संस्कृत नाटक साहित्य की परंपरा में ‘मृच्छकटिक’ एक अत्यंत महत्वपूर्ण और लोकप्रिय नाटक है। इसकी रचना शूद्रक नामक नाटककार ने की है। यह नाटक कुल 10 अंकों में लिखा गया है और इसकी कथावस्तु अत्यंत रोचक, विविधतापूर्ण और जीवन के विभिन्न रंगों से भरी हुई है।
‘मृच्छकटिक’ शब्द का अर्थ है – मिट्टी की छोटी गाड़ी। यह नाम प्रतीकात्मक है और नाटक के एक बाल पात्र की मासूमियत से जुड़ा हुआ है, किन्तु इसके माध्यम से शूद्रक ने तत्कालीन समाज की कई परतों को उजागर किया है।
इस नाटक की कथा प्राचीन उज्जयिनी नगर में घटित होती है। कथानक का मुख्य नायक चरुदत्त है, जो एक प्रतिष्ठित, विद्वान और न्यायप्रिय ब्राह्मण है। वह धनहीन हो गया है, परंतु उसका चरित्र और सम्मान समाज में अटल है। वहीं, प्रमुख नायिका है – वसंतसेना, जो एक गणिका होते हुए भी उच्च विचारों वाली, स्वतंत्र सोच की महिला है। वह चरुदत्त से प्रेम करती है, क्योंकि वह उसके आचरण, बुद्धिमत्ता और विनम्रता से प्रभावित होती है।
वसंतसेना अपने प्रेम को पाने के लिए भौतिक सुखों का त्याग कर देती है। जब वह चरुदत्त के पास जाती है, तो एक दिन कुछ परिस्थिति ऐसी बनती है कि वह रथ से उतर कर गलती से शकार नामक एक धृष्ट और भ्रष्ट राजकुमार के बाग में पहुंच जाती है। शकार वसंतसेना पर अधिकार जमाना चाहता है, पर वह उसके प्रस्ताव को ठुकरा देती है। इससे क्रोधित होकर शकार उसे मारने का प्रयास करता है और ऐसा भ्रम फैलाता है कि वसंतसेना को चरुदत्त ने ही मार डाला है।
इसके परिणामस्वरूप चरुदत्त पर हत्या का आरोप लग जाता है और उसे मृत्यु दंड की सजा सुना दी जाती है। किंतु तभी वसंतसेना जीवित प्रकट हो जाती है और पूरा सत्य उजागर करती है। अंततः चरुदत्त को निर्दोष घोषित किया जाता है और शकार को दंडित किया जाता है।
इस मुख्य कथा के साथ-साथ नाटक में कई उपकथाएँ भी हैं – जैसे एक बालक (आर्यक) की मिट्टी की गाड़ी की कथा, आर्यक का चरुदत्त से संबंध, विदूषक मित्र, सेविकाओं के हास्य संवाद, चोरों और साधुओं की भागीदारी – जो नाटक को बहुआयामी बनाते हैं।
‘मृच्छकटिक’ की कथा में प्रेम, त्याग, न्याय, संघर्ष, हास्य, करुणा और सामाजिक यथार्थ के तत्व मौजूद हैं। यह नाटक केवल राजाओं और देवताओं की कथा न कहकर आम जन की कहानी प्रस्तुत करता है। इसमें नारी की स्वतंत्रता, प्रेम की गरिमा और सामाजिक समानता का अद्भुत चित्रण किया गया है। यही कारण है कि यह नाटक आज भी प्रासंगिक और प्रिय माना जाता है।