1. प्रस्तावना: प्लेटो और अरस्तू – गुरु और शिष्य
प्लेटो और अरस्तू पश्चिमी दर्शन के दो महान स्तंभ हैं। प्लेटो, सुकरात के शिष्य थे, जबकि अरस्तू प्लेटो के शिष्य थे। दोनों ने यथार्थ (Reality) के विषय में अपने-अपने ढंग से गहराई से विचार किया। यद्यपि दोनों में शिक्षक-शिष्य का संबंध था, लेकिन उनके दर्शन का स्वरूप एक-दूसरे से काफी भिन्न था, विशेषकर यथार्थ की धारणा के संदर्भ में।
प्लेटो ने रूपों (Forms) या आदर्शों (Ideas) के सिद्धांत के माध्यम से यथार्थ को समझाया, जबकि अरस्तू ने अनुभव और पदार्थ (substance) के माध्यम से यथार्थ को स्पष्ट किया। इन दोनों की तुलना करने पर दर्शन की दो अलग दिशाएँ सामने आती हैं — एक आदर्शवादी (Idealist) और दूसरी यथार्थवादी (Realist)।
2. प्लेटो के यथार्थ के विचार
(क) रूपों का सिद्धांत (Theory of Forms/Ideas)
प्लेटो के अनुसार, सच्चा यथार्थ इन्द्रिय जगत में नहीं, बल्कि एक आदर्शिक जगत (world of forms) में होता है। यह भौतिक वस्तुओं की परछाईं मात्र नहीं, बल्कि उनका शाश्वत, अटल और पूर्ण स्वरूप होता है।
उदाहरण के लिए: जब हम “गोलाई” या “न्याय” की बात करते हैं, तो हम जिस गोल वस्तु को देखते हैं वह अपूर्ण है, लेकिन मन में एक पूर्ण गोलाई का आदर्श रूप होता है — वही “रूप” है और वही यथार्थ है।
(ख) रूपों के गुण:
- शाश्वत और अमर: रूप कभी नहीं बदलते, वे समय से परे हैं।
- भौतिक वस्तुओं से भिन्न: भौतिक वस्तुएँ बदलती रहती हैं, लेकिन रूप स्थायी हैं।
- ज्ञान का स्रोत: असली ज्ञान इन्द्रियों से नहीं, बल्कि बुद्धि से रूपों को जानकर प्राप्त होता है।
(ग) रूप और वस्तु का संबंध:
- भौतिक वस्तुएँ रूपों की छाया (shadow) हैं।
- जैसे कोई कलाकार मूर्ति बनाता है, वह मूर्ति “सौंदर्य” की छाया है, लेकिन सौंदर्य का सच्चा स्वरूप रूप के जगत में होता है।
(घ) दो स्तर का यथार्थ:
- संवेदी जगत (Sensible World) – जो हम अनुभव करते हैं, जो परिवर्तनशील और अस्थायी है।
- रूपों का जगत (World of Forms) – जो शाश्वत और परिवर्तनरहित है।
3. अरस्तू के यथार्थ के विचार
अरस्तू प्लेटो के शिष्य थे, लेकिन उन्होंने रूपों के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया। उनके अनुसार, यथार्थ हमारे चारों ओर के संसार में ही मौजूद है — भौतिक वस्तुओं में ही रूप और गुण दोनों होते हैं।
(क) पदार्थ और रूप (Substance and Form):
अरस्तू के अनुसार, प्रत्येक वस्तु दो तत्त्वों से बनी होती है:
- पदार्थ (Matter) – जो वस्तु का भौतिक आधार है।
- रूप (Form) – जो उस वस्तु की पहचान बनाता है।
उदाहरण: मिट्टी (पदार्थ) और उस पर बनी मूर्ति का आकार (रूप)। दोनों मिलकर “मूर्ति” नामक वस्तु का निर्माण करते हैं।
(ख) रूप वस्तु में ही है, बाहर नहीं:
अरस्तू के अनुसार, रूप किसी अन्य संसार में नहीं होता, वह वस्तु में अंतर्निहित (inherent) होता है।
प्लेटो की तरह वह रूपों को स्वतंत्र सत्ता के रूप में नहीं मानते।
(ग) यथार्थ का स्रोत – अनुभव:
अरस्तू ने अनुभव (empiricism) को प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा कि ज्ञान इन्द्रियों के अनुभव से शुरू होता है, और फिर तर्क के माध्यम से पूर्ण होता है।
(घ) प्राकृतिक यथार्थ:
अरस्तू के अनुसार, हर वस्तु में एक कारण और उद्देश्य होता है — वह किसी न किसी पूर्णता (telos) की ओर बढ़ रही होती है।
वह इसे सभी वस्तुओं का स्वाभाविक गुण मानते हैं।
4. यथार्थ की तुलना: प्लेटो बनाम अरस्तू
पक्ष | प्लेटो का दृष्टिकोण | अरस्तू का दृष्टिकोण |
---|---|---|
रूप का स्थान | रूप वस्तु से अलग, एक स्वतंत्र संसार में हैं | रूप वस्तु के भीतर ही मौजूद है |
यथार्थ का आधार | बुद्धि द्वारा प्राप्त रूप | अनुभव द्वारा ज्ञात वस्तु |
वस्तु और रूप का संबंध | वस्तु रूप की छाया है | वस्तु ही रूप और पदार्थ का संयोग है |
ज्ञान का स्रोत | तर्क और आत्मचिंतन | अनुभव और निरीक्षण |
विज्ञान का आधार | आदर्शवादी — कल्पना और धारणा | यथार्थवादी — वस्तुनिष्ठ परीक्षण |
दृष्टिकोण | आदर्शवाद (Idealism) | यथार्थवाद (Realism) |
दुनिया की विश्वसनीयता | इन्द्रिय जगत अविश्वसनीय है | इन्द्रिय जगत अध्ययन योग्य है |
5. दर्शन में उनके दृष्टिकोण के प्रभाव
(क) प्लेटो:
- उनके आदर्श रूपों का सिद्धांत दर्शन, धर्म, और सौंदर्यशास्त्र में महत्वपूर्ण रहा।
- उन्होंने अनात्मवाद और आत्मा की अमरता का समर्थन किया।
- “ज्ञान पुनःस्मरण है” — यह विचार शिक्षा और मनोविज्ञान में प्रभावशाली रहा।
(ख) अरस्तू:
- उन्होंने तर्कशास्त्र (logic), जैवविज्ञान, और नैतिकता में ठोस वैज्ञानिक ढाँचा दिया।
- यथार्थ की उनकी धारणा ने प्राकृतिक विज्ञानों को मजबूती दी।
- अरस्तू की दृष्टि से ज्ञान प्राप्ति के चरणबद्ध ढंग ने आधुनिक विज्ञान की नींव रखी।
6. उदाहरण के माध्यम से समझें
“घोड़े” का उदाहरण:
- प्लेटो के अनुसार: ‘घोड़ा’ शब्द का जो आदर्श रूप है — वह रूपों के संसार में स्थित है।
सभी घोड़े केवल उस आदर्श ‘घोड़े’ की छाया हैं। - अरस्तू के अनुसार: घोड़ा एक भौतिक जीव है, जिसमें रूप (घोड़ेपन का गुण) और पदार्थ (मांस, हड्डियाँ आदि) दोनों मौजूद हैं।
हमें घोड़े को समझने के लिए उसे देखना, महसूस करना और अध्ययन करना होगा।
7. सौंदर्य और नैतिकता के संदर्भ में दृष्टिकोण
(क) सौंदर्य:
- प्लेटो: सौंदर्य का आदर्श रूप स्वतंत्र रूप से मौजूद है। भौतिक सौंदर्य उसकी छाया है।
- अरस्तू: सौंदर्य वस्तु में ही होता है — जैसे अनुपात, संतुलन, रंग, उद्देश्य।
(ख) नैतिकता:
- प्लेटो: नैतिक गुण जैसे “न्याय” या “सच्चाई” आदर्श रूपों में निहित हैं।
- अरस्तू: नैतिकता व्यक्ति की व्यवहारिक बुद्धि (practical wisdom) और चरित्र पर आधारित है — वह क्या करता है, किसलिए करता है।
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