भारतेन्दुयुगीन हिन्दी पत्रकारिता पर निबंध

प्रस्तावना

भारतेन्दुयुग हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण माना जाता है। यह काल हिन्दी भाषा के नवजागरण, सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय भावना के उदय का युग था। इस दौर में साहित्यकारों और पत्रकारों ने समाज को नई दिशा देने का कार्य किया। इस युग का नेतृत्व भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने किया, जिनकी रचनात्मकता, देशभक्ति और पत्रकारिता ने हिन्दी समाज को एक नई दृष्टि दी। इसी कारण यह काल भारतेन्दुयुग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

हिन्दी पत्रकारिता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारतेन्दुयुगीन पत्रकारिता को समझने के लिए उसके पूर्ववर्ती काल का उल्लेख आवश्यक है। हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत 1826 में ‘उदन्त मार्तण्ड’ नामक पत्र से हुई, जिसके संपादक पं. जुगल किशोर शुक्ल थे। यह हिन्दी का पहला समाचार पत्र था। इसके बाद हिन्दी में कई पत्र प्रकाशित हुए, परंतु वे सीमित प्रभाव वाले थे। समाज में अंग्रेजी शासन की नीतियों, गरीबी, अशिक्षा और अंधविश्वास के कारण जनता में जागरूकता की कमी थी। ऐसे में भारतेन्दुयुग का आगमन हिन्दी पत्रकारिता को नई दिशा देने वाला सिद्ध हुआ।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन और व्यक्तित्व

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850–1885) का जन्म वाराणसी में एक सम्पन्न और विद्वान परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही प्रतिभाशाली थे और हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने अपने अल्प जीवन में हिन्दी साहित्य, नाटक, कविता और पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उनकी दृष्टि में पत्रकारिता केवल समाचार देने का माध्यम नहीं थी, बल्कि समाज सुधार और जनजागरण का सशक्त साधन थी।

भारतेन्दुयुगीन पत्रकारिता की प्रमुख विशेषताएँ

भारतेन्दुयुगीन हिन्दी पत्रकारिता की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  1. राष्ट्रीय चेतना का विकास:
    इस युग की पत्रकारिता में देशभक्ति और राष्ट्रीय स्वाभिमान की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना और भारतीय संस्कृति की प्रशंसा इस युग की पत्रिकाओं में प्रमुख रूप से मिलती है।
  2. सामाजिक सुधार की भावना:
    भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और उनके समकालीन पत्रकारों ने समाज में फैली कुरीतियों, अशिक्षा, बालविवाह, पर्दा-प्रथा और जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उनके लेखों में सामाजिक जागरूकता का स्वर प्रमुख था।
  3. भाषा की सरलता और जनप्रियता:
    इस युग में हिन्दी पत्रकारिता में खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग बढ़ा। भाषा को जनता की समझ में आने योग्य बनाया गया। संस्कृतनिष्ठ और फारसी शब्दों के स्थान पर सरल, प्रवाहपूर्ण हिन्दी ने स्थान लिया।
  4. साहित्यिकता और पत्रकारिता का संगम:
    भारतेन्दुयुगीन पत्रकारिता में साहित्यिकता का विशेष स्थान था। लेखों और संपादकीयों में साहित्यिक सौंदर्य, व्यंग्य और प्रभावशाली भाषा का प्रयोग हुआ। यह पत्रकारिता केवल सूचना देने वाली नहीं, बल्कि विचार जगाने वाली थी।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का पत्रकारिता में योगदान

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को आधुनिक हिन्दी पत्रकारिता का जनक कहा जाता है। उन्होंने कई पत्रों और पत्रिकाओं का संपादन किया, जिनके माध्यम से उन्होंने समाज और राष्ट्र की चेतना को जगाया। उनके प्रमुख पत्र निम्नलिखित हैं:

  1. कवि वचन सुधा (1868):
    यह भारतेन्दु द्वारा सम्पादित एक प्रमुख पत्रिका थी, जो हिन्दी साहित्य और समाज सुधार पर केंद्रित थी। इस पत्रिका में सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यिक लेख प्रकाशित होते थे।
  2. हरिश्चन्द्र मैगज़ीन (1873):
    यह मासिक पत्रिका भी भारतेन्दु के संपादन में निकली। इसमें राष्ट्रीय मुद्दों, शिक्षा और संस्कृति से जुड़ी सामग्री प्रकाशित होती थी।
  3. बाल बोधिनी पत्रिका:
    यह पत्रिका विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए प्रकाशित की गई थी। इसका उद्देश्य समाज के उपेक्षित वर्गों को ज्ञान और शिक्षा से जोड़ना था।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपने लेखों में ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों की आलोचना की और भारतीय समाज को आत्मनिर्भरता, शिक्षा और एकता की ओर प्रेरित किया। उनकी पत्रकारिता का लक्ष्य केवल सत्ता की आलोचना नहीं, बल्कि समाज को सही दिशा में ले जाना था।

भारतेन्दु के समकालीन पत्रकार और उनका योगदान

भारतेन्दुयुगीन पत्रकारिता केवल भारतेन्दु तक सीमित नहीं थी। उनके साथ कई अन्य प्रतिभाशाली पत्रकार और साहित्यकार इस आंदोलन में जुड़े थे, जिनमें प्रमुख नाम हैं:

  • बालकृष्ण भट्ट: उन्होंने हिन्दी प्रदीप नामक पत्र का संपादन किया। यह पत्र हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • प्रतापनारायण मिश्र: ब्राह्मण नामक पत्रिका के माध्यम से उन्होंने सामाजिक सुधार और धार्मिक आडंबरों पर प्रहार किया।
  • राधाचरण गोस्वामी: इन्होंने सुधाकर नामक पत्रिका निकाली, जिसमें समाज और धर्म से संबंधित विषयों पर गंभीर चर्चा होती थी।

इन सभी पत्रों ने हिन्दी पत्रकारिता में विचारधारा, सामाजिक चेतना और जन-जागरण को मजबूत किया।

भारतेन्दुयुगीन पत्रकारिता का सामाजिक प्रभाव

भारतेन्दुयुगीन पत्रकारिता ने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया। पहली बार हिन्दी जनता ने अपने ही भाषा में अपने मुद्दों पर विचार किया। इस युग की पत्रकारिता ने समाज को शिक्षित, संगठित और जागरूक किया।

  • महिलाओं की शिक्षा, सामाजिक समानता और राष्ट्रीय एकता जैसे विषयों पर व्यापक चर्चा होने लगी।
  • ग्रामीण जनता को भी राष्ट्रीय मुद्दों से जोड़ा गया।
  • पत्रकारिता एक सामाजिक आंदोलन बन गई, जिसने आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन को वैचारिक आधार दिया।

हिन्दी पत्रकारिता में भारतेन्दुयुग का महत्व

भारतेन्दुयुग को हिन्दी पत्रकारिता का स्वर्णयुग कहा जा सकता है। इस काल में पत्रकारिता केवल लेखन नहीं, बल्कि एक सामाजिक मिशन थी। इस युग में:

  • हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठा मिली।
  • पत्रकारिता के माध्यम से समाज सुधार और राष्ट्रीयता की भावना मजबूत हुई।
  • साहित्य, समाज और राजनीति का समन्वय स्थापित हुआ।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिन्दी पत्रकारिता को उद्देश्यपूर्ण दिशा दी। उन्होंने इसे जनता की आवाज बनाया। उनके लेख आज भी हिन्दी पत्रकारिता के आदर्श माने जाते हैं।


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