ब्रिटेन में निरंकुश राजशाही का उदय एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम था, जो 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान सामने आई। यह वह दौर था जब राजा ने संसद, चर्च और अन्य शक्तियों को अपने अधीन लाने की कोशिश की और शासक को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते हुए पूर्ण अधिकार प्राप्त करने की चाहत रखी गई। निरंकुशता का अर्थ है ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें राजा को सभी राजनीतिक, धार्मिक और न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं और वह अपने कार्यों के लिए किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होता। ब्रिटेन में भी यह विचार धीरे-धीरे बढ़ा, खासकर ट्यूडर और स्टुअर्ट वंश के शासनकाल में।
इस प्रक्रिया की शुरुआत ट्यूडर वंश के शासकों से हुई, विशेष रूप से हेनरी अष्टम (Henry VIII) के समय। हेनरी अष्टम ने इंग्लैंड की चर्च को पोप के अधिकार से मुक्त कर दिया और खुद को चर्च का सर्वोच्च नेता घोषित किया। इस निर्णय से धार्मिक मामलों में भी राजा की सर्वोच्चता स्थापित हो गई। इसके अलावा उसने संसद को केवल एक औपचारिक संस्था बना दिया, जिसका काम राजा के फैसलों पर मुहर लगाना भर रह गया।
हेनरी अष्टम ने चर्च की संपत्तियों को जब्त कर लिया और उसे अपने समर्थकों में बाँट दिया। इससे राजा की आर्थिक और राजनीतिक शक्ति दोनों बढ़ गईं। साथ ही, जनता में यह भावना मजबूत हुई कि राजा धर्म और राज्य दोनों का प्रमुख है। यह विचार निरंकुश राजशाही की नींव बना।
हेनरी अष्टम की बेटी, एलिज़ाबेथ प्रथम (Elizabeth I), एक और शक्तिशाली ट्यूडर शासक थीं, जिन्होंने इंग्लैंड में केंद्रीय सत्ता को और मजबूत किया। उन्होंने धार्मिक मामलों में संतुलन बनाते हुए एक स्थिर शासन चलाया, लेकिन संसद को नियंत्रण में रखा। उन्होंने “Divine Right of Kings” यानी “राजा को ईश्वर से अधिकार मिला है”—इस विचार को समर्थन दिया। यह सिद्धांत निरंकुशता को वैचारिक समर्थन देता था, जिसमें राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि मानकर उसके फैसलों को अंतिम माना जाता था।
इसके बाद स्टुअर्ट वंश के शासकों, विशेषकर जेम्स प्रथम (James I) और उनके पुत्र चार्ल्स प्रथम (Charles I) ने निरंकुशता को खुलकर अपनाया। जेम्स प्रथम ने भी “Divine Right” को जोर-शोर से प्रचारित किया और संसद को चुनौती देना शुरू किया। उसने बार-बार संसद को भंग किया और कर वसूली के लिए नए तरीके अपनाए, जिससे संसद और राजा के बीच तनाव बढ़ता गया।
चार्ल्स प्रथम ने तो निरंकुशता की सारी हदें पार कर दीं। उसने संसद की अनुमति के बिना कर वसूला, विरोध करने वालों को जेल में डाला और चर्च पर अपनी मर्जी थोपने की कोशिश की। इस वजह से देश में असंतोष फैला और अंततः 1642 में गृह युद्ध (Civil War) हुआ, जिसमें राजा और संसद के समर्थकों के बीच संघर्ष हुआ।
गृह युद्ध में संसद की जीत हुई और चार्ल्स प्रथम को 1649 में मृत्युदंड दे दिया गया। इसके बाद कुछ समय तक इंग्लैंड में गणराज्य बना, लेकिन निरंकुशता की जड़ें फिर भी कमजोर नहीं पड़ी थीं। 1660 में राजशाही की पुनः स्थापना हुई और चार्ल्स द्वितीय राजा बने।
हालाँकि, निरंकुश राजशाही का अंत “ग्लोरियस रेवोल्यूशन” (1688) के बाद हुआ, जब संसद ने विलियम और मैरी को शर्तों पर राजा-रानी बनाया और “बिल ऑफ राइट्स” लागू किया गया। लेकिन 16वीं और 17वीं शताब्दी के बीच जो घटनाएँ घटीं, उन्होंने ब्रिटेन में निरंकुश राजशाही को जन्म दिया और उसे कुछ समय तक टिकाए रखा।
इस तरह, ब्रिटेन में निरंकुशता का उदय ट्यूडर और स्टुअर्ट शासकों की नीतियों, धार्मिक नियंत्रण, संसद की अनदेखी और “ईश्वर-प्रदत्त अधिकार” की धारणा के कारण हुआ। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे बढ़ी और अंततः सत्ता संघर्ष की ओर ले गई।