मानक नैतिकता (Normative Ethics) एक ऐसी शाखा है जो यह समझने का प्रयास करती है कि हमें क्या करना चाहिए, कैसे करना चाहिए और क्यों करना चाहिए। यह नैतिकता की उस दिशा से जुड़ी है, जो यह तय करती है कि कौन-सा व्यवहार सही है और कौन-सा गलत। इसे हिंदी में “मानक नैतिकता” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह कुछ निश्चित मानकों या सिद्धांतों पर आधारित होती है, जिनके आधार पर आचरण को परखा जाता है।
यह एक व्यावहारिक नैतिक दर्शन है, जो जीवन के रोज़मर्रा के सवालों पर नैतिक दिशानिर्देश देने का कार्य करता है। जैसे कि – क्या झूठ बोलना गलत है? क्या हत्या को किसी परिस्थिति में जायज़ ठहराया जा सकता है? क्या हमें दूसरों की भलाई के लिए अपने सुख की बलि देनी चाहिए? इन सभी प्रश्नों के उत्तर मानक नैतिकता के अध्ययन से प्राप्त होते हैं।
मानक नैतिकता के मुख्य उद्देश्य
- सही और गलत के सिद्धांत बनाना
मानक नैतिकता का प्रमुख उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि कौन-से कार्य नैतिक रूप से स्वीकार्य हैं और कौन-से नहीं। - व्यवहार के नियम देना
यह लोगों को एक ऐसा नैतिक ढाँचा प्रदान करती है, जिससे वे अपने आचरण को दिशा दे सकें। - नैतिक निर्णय लेने में मदद करना
जब कोई व्यक्ति किसी कठिन परिस्थिति में फँसता है, तो मानक नैतिकता उसके लिए निर्णय लेने का आधार बनती है।
मानक नैतिकता की प्रमुख धाराएँ
मानक नैतिकता को तीन प्रमुख दृष्टिकोणों या सिद्धांतों में बाँटा गया है:
1. कर्तव्यवाद (Deontology)
यह सिद्धांत कहता है कि किसी कार्य की नैतिकता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि उसका परिणाम क्या होगा, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि वह कार्य स्वयं में नैतिक है या नहीं।
उदाहरण: अगर झूठ बोलने से किसी की जान बच सकती है, फिर भी यह दृष्टिकोण कहेगा कि झूठ बोलना गलत है, क्योंकि झूठ नैतिक रूप से अनुचित है।
इमैनुएल कांट इस सिद्धांत के प्रमुख विचारक थे। उनका कहना था कि मनुष्य को हमेशा ऐसा व्यवहार करना चाहिए, जिसे वह सार्वभौमिक नियम बना सके।
2. परिणामवाद (Consequentialism)
इस दृष्टिकोण में कार्य की नैतिकता उसके परिणाम पर आधारित होती है। यदि किसी कार्य से अच्छे परिणाम निकलते हैं, तो वह नैतिक है।
उदाहरण: अगर एक डॉक्टर पाँच मरीजों की जान बचाने के लिए एक स्वस्थ व्यक्ति का अंग निकाल लेता है, तो परिणामवाद के अनुसार यह कार्य नैतिक माना जा सकता है—क्योंकि इससे ज़्यादा लोगों की जान बची।
इसका सबसे प्रसिद्ध रूप है उपयोगितावाद (Utilitarianism), जिसके अनुसार “सबसे अधिक लोगों के लिए सबसे अधिक भलाई” नैतिक निर्णय का आधार है। जेरेमी बेंथम और जॉन स्टुअर्ट मिल इसके प्रमुख समर्थक थे।
3. पात्रतावाद (Virtue Ethics)
यह दृष्टिकोण कहता है कि किसी कार्य की नैतिकता का मूल्यांकन केवल उस कार्य से नहीं, बल्कि उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के चरित्र और इरादे से किया जाना चाहिए।
इस विचार के अनुसार, नैतिक व्यक्ति वही है जिसमें सहानुभूति, ईमानदारी, दया, न्याय जैसे गुण हों। अगर व्यक्ति के भीतर अच्छे गुण हैं, तो उसके कार्य भी नैतिक होंगे। यह सिद्धांत मुख्यतः अरस्तू से जुड़ा हुआ है।
मानक नैतिकता का वास्तविक जीवन से संबंध
मानक नैतिकता केवल सैद्धांतिक नहीं होती, बल्कि इसका गहरा संबंध हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से होता है। जैसे:
- क्या नौकरी में ईमानदारी से काम करना ज़रूरी है?
- क्या पारिवारिक झगड़े में सच्चाई बताना ठीक रहेगा?
- क्या जानवरों के प्रति दया दिखाना नैतिक दायित्व है?
इन सवालों का उत्तर तय करने के लिए हम अक्सर किसी न किसी नैतिक मानक या सिद्धांत का सहारा लेते हैं। हम सोचते हैं कि हमारे कार्य का परिणाम क्या होगा, हमारा कर्तव्य क्या है, और हमारे व्यवहार में कौन-से गुण झलक रहे हैं।
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