पता चलता है कि गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इन्हें ‘पुष्टिमार्ग’ में दीक्षा दी।
- इनके दो ग्रंथ मिलते हैं —’प्रेमवाटिका’ और ‘सुजान रसखान’।
- ‘प्रेमवाटिका’ में प्रेम-निरूपण संबंधी रचनाएँ हैं।
- ‘सुजान रसखान’ में कृष्ण की भक्ति संबंधी रचनाएँ ।
- रसखान सवैया छंद में सिद्ध थे।
- रसखान सूफियों का हृदय लेकर कृष्ण की लीला पर काव्य रचते हैं।
- उनमें उल्लास, मादकता और उत्कटता तीनों का संयोग है।
- इनकी रचनाओं से मुग्ध होकर भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने कहा था “इन मुसलमान हरिजनन पै, कोटिन हिन्दू वारिये ।
- “सम्प्रदायमुक्त कृष्ण भक्त कवि रसखान हिंदी के लोकप्रिय जातीय कवि हैं।
- यह पाठ ‘रसखान रचनावली’ से कुछ छन्द संकलित हैं दोहे, सोरठा और सवैया।
- दोहे और सोरठा में राधा-कृष्ण के प्रेममय युगल रूप पर कवि के रसिक हृदय की रीझ व्यक्त होती है
- और सवैया में कृष्ण और उनके ब्रज पर अपना जीवन सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावमयी विदग्धता मुखरित है।
प्रेम-अयनि श्री राधिका : पाठ परिचय
प्रस्तुत पाठ हिंदी के लोकप्रिय कवि रसखान द्वारा रचित है। इस पाठ में दो पद दिए गए है। प्रथम पद दोहा और सोरठा में संकलित है और द्वितीय पद छंद सवैयों में संकलित है।
प्रथम पद में कवि राधा-कृष्ण के प्रेममय जोड़ी को बखान किया है तथा द्वितीय पद सवैया में कृष्ण और उपने ब्रज पर अपना सबकुछ न्योछावर करने की बात करते हैं। कवि ब्रज में जीना चाहता है। इसमें कवि ब्रज के प्रति अपना समस्त समर्पित करने की बात करता है।
प्रेम-अयनि श्री राधिका : प्रथम पद
प्रेम-अयनि श्री राधिका, प्रेम-बरन नँदनंद।
प्रेम-बाटिका के दोऊ, माली-मालिन-द्वन्द्व।।
मोहन छबि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं।
अँचे आवत धनुस से छूटे सर से जाहिं।।
अर्थ – कवि रसखान कहते हैं कि श्री राधा प्रेम का खजाना और श्रीकृष्ण प्रेम वर्ण है। प्रेम रूपी वाटिका के ये दोनों माली-मालीन हैं। जिस प्रकार एक माली अपनी वाटिका को सुंदर बनाए रखने के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर देता है, उसी प्रकार श्री कृष्ण और राधिका अपनी वाटिका अर्थात् प्रेम के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देते है। श्रीकृष्ण का मनोहर रूप देखने के बाद दूसरा कुछ देखने का मन नहीं करता है। आँखें इन्हीं दोनों को देखते रहना चाहती है। जिस प्रकार धनुष पर बाण तन जाती है उसी प्रकार श्री कृष्ण पर आंखे तन सी गई है। श्री कृष्ण से आंखे नही हटती है। ( प्रेम-अयनि श्री राधिका )
मो मन मानिक लै गयो चितै चोर नँदनंद।
अब बे मन मैं का करूँ परी फेर के फंद।।
प्रीतम नन्दकिशोर, जा दिन तै नैननि लग्यौ।
मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं।।
अर्थ – कवि रसखान कहते है की श्रीकृष्ण ने मेरे मन को चूरा लिया है। अब मैं बेमन हो गया हूँ। मेरा मन इच्छा रहित हो गया है। अब मैं बेमन क्या करूं, बड़ी दुविधा में पड़ गया हूँ । यहाँ पर कवि कहते हैं कि जिस दिन से श्री कृष्ण में मन लग गया है तब से ये मन कही और नहीं भटकता । हर पल कृष्ण को बिना पलक झपकाएं देखते रहने का मन करता है। ( प्रेम-अयनि श्री राधिका )
प्रेम-अयनि श्री राधिका : द्वितीय पद ( छंद )
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँपुर की तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नन्द की गाइ चराई बिसारौं।।
अर्थ – कवि रसखान अपने मन की जिज्ञासा को प्रकट करते हुए कहते हैं कि अगर श्रीकृष्ण की लाठी और कंबल मिल जाए तो मैं तीनों लोक के राज्य का त्याग कर दूँगा। और अगर केवल नंद बाबा की गाय चराने को मिल जाए, जिसे श्री कृष्ण चराते थे, तो मैं अष्ट सिद्धियों और नव निधियों के सुख को भी भूला दूँगा। ( प्रेम-अयनि श्री राधिका )
रसखानी कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक रौ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।।
अर्थ – यहाँ कवि रसखान कहते हैं कि जब से मेरी आँखों ने ब्रज के जंगलों, निकुंजों (वन-वाटिका या फुलवारी या उपवन), तालाबों तथा करील (एक प्रकार की काँटेदार झाड़ी), के सघन कुँजों (झाड़ियों, लताओं आदि से घिरा स्थान; वह जगह जहाँ लताएँ छाई हों) को देखा है, तब से मेरा मन इस मनोहर उपवनों की सुन्दरता को देखते रहने करता है । इंद्र का स्वर्ग को भी इन सब के आगे न्योछावर कर दूं। ( प्रेम-अयनि श्री राधिका )
प्रेम-अयनि श्री राधिका : पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवि ने माली-मालिन किन्हें और क्यों कहा है ?
उत्तर – कवि रसखान ने माली – मालिन श्री कृष्ण और राधा को कहा है, क्योंकि प्रेम रूपी वाटिका के दोनों ही माली – मालिन है। एक माली जिस प्रकार अपनी वाटिका को सुंदर बनाए रखने के लिए जीवन की अमूल्य निधि को समर्पित कर देता है। अपना तन – मन अर्पित करने वाला वह हमारी अपनी वाटिका को ही अमर प्रेमिका मानता है। उसी प्रकार श्रीकृष्ण अपनी वाटिका अर्थात्रा राधा को अपना समस्त समर्पित कर देते हैं।
प्रश्न 2. द्वितीय दोहे का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि रसखान द्वारा रचित द्वितीय दोहे में कवि के मन पर श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य का अंकन हुआ है। किसी के रूप सौंदर्य के प्रभाव का माध्यम आँखें होती हैं। यहां पर कवि की आँखें श्री कृष्ण के सौंदर्य में बंध कर धनुष – बाण की तरह तन सी गई है।
यहां पर उपमा अलंकार सौंदर्य दिखाई दे रहा है। यहीं भाषा के चित्रात्मक भी आकर्षण बन गई है।
प्रश्न 3. कृष्ण को चोर क्यों कहा गया है ? कवि का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर – श्री कृष्ण की मदमाती आंखें सहज किसी को आनंदित कर देती हैं। राधिका और अन्य गोपिया श्री कृष्ण के प्रेम रस के वशीभूत हो जाती हैं। वे उनसे चाह कर भी अलग नहीं रह पाती हैं। श्री कृष्ण हृदय को चुराने वाले हैं। श्रीकृष्ण के संपर्क में आने वाली गोपियाँ संसार की मर्यादाओं को भी तोड़ देती हैं और अपने मन की जिज्ञासा को प्रकट करने के लिए कुछ कहना भी चाहती हैं।
प्रश्न 4. सवैये में कवि की कैसी आकांक्षा प्रकट होती है ? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें ।
उत्तर – प्रस्तुत सवैये में कवि रसखान ने श्रीकृष्ण शरण में रहने के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया है। कवि का श्री कृष्ण के प्रति अटूट आस्था ही उसे पारलौकिक भक्ति भावना, सांसारिक सुविधा से दूर रखना चाहती है। आठों सिद्धि, नावों निधि और तीनो लोक आदि सभी को छोड़कर कवि श्री कृष्ण के शरण में आकर अपने आपको धन्य करना चाहता है। ब्रज के कण-कण में श्री कृष्ण का वास है। अतः कवि ब्रज में रहकर, नंद की गाय चरा कर श्री कृष्ण के चरणों में अर्पित हो जाना चाहता है।
प्रश्न 5. व्याख्या करें: ( प्रेम-अयनि श्री राधिका )
(क) मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं ।
उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग – 2 में संकलित रसखान के पद से ली गई है।
इस पंक्ति में कवि श्री कृष्ण की मनोहर छवि के प्रति अपने हृदय की रुझ को प्रकट किया है। साथ ही श्री कृष्ण की मनमोहक छवि को अपलक देखे जाने की पवित्र भावना को उजागर किया है।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहता है कि श्री कृष्ण में जिस दिन से मन लग गया है तब से यह मन कहीं और नहीं भटकता है। श्रीकृष्ण को अपना प्रीतम बताते हुए कभी पुनः कहता है कि मन को पवित्र करने वाले चित्र चोर को आठों पहर देखते रहने की कामना कभी समाप्त नहीं होती। श्री कृष्ण मन को हरने वाले और चित को चुराने वाले हैं। ( प्रेम-अयनि श्री राधिका )
(ख) रसखानि कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं ।
उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग – 2 में संकलित रसखान के पदों से ली गई है।
यहां पर कवि ने ब्रज पर अपना समस्त समर्पित करने की बात कही है। साथ ही कवि ने इसमें ब्रज की तालाब और वाटिका की महत्व को उजागर करते हुए निरंतर उसकी शोभा देखते रहने की भावना को प्रकट किया है।
इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहता है कि ब्रज की वाटिका और तालाब अत्यंत सुंदर और अनुपम है। इन आंखों से उसकी शोभा देखते नहीं बनती। कवि पुनः कहता है कि ब्रज के वनों के ऊपर इंद्रलोक को समर्पित कर देना भी काम ही सिद्ध होगा। ब्रज के तालाब के मनमोहक शोभा को देखते हुए कवि की आंखें नहीं थकती। कवि ने अपने इसी भावना को सहज शैली में प्रकट किया है। ( प्रेम-अयनि श्री राधिका )