भारत के आर्थिक विकास में कृषि की भूमिका पर चर्चा

भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। स्वतंत्रता के समय से लेकर आज तक कृषि न केवल अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है, बल्कि यह देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक व्यवस्था का भी अभिन्न हिस्सा रही है। भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा—लगभग 45 प्रतिशत से अधिक—आज भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।

अर्थव्यवस्था के संदर्भ में जब हम कृषि की भूमिका की बात करते हैं, तो हमें यह समझना होगा कि यह क्षेत्र न सिर्फ भोजन उपलब्ध कराता है, बल्कि औद्योगिक विकास, व्यापार, रोजगार, विदेशी मुद्रा, कच्चे माल, बाजार और समग्र विकास के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

नीचे विभिन्न पहलुओं से भारत के आर्थिक विकास में कृषि की भूमिका को विस्तार से समझाया गया है:


1. रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत

भारत में कृषि क्षेत्र अभी भी सबसे अधिक लोगों को रोज़गार देने वाला क्षेत्र है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली अधिकांश आबादी खेती, पशुपालन, मत्स्य पालन या कृषि आधारित अन्य कार्यों में संलग्न है।

  • 2023 तक के आंकड़ों के अनुसार, भारत की कुल कार्यशील जनसंख्या में लगभग 45-50% लोग कृषि या कृषि से जुड़े क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
  • यह क्षेत्र असंगठित क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा भी है, जहाँ पर लोगों को दैनिक आधार पर रोजगार मिलता है।

कृषि का यह योगदान न केवल लोगों को जीवन-निर्वाह के साधन देता है, बल्कि उन्हें शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करने से भी रोकता है।


2. राष्ट्रीय आय (GDP) में योगदान

स्वतंत्रता के समय कृषि क्षेत्र भारत की GDP का लगभग 50% से अधिक हिस्सा देता था। हालांकि समय के साथ सेवा और औद्योगिक क्षेत्रों के बढ़ने से कृषि का प्रतिशत घटा है, फिर भी यह अभी भी देश की GDP का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

  • वर्तमान में कृषि क्षेत्र GDP में लगभग 15-18% का योगदान देता है।
  • जब GDP में कृषि का योगदान गिरा है, तब भी यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था की स्थिरता और खाद्य सुरक्षा बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।

3. खाद्य सुरक्षा और आत्मनिर्भरता

कृषि का सबसे बड़ा योगदान यह है कि यह देश की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करता है। भारत की विशाल जनसंख्या को प्रतिदिन भोजन की आवश्यकता होती है और यह ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र निभाता है।

  • 1960 के दशक में जब भारत को अनाज के लिए विदेशी सहायता पर निर्भर रहना पड़ता था, तब हरित क्रांति के ज़रिए गेहूं और चावल के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की गई।
  • आज भारत दुनिया में चावल, गेहूं, दूध, फल, सब्ज़ी और दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है।

खाद्य सुरक्षा किसी भी देश की राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता का आधार होती है, और यह कृषि के बिना संभव नहीं है।


4. औद्योगिक विकास को समर्थन

कृषि न केवल उपभोग के लिए उत्पादन करती है, बल्कि यह उद्योगों के लिए कच्चा माल भी प्रदान करती है।

  • कपड़ा उद्योग को कपास, जूट उद्योग को जूट, चीनी उद्योग को गन्ना, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को फल और सब्ज़ियाँ आदि कृषि क्षेत्र से प्राप्त होते हैं।
  • कृषि आधारित उद्योग, जैसे—डेयरी, बायोफ्यूल, खाद्य प्रसंस्करण, ग्रामीण हस्तशिल्प आदि, बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार भी देते हैं।

इस प्रकार कृषि औद्योगिक विकास की आधारशिला के रूप में कार्य करती है।


5. निर्यात में योगदान और विदेशी मुद्रा अर्जन

भारत की अर्थव्यवस्था में निर्यात का बड़ा हिस्सा कृषि और इससे जुड़े उत्पादों से आता है।

  • भारत चाय, कॉफी, मसाले, चावल, तंबाकू, कपास, फल-सब्ज़ियाँ, मांस आदि का प्रमुख निर्यातक देश है।
  • इन वस्तुओं के निर्यात से भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है, जो व्यापार संतुलन बनाए रखने और विदेशी कर्ज़ चुकाने में मदद करती है।

कृषि आधारित निर्यात विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की आय बढ़ाने और कृषि क्षेत्र को वैश्विक बाज़ार से जोड़ने में सहायक होता है।


6. बाजार और मांग सृजन में योगदान

कृषि क्षेत्र में जब उत्पादन बढ़ता है और किसानों की आमदनी में इज़ाफा होता है, तो वे अन्य उत्पादों—जैसे वस्त्र, उपभोक्ता सामान, मोबाइल, ट्रैक्टर, दवा आदि—की खरीद करते हैं।

  • इससे देश में मांग बढ़ती है, जिससे औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों का विकास होता है।
  • कृषि क्षेत्र न केवल वस्तुओं का उत्पादक है, बल्कि वह एक बड़ा उपभोक्ता भी है।

यानी कृषि क्षेत्र भारतीय बाज़ार की मांग और खपत की शक्ति को बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाता है।


7. ग्रामीण विकास और आत्मनिर्भरता का आधार

भारत की अधिकांश आबादी गांवों में रहती है। गांवों की आर्थिक स्थिति का सीधा संबंध वहां की कृषि व्यवस्था से होता है।

  • जब फसलें अच्छी होती हैं और कृषि से आय होती है, तो ग्रामीण क्षेत्र में पैसा आता है, जिससे स्थानीय बाज़ार, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं में सुधार होता है।
  • ग्रामीण विकास योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, किसान सम्मान निधि, Fasal Bima Yojana आदि का आधार भी कृषि है।

कृषि का सशक्त होना, ग्रामीण भारत के आर्थिक और सामाजिक विकास का मुख्य मार्ग है।


8. सहायक क्षेत्रों के विकास में योगदान

कृषि के साथ-साथ कई सहायक क्षेत्र भी विकसित होते हैं, जैसे:

  • पशुपालन: दूध, मांस, अंडे आदि के लिए।
  • मत्स्य पालन: तटीय राज्यों में बड़ी संख्या में लोग इस पर निर्भर हैं।
  • कृषि यंत्र निर्माण: ट्रैक्टर, थ्रेशर, हार्वेस्टर जैसे यंत्रों की मांग बढ़ी है।

ये सहायक क्षेत्र भी कृषि पर आधारित होते हैं और रोजगार व आर्थिक गतिविधि में योगदान करते हैं।


9. सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व

भारत की संस्कृति, परंपराएं और त्योहार भी कृषि से गहराई से जुड़े हुए हैं। जैसे—पोंगल, बैसाखी, ओणम, मकर संक्रांति जैसे त्योहार फसल कटाई के साथ जुड़े होते हैं।

  • कृषि न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक स्थिरता और जीवन पद्धति का भी आधार है।
  • किसान देश की “अन्नदाता” की भूमिका में होते हैं, जिनके श्रम से करोड़ों लोगों का पेट भरता है।

10. जलवायु और पर्यावरणीय संतुलन में भूमिका

सतत कृषि पद्धतियाँ जैसे जैविक खेती, प्राकृतिक खेती, फसल विविधता आदि पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में सहायक हैं।

  • कृषि वृक्षारोपण और हरियाली बढ़ाने में मदद करती है।
  • जैविक खाद, प्राकृतिक सिंचाई आदि से जल संरक्षण, मृदा की गुणवत्ता और प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है।

इससे सतत विकास के लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने में मदद मिलती है।


अत: भारत के आर्थिक विकास में कृषि की भूमिका बहुआयामी है। यह न केवल आजीविका का स्रोत है, बल्कि खाद्य सुरक्षा, औद्योगिक विकास, निर्यात, ग्रामीण समृद्धि और सामाजिक स्थिरता के लिए भी आवश्यक है। एक सशक्त और टिकाऊ कृषि व्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था को मज़बूत, समावेशी और आत्मनिर्भर बना सकती है।

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