सुखवाद (Hedonism) एक दर्शन है, जिसके अनुसार सुख ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है। परंतु सुखवाद के भी कई प्रकार होते हैं। इनमें से दो प्रमुख रूप हैं—मनोवैज्ञानिक सुखवाद (Psychological Hedonism) और नैतिक सुखवाद (Ethical Hedonism)। ये दोनों एक-दूसरे से जुड़े तो हैं, लेकिन इनका दृष्टिकोण, उद्देश्य और उपयोग अलग-अलग होता है।
इन दोनों के बीच अंतर को समझने के लिए पहले हमें दोनों की परिभाषा, विशेषताएँ और दृष्टिकोण को समझना होगा।
1. मनोविज्ञान (या मनोवैज्ञानिक) सुखवाद क्या है?
मनोवैज्ञानिक सुखवाद एक वर्णनात्मक सिद्धांत (descriptive theory) है, जो यह बताता है कि मनुष्य स्वभावतः केवल सुख प्राप्त करने और दुख से बचने की इच्छा करता है। इसका उद्देश्य यह नहीं है कि मनुष्य को क्या करना चाहिए, बल्कि यह बताता है कि वह क्या करता है।
इस विचार के अनुसार, हर व्यक्ति जो भी कार्य करता है, वह अंततः अपने सुख के लिए ही करता है। चाहे वह दूसरों की मदद करे, धर्म का पालन करे या बलिदान दे—उसके पीछे भी कोई न कोई सुख प्राप्त करने की भावना छिपी होती है। यह सुख शारीरिक हो सकता है, मानसिक हो सकता है, या आत्मिक संतोष के रूप में भी हो सकता है।
उदाहरण के लिए:
- कोई व्यक्ति गरीबों की मदद करता है, तो मनोवैज्ञानिक सुखवाद कहेगा कि वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि इससे उसे आत्मिक संतोष (एक प्रकार का सुख) मिलता है।
- कोई मां अपने बच्चे के लिए त्याग करती है, तो यह त्याग भी उस सुख की वजह से होता है जो उसे अपने बच्चे की खुशी से प्राप्त होता है।
इस सिद्धांत में नैतिकता का कोई मूल्य नहीं होता, केवल मानवीय प्रवृत्तियों और इच्छाओं की बात होती है।
2. नैतिक सुखवाद क्या है?
नैतिक सुखवाद एक मानकात्मक सिद्धांत (normative theory) है, जो यह बताता है कि मनुष्य को क्या करना चाहिए। यह सिद्धांत कहता है कि मनुष्य को ऐसा आचरण करना चाहिए जिससे अधिकतम सुख की प्राप्ति हो और दुख का अंत हो। इस सिद्धांत में न केवल अपने सुख की बात होती है, बल्कि सभी संबंधित व्यक्तियों के सुख को महत्व दिया जाता है।
नैतिक सुखवाद इस बात पर ज़ोर देता है कि यदि कोई कार्य दूसरों को पीड़ा देता है, तो वह नैतिक रूप से गलत है, चाहे उससे करने वाले को सुख क्यों न मिल रहा हो।
इसका प्रमुख उदाहरण है उपयोगितावाद (Utilitarianism)—जिसे जेरेमी बेंथम और जॉन स्टुअर्ट मिल ने विकसित किया। इसके अनुसार “सबसे अधिक लोगों के लिए सबसे अधिक सुख” नैतिक आचरण का आधार होना चाहिए।
उदाहरण:
- कोई डॉक्टर यदि किसी रोगी को झूठी आशा देकर उससे पैसे कमाता है, तो यह भले ही उसके लिए सुखद हो, लेकिन नैतिक सुखवाद के अनुसार यह गलत है, क्योंकि इससे रोगी को दुख होता है।
- अगर कोई व्यक्ति अपना आराम छोड़कर समाज सेवा करता है, तो यह नैतिक सुखवाद के अनुसार प्रशंसनीय है, क्योंकि इससे समाज में अधिक लोगों को लाभ (सुख) होता है।
मनोविज्ञान और नैतिक सुखवाद में प्रमुख अंतर
आधार | मनोवैज्ञानिक सुखवाद | नैतिक सुखवाद |
---|---|---|
स्वरूप | यह एक वर्णनात्मक सिद्धांत है | यह एक मानकात्मक सिद्धांत है |
उद्देश्य | यह बताता है कि लोग क्या करते हैं | यह बताता है कि लोगों को क्या करना चाहिए |
दृष्टिकोण | मनुष्य अपने व्यक्तिगत सुख के लिए कार्य करता है | मनुष्य को सभी के अधिकतम सुख को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए |
नैतिकता का स्थान | इसमें नैतिकता का कोई स्थान नहीं है | इसमें नैतिकता मूल में होती है |
उदाहरण | “मैं दान इसलिए करता हूँ क्योंकि मुझे अच्छा लगता है” | “मुझे दान करना चाहिए क्योंकि इससे दूसरों को लाभ होता है” |
विचारधारा में अंतर
- मनोवैज्ञानिक सुखवाद मानव व्यवहार का वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करता है। यह मानव प्रवृत्तियों को समझने की कोशिश करता है कि लोग क्यों और कैसे सुख की ओर आकर्षित होते हैं।
- नैतिक सुखवाद एक प्रकार का दर्शन है जो यह निर्धारित करता है कि सुख की प्राप्ति का सही मार्ग क्या है और कौन-से कार्य नैतिक रूप से उचित हैं।
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