भारत एक विकासशील देश है और उसका औद्योगिक क्षेत्र उसकी आर्थिक तरक्की, रोजगार सृजन और तकनीकी प्रगति का महत्वपूर्ण आधार है। कृषि और सेवा क्षेत्र के साथ-साथ उद्योग क्षेत्र देश की GDP, निर्यात, विदेशी निवेश और राष्ट्रीय समृद्धि में भी मुख्य भूमिका निभाता है। स्वतंत्रता के बाद भारत ने योजनाबद्ध औद्योगिक विकास की दिशा में कई प्रयास किए, जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की स्थापना, लघु और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना, और 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण के तहत निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देना।
आज के समय में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है और उसका औद्योगिक ढांचा भी समय के साथ काफी विकसित हुआ है। हालांकि इसमें कई उपलब्धियाँ हैं, फिर भी अनेक समस्याएं इस क्षेत्र की प्रगति में बाधा बनी हुई हैं।
भारतीय औद्योगिक क्षेत्र की वर्तमान स्थिति
भारत का औद्योगिक क्षेत्र विविध और विस्तृत है। इसमें बड़े उद्योग, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (MSME), सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, निजी कंपनियाँ और स्टार्टअप शामिल हैं। यह क्षेत्र कृषि और सेवा क्षेत्र के बीच की कड़ी है जो उत्पादन, रोजगार और तकनीकी विकास को संतुलित करता है।
1. उद्योगों का योगदान GDP में
वर्तमान में भारत के औद्योगिक क्षेत्र का योगदान कुल GDP में लगभग 25% के आसपास है। यह योगदान निर्माण (Manufacturing), खनन (Mining), बिजली उत्पादन (Electricity Generation), निर्माण कार्य (Construction) और गैस तथा जल आपूर्ति जैसे उपक्षेत्रों से आता है।
2. औद्योगिक विविधता
भारत में टेक्सटाइल, इस्पात, सीमेंट, रसायन, वाहन निर्माण, फार्मा, IT हार्डवेयर, पेट्रोलियम, खाद्य प्रसंस्करण जैसे विविध क्षेत्रों में उद्योग विकसित हो चुके हैं। नए जमाने के उद्योग जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर निर्माण, ग्रीन एनर्जी उपकरण और रक्षा उत्पादन जैसे क्षेत्र भी तेजी से उभर रहे हैं।
3. ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान
सरकार ने “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसे अभियानों के जरिए घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित किया है। इससे रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग और फार्मा जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ा है।
4. MSME क्षेत्र की भूमिका
भारत में लगभग 6 करोड़ से अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (MSMEs) हैं, जो देश की औद्योगिक इकाइयों का लगभग 90% से अधिक हैं। यह क्षेत्र लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार देता है और निर्यात में भी लगभग 45% योगदान करता है।
5. स्टार्टअप और टेक्नोलॉजी-आधारित औद्योगिकीकरण
वर्तमान समय में भारत में स्टार्टअप संस्कृति बढ़ी है। विशेषकर टेक्नोलॉजी, AI, फिनटेक, ई-कॉमर्स, हेल्थटेक जैसे क्षेत्रों में नए उद्योग उभर रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकारें इनका समर्थन कर रही हैं।
6. विदेशी निवेश में वृद्धि
2020-23 के बीच भारत ने रिकॉर्ड विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) आकर्षित किया है। कंपनियाँ चीन के विकल्प के रूप में भारत को चुन रही हैं।
भारतीय औद्योगिक क्षेत्र की समस्याएं
हालांकि भारत ने औद्योगिकीकरण की दिशा में कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं, लेकिन इस क्षेत्र को कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ये समस्याएं विकास की गति को धीमा करती हैं और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बाधा बनती हैं।
1. अपर्याप्त आधारभूत संरचना (Infrastructure)
- भारत के कई औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली, पानी, सड़क, परिवहन और गोदाम जैसी सुविधाओं की कमी है।
- लॉजिस्टिक्स की लागत अन्य देशों के मुकाबले अधिक है, जिससे भारतीय उत्पाद महंगे हो जाते हैं।
2. उच्च उत्पादन लागत
- कच्चे माल की कीमतों में अस्थिरता, महंगी बिजली, उच्च ब्याज दरें और श्रम कानूनों की जटिलता के कारण उत्पादन लागत अधिक होती है।
- इससे घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से लड़ने में कठिनाई होती है।
3. तकनीकी पिछड़ापन और नवाचार की कमी
- भारत में कई उद्योगों में अभी भी पारंपरिक तकनीकों का उपयोग होता है।
- अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश कम है, जिससे भारतीय उद्योग वैश्विक नवाचार में पिछड़ जाते हैं।
4. कुशल श्रमिकों की कमी
- शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार की ज़रूरत है।
- स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम शुरू हुए हैं, लेकिन मांग के अनुसार कुशल श्रमिकों की उपलब्धता अभी भी सीमित है।
5. पर्यावरणीय नियमों और स्वीकृतियों में देरी
- उद्योगों को पर्यावरणीय मंजूरी, ज़मीन की अनुमति और अन्य सरकारी मंजूरी प्राप्त करने में समय लगता है, जिससे प्रोजेक्ट्स में देरी होती है।
- कई बार यह लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के कारण और जटिल हो जाता है।
6. MSME क्षेत्र की समस्याएं
- MSME उद्योगों को पूंजी, तकनीक और बाज़ार तक पहुंचने में कठिनाई होती है।
- COVID-19 महामारी के दौरान यह क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ और अभी तक पूरी तरह से उबर नहीं पाया है।
7. निर्यात में स्थिरता की कमी
- भारत के निर्यात में विविधता की कमी है, और कई बार वैश्विक मांग में गिरावट या व्यापार प्रतिबंधों का असर अधिक पड़ता है।
- कई भारतीय उत्पाद गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरते।
8. औद्योगिक क्षेत्रों में असमानता
- औद्योगिक विकास मुख्य रूप से कुछ राज्यों—जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, पंजाब तक सीमित है।
- बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में औद्योगिक आधार अभी भी कमजोर है, जिससे क्षेत्रीय असमानता बनी हुई है।
9. बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ऋण की कठिनाई
- विशेष रूप से MSME को ऋण प्राप्त करना मुश्किल होता है क्योंकि बैंकों को जोखिम अधिक लगता है।
- कागजी कार्रवाई, गारंटी और ब्याज दरें छोटे उद्योगों के लिए चुनौतीपूर्ण हैं।
10. वैश्विक प्रतिस्पर्धा और मुक्त व्यापार समझौते (FTA)
- भारत ने कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं, जिससे सस्ते विदेशी उत्पाद भारतीय बाज़ार में आ जाते हैं।
- इससे घरेलू उद्योगों को नुकसान होता है, खासकर छोटे और मध्यम दर्जे के उत्पादकों को।
नवीन प्रयास और संभावनाएं
हाल के वर्षों में भारत सरकार ने औद्योगिक क्षेत्र को मज़बूत करने के लिए अनेक प्रयास किए हैं:
- उद्योग 4.0 (Industry 4.0): ऑटोमेशन, AI, IoT और स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की पहल।
- PLI योजना (Production Linked Incentive): घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए।
- Gati Shakti योजना: इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण।
- Startup India और Digital India: तकनीकी उद्योगों और नवाचारों को प्रोत्साहित करने के लिए।
इन पहलों से उम्मीद है कि भारत का औद्योगिक क्षेत्र आने वाले वर्षों में वैश्विक मानकों के अनुसार और अधिक प्रतिस्पर्धी व टिकाऊ बन पाएगा।
इस प्रकार, भारतीय औद्योगिक क्षेत्र वर्तमान में एक परिवर्तनशील दौर से गुजर रहा है—जहाँ उपलब्धियाँ और अवसर हैं, वहीं चुनौतियाँ और समस्याएँ भी कम नहीं हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए समन्वित प्रयास, नीति सुधार, तकनीकी नवाचार और सामाजिक भागीदारी आवश्यक है, ताकि यह क्षेत्र भारत के समग्र विकास में और भी अधिक योगदान दे सके।