हिन्दी भारत की प्रमुख भाषाओं में से एक है और यह न केवल करोड़ों लोगों की मातृभाषा है, बल्कि देश की राजभाषा के रूप में भी इसका विशेष स्थान है। भारतीय संविधान ने हिन्दी को एक विशेष दर्जा प्रदान किया है, जो न केवल भाषायी दृष्टि से बल्कि राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों और प्रावधानों में हिन्दी की स्थिति को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इस उत्तर में हम हिन्दी की संवैधानिक स्थिति का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे।
1. संविधान में भाषा सम्बन्धी प्रावधान
भारतीय संविधान के भाग XVII (17) में “राजभाषा” के सम्बन्ध में प्रावधान किए गए हैं। यह भाग अनुच्छेद 343 से 351 तक फैला हुआ है, जिनमें हिन्दी की स्थिति, प्रयोग की सीमाएँ, अन्य भाषाओं के अधिकार और भाषा के प्रचार से सम्बन्धित मुद्दों को शामिल किया गया है।
2. अनुच्छेद 343: संघ की राजभाषा
अनुच्छेद 343 भारतीय संघ की राजभाषा को परिभाषित करता है:
- अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार: “संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी।”
- 343 (2) के अनुसार: संविधान लागू होने की तिथि से 15 वर्षों तक (अर्थात 1950 से 1965 तक) अंग्रेज़ी भी राजकीय प्रयोजन के लिए प्रयोग में लाई जाएगी।
- 343 (3) के अनुसार: संसद यह निर्णय कर सकती है कि राजकीय प्रयोजन के लिए हिन्दी के अतिरिक्त किन और भाषाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
इस अनुच्छेद ने हिन्दी को संवैधानिक रूप से संघ की राजभाषा का दर्जा प्रदान किया और देवनागरी लिपि को इसकी आधिकारिक लिपि के रूप में मान्यता दी।
3. अनुच्छेद 344: राजभाषा आयोग
इस अनुच्छेद के अनुसार:
- संविधान लागू होने के 5 वर्षों के भीतर राष्ट्रपति एक राजभाषा आयोग की नियुक्ति करेगा।
- यह आयोग संसद को यह सिफारिश करेगा कि राजभाषा हिन्दी के उपयोग को संघ तथा राज्यों के बीच और न्यायालयों में किस प्रकार से बढ़ावा दिया जाए।
- यह आयोग अन्य भाषाओं के प्रयोग और हिन्दी के विकास की दिशा में भी सुझाव देगा।
राजभाषा आयोग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि हिन्दी को प्रभावी रूप से संघ की कार्यभाषा के रूप में विकसित किया जाए और अन्य भाषाओं के अधिकारों का भी ध्यान रखा जाए।
4. अनुच्छेद 345: राज्यों की राजभाषा
इस अनुच्छेद में कहा गया है:
- किसी राज्य की विधान सभा को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने राज्य की राजकीय भाषा का निर्णय स्वयं करे।
- राज्य हिन्दी, अंग्रेज़ी या संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित किसी भी भाषा को राजभाषा घोषित कर सकता है।
इसका अर्थ यह है कि हिन्दी को संविधान द्वारा केन्द्र की राजभाषा घोषित किया गया है, लेकिन राज्यों को अपनी इच्छानुसार राजभाषा चुनने की स्वतंत्रता दी गई है।
5. अनुच्छेद 346: राज्यों के बीच और केन्द्र के साथ संप्रेषण
- जब दो राज्यों या राज्य और केन्द्र के बीच संप्रेषण की आवश्यकता हो, तो हिन्दी या अंग्रेज़ी का प्रयोग किया जा सकता है।
- जब तक संसद अन्यथा न ठहराए, अंग्रेज़ी का प्रयोग इस कार्य हेतु किया जा सकता है।
इस अनुच्छेद में केन्द्र और राज्यों के बीच संवाद के लिए हिन्दी को प्राथमिकता देने की बात कही गई है, लेकिन अंग्रेज़ी को भी विकल्प के रूप में स्थान दिया गया।
6. अनुच्छेद 347: भाषाई अल्पसंख्यकों की मांग
यदि किसी राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय किसी विशिष्ट भाषा के प्रयोग की मांग करता है, तो राष्ट्रपति उस भाषा को भी मान्यता देने की अनुमति दे सकते हैं।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि हिन्दी को बढ़ावा देते हुए अन्य भाषाओं के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान बना रहे।
7. अनुच्छेद 348: उच्च न्यायालयों और विधायी प्रक्रियाओं की भाषा
- उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग अनिवार्य है, जब तक कि राष्ट्रपति किसी राज्य को हिन्दी या अन्य भाषा के प्रयोग की अनुमति न दे।
- विधायी दस्तावेजों, विधेयकों, अधिनियमों आदि की मूल भाषा अंग्रेज़ी होती है।
यह अनुच्छेद यह स्पष्ट करता है कि न्यायिक प्रणाली में अभी भी अंग्रेज़ी का वर्चस्व है और हिन्दी का प्रयोग सीमित है।
8. अनुच्छेद 349: विशेष निर्देश
संविधान के अनुसार, संसद हिन्दी को राजभाषा के रूप में पूरी तरह लागू करने के विषय में कोई भी कानून तभी बना सकती है जब राष्ट्रपति की सिफारिश हो।
यह सावधानी इसलिए रखी गई ताकि हिन्दी को थोपने का आरोप न लगे और सभी भाषाओं को समान अवसर दिया जा सके।
9. अनुच्छेद 350: भाषाई अधिकार
- हर नागरिक को अपनी भाषा में शिकायत करने का अधिकार है।
- यह अधिकार प्रशासनिक न्याय के क्षेत्र में भी मान्य है।
इससे स्पष्ट होता है कि हिन्दी को बढ़ावा देते हुए नागरिकों को अन्य भाषाओं में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी दी गई है।
10. अनुच्छेद 351: हिन्दी का प्रचार
यह अनुच्छेद हिन्दी के संवैधानिक विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रावधान है:
- इसमें कहा गया है कि संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार करे और उसका विकास इस प्रकार करे कि वह भारत की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।
- इसमें यह भी कहा गया है कि हिन्दी को संस्कृत शब्दों से समृद्ध किया जाए और क्षेत्रीय भाषाओं के साथ उसका सामंजस्य स्थापित किया जाए।
इस अनुच्छेद के माध्यम से हिन्दी को भारत की अखिल भारतीय संपर्क भाषा के रूप में विकसित करने की दिशा में प्रयास सुनिश्चित किए गए हैं।
11. आठवीं अनुसूची और हिन्दी
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है, जिनमें हिन्दी प्रमुख है। इस अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं को ‘संविधान की अनुसूचित भाषाएँ’ कहा जाता है। हिन्दी न केवल इनमें सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, बल्कि इसे सरकारी सेवाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी प्राथमिकता प्राप्त है।
12. हिन्दी और अंग्रेज़ी का सह-अस्तित्व
संविधान के अनुसार, वर्ष 1965 के बाद हिन्दी को पूर्ण रूप से राजभाषा बन जाना था, लेकिन द्रविड़ राज्यों में विशेषकर तमिलनाडु में विरोध के चलते अंग्रेज़ी को सहायक राजभाषा के रूप में बनाए रखने का निर्णय लिया गया।
इस प्रकार आज भी केन्द्र सरकार के कामकाज में हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। हिन्दी को प्राथमिकता दी जाती है, परन्तु अंग्रेज़ी का अधिकार समाप्त नहीं हुआ है।
13. राजभाषा अधिनियम, 1963
संविधान के अनुच्छेदों के अनुसार राजभाषा अधिनियम 1963 पारित किया गया, जिसमें कहा गया:
- संघ सरकार हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों का प्रयोग कर सकती है।
- हिन्दी को बढ़ावा देने के प्रयास निरंतर किए जाएँगे।
- राज्यों को स्वायत्तता रहेगी, वे चाहे तो हिन्दी को अपने प्रशासन की भाषा बना सकते हैं।
14. राजभाषा नीति और उसके अनुपालन के लिए संगठन
- राजभाषा विभाग (गृह मंत्रालय के अधीन): यह विभाग राजभाषा नीति के अनुपालन के लिए जिम्मेदार है।
- केंद्रीय राजभाषा कार्यान्वयन समिति: इसका गठन हिन्दी के प्रयोग की निगरानी के लिए किया गया है।
- राजभाषा प्रशिक्षण संस्थान: सरकारी कर्मचारियों को हिन्दी सिखाने और उनके भाषा कौशल को विकसित करने के लिए।
- अनुवाद विभाग: सरकारी दस्तावेजों का हिन्दी अनुवाद करने हेतु कार्यरत।
15. प्रशासनिक क्षेत्रों में हिन्दी का प्रयोग
भारत सरकार के मंत्रालयों, विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों में हिन्दी के प्रयोग को तीन क्षेत्रों में बाँटा गया है:
- क्षेत्र ‘A’ – वे राज्य जहाँ हिन्दी मूल भाषा है (जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश आदि)
- क्षेत्र ‘B’ – वे राज्य जहाँ हिन्दी मातृभाषा नहीं है लेकिन काफी संख्या में हिन्दी भाषी हैं (जैसे महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात आदि)
- क्षेत्र ‘C’ – वे राज्य जहाँ हिन्दी का प्रयोग न्यूनतम है (जैसे तमिलनाडु, केरल, नागालैंड आदि)
हर क्षेत्र के अनुसार हिन्दी के प्रयोग की नीति तय की जाती है।
राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक स्थिति यह दर्शाती है कि संविधान ने हिन्दी को संघ की भाषा बनाने की ठोस नींव रखी है, परंतु साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी के अधिकारों का भी संरक्षण किया है। संविधान के प्रावधान संतुलन की भावना के साथ हिन्दी को बढ़ावा देते हैं, जिससे देश की भाषायी विविधता में एकता बनी रहे।
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