महाकवि भवभूति’ पर टिप्पणी कीजिए।

संस्कृत साहित्य के महान कवियों में महाकवि भवभूति का नाम अत्यंत आदर और सम्मान से लिया जाता है। वे 8वीं शताब्दी के एक प्रतिभाशाली नाटककार और कवि थे, जिन्होंने संस्कृत नाट्य साहित्य को गहराई, गंभीरता और भावप्रवणता प्रदान की।

भवभूति का जन्म कन्यकुब्ज (वर्तमान कन्नौज) के पास पद्मपुर नामक ग्राम में हुआ था। वे ब्राह्मण कुल में जन्मे और उनके पिता का नाम नीलकंठ तथा कुल का नाम प्रवरसेन बताया जाता है। भवभूति को बचपन से ही अध्ययन में रुचि थी और वे उज्जयिनी में शिक्षित हुए, जो उस समय विद्या और संस्कृति का प्रमुख केंद्र था।

भवभूति का व्यक्तित्व गंभीर, चिंतनशील और दार्शनिक प्रवृत्ति का था। उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से मानव भावनाओं की जटिलताओं, धार्मिक मूल्यों, और नैतिक संघर्षों को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। उन्हें “गंभीरता का कवि” भी कहा जाता है, क्योंकि उनकी रचनाएँ भावनात्मक गहराई और दार्शनिक ऊँचाइयों से युक्त हैं।

भवभूति की तीन प्रमुख नाट्यकृतियाँ हैं:


1. मालती-माधव

यह एक प्रेमप्रधान नाटक है, जिसमें मालती और माधव की प्रेमकथा को अत्यंत कोमलता और संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया गया है। इस नाटक में केवल प्रेम नहीं, बल्कि वीरता, तंत्र, हास्य और रहस्य भी हैं। पात्रों की मानसिक स्थिति, सामाजिक बंधन और प्रेम की शक्ति – इन सबका बड़ा ही सुंदर चित्रण मिलता है।

भवभूति ने मालती-माधव में प्रेम को केवल शारीरिक आकर्षण नहीं, बल्कि आत्मिक बंधन के रूप में दिखाया है। यह नाटक कालिदासीय शैली से भिन्न, अधिक गम्भीर और रहस्यमय है।


2. महावीरचरितम्

यह नाटक रामकथा पर आधारित है। इसमें भगवान राम को एक वीर, धर्मनिष्ठ और आदर्श राजा के रूप में प्रस्तुत किया गया है। राम के व्यक्तित्व में भवभूति ने नैतिक संघर्ष, राजधर्म, और मर्यादा के बीच सामंजस्य को उकेरा है।

इस नाटक में केवल राम के बाह्य पराक्रम की नहीं, बल्कि उनके आंतरिक द्वंद्व और संवेदनाओं की भी झलक मिलती है। भवभूति ने राम को एक मानवीय योद्धा के रूप में चित्रित किया है, जो परिस्थितियों से जूझते हुए भी आदर्शों को नहीं छोड़ता।


3. उत्तररामचरितम्

यह भवभूति की सबसे प्रसिद्ध और उत्कृष्ट रचना मानी जाती है। यह नाटक राम के वनवास के पश्चात के जीवन को दर्शाता है, विशेष रूप से सीता के त्याग और राम के दुःखद निर्णयों को।

इस नाटक में करुण रस की प्रधानता है और राम-सीता के वियोग, समाज के प्रति उत्तरदायित्व और आत्मबलिदान का अत्यंत भावुक चित्रण है। भवभूति ने यह सिद्ध किया है कि राम केवल राजा नहीं, बल्कि एक पीड़ित मानव भी हैं, जो लोक की मर्यादा के लिए अपना व्यक्तिगत सुख त्याग देता है।


भवभूति की भाषा संस्कृत साहित्य की परिपक्वता का उदाहरण है। उनकी शैली शास्त्रीय होते हुए भी भावनात्मक है। वे उपमा और अलंकारों से भाषा को सजाने की बजाय भाव की सच्चाई और गहराई पर अधिक ध्यान देते हैं। उनके नाटकों में स्त्रियाँ भी स्वतंत्र, बुद्धिमती और निर्णायक भूमिका में दिखती हैं।

इस प्रकार भवभूति का साहित्य हमें केवल मनोरंजन नहीं देता, बल्कि चिंतन, संवेदना और नैतिक दृष्टि भी प्रदान करता है।

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