मर्सिया पर टिप्पणी


परिचय:

मर्सिया उर्दू साहित्य की एक महत्वपूर्ण और भावनात्मक काव्य विधा है, जो शोक और वीरता का संगम है। यह एक प्रकार की शोक कविता होती है, जो विशेष रूप से किसी की मृत्यु पर, विशेषकर शहीदों या किसी महापुरुष के निधन पर लिखी जाती है। मर्सिया में दुःख, करुणा, श्रद्धा, और वीरगाथा – सब कुछ एक साथ देखने को मिलता है।

उर्दू साहित्य में मर्सिया की विशेष पहचान है, और इसका सबसे गहरा संबंध कर्बला की घटना से जुड़ा है। कर्बला के शहीदों, खासकर हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों की कुर्बानी को याद करते हुए जो काव्य रचनाएँ लिखी गईं, उन्हें मर्सिया कहा गया।


मर्सिया का शाब्दिक अर्थ:

‘मर्सिया’ अरबी शब्द ‘रसा’ से बना है, जिसका अर्थ होता है – शोक व्यक्त करना या किसी की मृत्यु पर दुःख प्रकट करना। यह एक प्रकार की मार्मिक कविता होती है, जो किसी मृत व्यक्ति की महानता, चरित्र और बलिदान को सम्मान के साथ चित्रित करती है।


मर्सिया की उत्पत्ति और विकास:

अरबी और फारसी से उर्दू तक:

मर्सिया की परंपरा की शुरुआत अरबी साहित्य में हुई, फिर यह फारसी के माध्यम से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुँची। लेकिन उर्दू भाषा ने इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान और शिल्प से नई ऊँचाइयाँ दीं।

उत्तर भारत में मर्सिया का विकास:

विशेषकर लखनऊ, दकन, और हैदराबाद मर्सिया लेखन के प्रमुख केंद्र बने। अवध में नवाबों की सरपरस्ती में मर्सिया लेखन को खूब बढ़ावा मिला। इसे न केवल धार्मिक बल्कि साहित्यिक गौरव भी प्राप्त हुआ।


मर्सिया की विशेषताएँ:

  1. शोक और श्रद्धांजलि:
    मर्सिया में शहीद की बहादुरी, त्याग, चरित्र और जीवन की घटनाओं को गहराई से दर्शाया जाता है।
  2. नाटकीयता और भावनात्मकता:
    इसमें घटनाओं का चित्रण इतना जीवंत होता है कि पाठक या श्रोता स्वयं को उस समय और स्थान में अनुभव करता है।
  3. काव्यात्मक भाषा:
    मर्सिया में भाषा बेहद भावुक, प्रतीकात्मक और साहित्यिक होती है। इसमें शेर, मुसद्दस (छः पंक्तियों वाला छंद), और कसीदे जैसी काव्य शैलियाँ पाई जाती हैं।
  4. धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव:
    विशेष रूप से शिया मुस्लिम समाज में मर्सिया का धार्मिक महत्व है। मुहर्रम के दौरान यह पढ़ा और सुना जाता है।

प्रमुख मर्सिया लेखक:

मिर्ज़ा सलामत अली ‘दबीर’

  • इसको कथात्मक और नाटकीय रूप देने वाले प्रमुख शायर।
  • उनकी रचनाओं में युद्ध का वर्णन बहुत ही सजीव होता है।

मिर्ज़ा दाग़ देहलवी

  • उन्होंने मर्सिये को सरल और जनभाषा के नज़दीक लाकर लोकप्रिय बनाया।

मीर बबर अली ‘अनीस’

  • ये लेखन के बादशाह माने जाते हैं।
  • उनके मर्सियों में इमाम हुसैन की शहादत, कर्बला का दृश्य और हज़रत अली अकबर व हज़रत क़ासिम की वीरता का मार्मिक चित्रण है।

“हैं लोग वही ज़माने के जो अनीस को पढ़ते हैं,
और मर्सिए में कर्बला के रंग भरते हैं।”


मर्सिया का सामाजिक प्रभाव:

यह केवल धार्मिक भावना का प्रतीक नहीं रहा, बल्कि इसने सामाजिक चेतना, संवेदनशीलता, और नैतिक मूल्यों को भी गहराई से छुआ है। इससे मानवीय मूल्य, न्याय, बलिदान और सत्य की भावना को बढ़ावा मिला।


निष्कर्ष:

यह उर्दू साहित्य की आत्मा है, जिसमें करुणा भी है और क्रांति भी। यह केवल शोक नहीं, एक संदेश है – सच्चाई के लिए मर मिटने का, अन्याय के खिलाफ़ खड़े होने का और मानवता को बचाने का। इसने उर्दू साहित्य को न केवल भावनात्मक गहराई दी, बल्कि समाज को एक नई सोच और दिशा भी प्रदान की।


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