परिचय
ब्याज दरें किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती हैं। यह तय करती हैं कि निवेश और बचत कितनी होगी, मांग कैसे संचालित होगी, और रोजगार व उत्पादन का स्तर क्या रहेगा। इस संदर्भ में दो प्रमुख विचारधाराएं सामने आती हैं – जॉन मेनार्ड कीन्स की ब्याज की सिद्धांत (Liquidity Preference Theory of Interest) और IS-LM मॉडल जो उनके ही सिद्धांतों पर आधारित है। यह दोनों विचारधाराएं विशेष रूप से मंदी और सरकारी नीति की भूमिका को समझाने के लिए उपयोगी हैं।
ब्याज की किन्सियन सिद्धांत (Liquidity Preference Theory)
कीन्स ने ब्याज की उस पारंपरिक व्याख्या को चुनौती दी थी जो कहती थी कि ब्याज पूंजी का इनाम है और वह बचत और निवेश की बराबरी से उत्पन्न होता है। इसके विपरीत, कीन्स का मानना था कि ब्याज पैसे की मांग और पैसे की आपूर्ति के बीच के संबंध से निर्धारित होता है, न कि केवल बचत और निवेश के संतुलन से।
1. पैसे की मांग (Liquidity Preference):
कीन्स ने बताया कि लोग पैसा तीन कारणों से अपने पास रखना चाहते हैं:
- लेनदेन की मांग (Transactions Motive):
रोजमर्रा की आवश्यकताओं के लिए लोग नकद रखना पसंद करते हैं। यह आय के स्तर पर निर्भर करता है। - सावधानी की मांग (Precautionary Motive):
भविष्य में अनिश्चितताओं से बचने के लिए लोग कुछ नकदी रखना चाहते हैं। यह भी आय पर निर्भर करता है। - सट्टा प्रेरणा (Speculative Motive):
यदि लोगों को लगता है कि भविष्य में ब्याज दरें बढ़ेंगी (और बॉन्ड की कीमतें गिरेंगी), तो वे अभी बॉन्ड नहीं खरीदेंगे और नकद अपने पास रखेंगे। यह ब्याज दर पर निर्भर करता है – ब्याज दर कम होगी तो सट्टा मांग अधिक होगी।
2. पैसे की आपूर्ति (Money Supply):
पैसे की आपूर्ति सरकार या केंद्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित की जाती है। यह एक स्थिर या पूर्व-निर्धारित राशि मानी जाती है।
3. ब्याज दर का निर्धारण:
ब्याज दर उस बिंदु पर निर्धारित होती है जहाँ पैसे की मांग और पैसे की आपूर्ति बराबर होती है। अगर पैसे की मांग अधिक है और आपूर्ति सीमित है, तो ब्याज दर बढ़ेगी और इसके विपरीत।
4. तरलता जाल (Liquidity Trap):
कीन्स ने कहा कि एक ऐसा स्तर आता है जहाँ ब्याज दर इतनी कम हो जाती है कि लोग किसी भी परिस्थिति में बॉन्ड नहीं खरीदना चाहते, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे और लाभ नहीं होगा। ऐसी स्थिति को तरलता जाल कहा जाता है। यहाँ मौद्रिक नीति अप्रभावी हो जाती है, क्योंकि लोग अतिरिक्त पैसा खर्च करने के बजाय जमा कर लेते हैं।
IS-LM मॉडल की कार्यप्रणाली
IS-LM मॉडल का पूरा नाम Investment Saving – Liquidity Preference Money Supply Model है। यह मॉडल कीन्स के विचारों पर आधारित है और वास्तविक (Real) और मौद्रिक (Monetary) क्षेत्र को एक साथ मिलाकर यह दिखाता है कि आय (Y) और ब्याज दर (i) कैसे तय होती है।
इस मॉडल को John Hicks और Alvin Hansen ने विकसित किया था।
1. IS वक्र (IS Curve):
IS का अर्थ है – Investment = Saving। यह वक्र उन सभी बिंदुओं को दर्शाता है जहाँ वस्तु और सेवा बाज़ार (Goods Market) में संतुलन होता है।
- जब ब्याज दर कम होती है, तो निवेश बढ़ता है और उत्पादन/आय (Y) भी बढ़ती है।
- इसलिए IS वक्र ऋणात्मक ढलान (Downward Sloping) होता है – यानी ब्याज दर घटे तो आय बढ़ती है।
IS वक्र कैसे बनता है:
- ब्याज दर घटने से निवेश बढ़ता है।
- निवेश बढ़ने से कुल मांग और उत्पादन बढ़ता है।
- यह नए आय स्तर का निर्माण करता है।
- इन सभी बिंदुओं को जोड़ने से IS वक्र बनता है।
2. LM वक्र (LM Curve):
LM का अर्थ है – Liquidity Preference = Money Supply। यह वक्र उन सभी बिंदुओं को दर्शाता है जहाँ मुद्रा बाज़ार में संतुलन होता है।
- जब आय बढ़ती है, तो लेन-देन के लिए अधिक नकदी की मांग होती है।
- पैसे की आपूर्ति यदि स्थिर है, तो ब्याज दर को बढ़ना होगा ताकि सट्टा मांग घटे।
- इसलिए LM वक्र सकारात्मक ढलान (Upward Sloping) होता है – यानी आय बढ़े तो ब्याज दर भी बढ़ती है।
LM वक्र कैसे बनता है:
- जैसे-जैसे आय बढ़ती है, पैसे की मांग भी बढ़ती है।
- पैसे की सीमित आपूर्ति को देखते हुए ब्याज दर बढ़ जाती है।
- नए संतुलन बिंदु पर मुद्रा बाज़ार में मांग और आपूर्ति संतुलित होते हैं।
IS-LM मॉडल में संतुलन (Equilibrium):
जब IS और LM वक्र एक ही बिंदु पर मिलते हैं, तो वह अर्थव्यवस्था का संतुलन होता है। उस बिंदु पर वस्तु और मुद्रा दोनों बाज़ार संतुलन में होते हैं। उस बिंदु पर दो प्रमुख बातें तय होती हैं:
- ब्याज दर (i)
- राष्ट्रीय आय / उत्पादन (Y)
नीतिगत प्रभाव:
1. राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) और IS वक्र:
अगर सरकार खर्च बढ़ाती है या कर घटाती है, तो IS वक्र दाईं ओर खिसकता है:
- इससे आय बढ़ती है।
- ब्याज दर भी बढ़ सकती है क्योंकि मुद्रा की मांग बढ़ती है।
2. मौद्रिक नीति (Monetary Policy) और LM वक्र:
यदि केंद्रीय बैंक मुद्रा आपूर्ति बढ़ाता है (जैसे कि रेपो रेट घटा कर), तो LM वक्र दाईं ओर खिसकता है:
- इससे ब्याज दर घटती है।
- निवेश और आय दोनों बढ़ते हैं।
3. तरलता जाल में मौद्रिक नीति का प्रभाव:
जैसा कि कीन्स ने बताया, यदि अर्थव्यवस्था तरलता जाल में है, तो LM वक्र क्षैतिज हो जाता है (flat)। ऐसे में मौद्रिक नीति का प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि ब्याज दर पहले ही बहुत कम होती है। तब केवल राजकोषीय नीति ही प्रभावी होती है।
IS-LM मॉडल की उपयोगिता:
- यह मॉडल मंदी, मुद्रास्फीति, और सरकारी हस्तक्षेप के प्रभाव को समझने में मदद करता है।
- यह दिखाता है कि जब अर्थव्यवस्था मंदी में होती है, तो सरकार खर्च बढ़ा कर मांग को प्रोत्साहित कर सकती है।
- यह दर्शाता है कि दोनों नीतियाँ – मौद्रिक और राजकोषीय – मिलकर अर्थव्यवस्था को स्थिरता दे सकती हैं।
सीमाएं (Limitations):
- यह मॉडल स्थिर कीमतों को मानता है, जो वास्तविक जीवन में नहीं होता।
- यह अल्पकालिक है – दीर्घकालिक प्रभाव को नहीं बताता।
- यह केवल दो क्षेत्रों को ही जोड़ता है – वस्तु और मुद्रा बाज़ार। श्रम बाज़ार या अंतरराष्ट्रीय व्यापार की इसमें चर्चा नहीं है।
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