जय हिन्द। इस पोस्ट में बिहार बोर्ड क्लास 10 हिन्दी किताब गोधूली भाग – 2 के पद्य खण्ड के पाठ एक ‘राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा’ |‘जो नर दुख में दुख नहीं माने’ | के व्याख्या को पढ़ेंगे। इस पद के रचनाकार गुरूनानक जी है । गुरुनानक जी ने इस पाठ में सच्चे हृदय से राम नाम अर्थात् ईश्वर का जप करने की सलाह दी गई है |(Bihar Board Class 10 Hindi Guru Nanak) (Bihar Board Class 10th Hindi Solution) ( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा । जो नर दुख में दुख नहीं माने।
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा: कवि परिचय
- कवि का नाम – गुरु नानक
- जन्म 1469 ई०
- जन्म स्थान – तलबंडी ग्राम, जिला लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान)
- इनका जन्म स्थान ‘नानकाना साहब’ कहलाता है।
- पिता का नाम – कालूचंद खत्री
- माता का नाम – तृप्ता
- पत्नी का नाम – सुलक्षणी था
- मृत्यु – 1539 पर ई० में इन्होंने ‘वाह गुरु’ कहते हुए अपने प्राण त्याग दिए ।
- विरोध – वर्णाश्रम व्यवस्था और कर्मकांड का
- प्रचार – निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का
- यात्रा – मक्का-मदीना तक
- भेंट – सम्राट बाबर
- धर्म की स्थापना – ‘सिख धर्म’ का
- भाषा – पंजाबी तथा हिन्दी
- हिंदी में ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों का मेल
- रचनाएँ – ‘जपुजी’, ‘आसादीवार’, ‘रहिरास’ और सोहिला
- इनकी रचनाओं का संग्रह सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव ने सन् 1604 ई० में किया जो ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- धारा – निर्गुण भक्तिधारा
- इनके पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगाने का बहुत उद्यम किया, किन्तु इनका मन भक्ति की ओर अधिकाधिक झुकता गया ।
- इन्होंने हिन्दू-मुसलमान दोनों की समान धार्मिक उपासना पर बल दिया ।
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा: पाठ परिचय
यहाँ नानक के दो महत्त्वपूर्ण पद प्रस्तुत हैं। प्रथम पद बाहरी वेश भूषा, पूजा-पाठ और कर्मकांड के स्थान पर सरल सच्चे हृदय से राम-नाम के कीर्तन पर बल देता है, क्योंकि नाम कीर्तन ही सच्ची स्थायी शांति देकर व्यक्ति को इस दुखमय जीवन के पार पहुँचा पाता है।
द्वितीय पद में सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अंतःकरण की निर्मलता हासिल करने पर जोर दिया गया है। संत कवि गुरु की कृपा प्राप्त कर इस पद में गोविंद से एकाकार होने की प्रेरणा देता है।
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा : प्रथम पद
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा।
बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना ।।
पुसतक पाठ व्याकरण बखाणै संधिया करम निकाल करै।
बिनु गुरुसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरुझि मरै।।
अर्थ – कवि गुरु नानक कहते हैं कि जो मनुष्य राम के नाम का स्मरण नहीं करता है, उसका इस जगत् में जन्म लेना व्यर्थ है। बिना कुछ बोले बिष का पान करता है तथा मयारूपी संसार में भटकता रहता है। अर्थात् राम नाम का गुणगान न करके मायाजाल में फँसा रहता है। शास्त्र-पुराण की पाठ करता है, संध्या बंदना करता है। कवि कहता है कि गुरु (भगवान) का भजन किए बिना व्यक्ति को संसार से मुक्ति नहीं मिल सकती । जो राम नाम की महिमा का गायन नहीं करता वह इस संसार में उलझकर मार जाता है। ( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
डंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गबनु अति भ्रमनु करै।
राम नाम बिनु सांति न आवै जपि हरि-हरि नाम सु पारि परै।।
जटा मुकुट तन भसम लगाई वसन छोड़ि तन मगन भया।
जेते जिअ जंत जल थल महिअल जत्र तत्र तू सरब जिआ।।
गुरु परसादि राखिले जन कोउ हरिरस नामक झोलि पीया।
अर्थ – गुरूनानक जी आगे कहते हैं कि दण्ड – कमंडल धारण करना , शिखा बढ़ाना , जनेउ धारण करना तथा धोती पहनकर तीर्थयात्रा का भ्रमण करता है , लेकिन राम नाम के बिना जीवन में शांति नहीं मिलती है। हरी – हरी ( राम ) के बिना भव सागर के पर नहीं हो पाता है । जटा को मुकुट बनाकर, शरीर में भस्म लगाकर, वस्त्रों को त्यागकर नग्न तन घूमता रहता है । संसार में जितने जीव-जन्तु हैं, उन जीवों में जन्म लेते रहते हैं। इसलिए कवि कहते हैं कि गुरु की कृपा को ध्यान में रखकर नानक ने हरी रस (राम नाम का घोल ) पी लिया, इससे परम् आनंद प्राप्त होता है और मायारूपी संसार से मुक्ति मिल जाती है। ( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा : द्वितीय पद
जो नर दुख में दुख नहीं मानै।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना।
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरासा।
अर्थ – गुरु नानक कहते हैं कि जो मनुष्य दुख को दुख नहीं मानता है, जिसे सुख-सुविधा के प्रति कोई मोह नहीं है और न ही किसी प्रकार का भय है, जो सोना को मिट्टी जैसा मानता है। जो किसी की निंदा से न तो घबराता है और न ही प्रशंसा सुनकर गौरवान्वित होता है। जो लाचल, प्रेम एवं घमंड से दूर है। जो खुशी और दूख दोनों में एक जैसा रहता है, जिसके लिए मान-अपमान दोनों बराबर हैं। जो जो अपने सभी अभिलाषा को त्यागकर सांसारिक चमक-दमक से दूर रहता है ( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु कृपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिन्द सो ज्यों पानी संग पानी।।
अर्थ – जिसने काम-क्रोध को वश में कर लिया है, वैसे मनुष्य के हृदय में ब्रह्म का निवास होता है। अर्थात् जो मनुष्य राग-द्वेष, मान-अपमान, सुख-दुख, निंदा-स्तुति हर स्थिति में एक समान रहता है, वैसे मनुष्य के हृदय में ब्रह्म निवास होता है। गुरु नानक का कहना है कि जिस मनुष्य पर गुरु की कृपा होती है, वह सांसारिक विषय-वासनाओं से स्वतः मुक्ति पा जाता है। इसीलिए नानक ईश्वर के भक्ति में लीन होकर प्रभु के साथ एकाकार हो गये। यानी आत्मा परमात्मा से मिल गई, जैसे पानी के साथ पानी मिलकर एकाकार हो जाता है। ( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा : पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 . कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?
उत्तर – कवि राम नाम के बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है। जगत् में मानव के कल्याण के लिए राम नाम ही एक मात्र सहारा है।
प्रश्न 2. वाणी कब विष के समान हो जाती है ?
उत्तर – जिस वाणी से राम नाम का स्मरण नहीं होता, वह वाणी केवल विष का ही वमन करती है। वह वाणी विष के समान होती है, जिससे राम नाम की महिमा का गायन नहीं किया जाता है।
प्रश्न 3. नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है ?
उत्तर – कवि गुरुनानक कहते है की राम कीर्तन ही एक मात्र सुकर्म है। और सारे कर्म व्यर्थ है। दण्ड-कमंडल, चोटी और जनेऊ धारण करने तथा विभिन्न तीर्थों का भ्रमण करने से जीवन में शांति नहीं मिल सकती। राम भजन के बिना ये सारे कर्म व्यर्थ है। राम का कीर्तन ही शांति प्रदान कर सकता है, और यहीं कर्म सार्थक है।
प्रश्न 4. प्रथम पद के आधार पर बताएँ कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे?
उत्तर – प्रथम पद में कवि ने धर्म-साधना के अनेक प्रचलित रूपों की चर्चा की है। शिख बढ़ाना, ग्रंथों का पाठ करना आदि धर्म साधना माने जाते है। इसलिए तन में भस्म लगाकर, साधु वेश धारण करना, तीर्थ यात्रा करना, दंड-कमंडल धारी होना, वस्त्र त्याग करके नंगे तन घूमना भी कभी के युग में धर्म साधना के रूप रहे हैं, और प्रथम पद में कवि ने इन्हीं रूपों का बखान किया है।
प्रश्न 4. हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है?
उत्तर – हरिरास के कवि गुरुनानक का अभिप्राय राम नाम से प्राप्त होने वाला आनंद है। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन को राम नाम में सराबोर कर दिया, उसका जीवन भवसागर से पार हो गया।
प्रश्न 5. कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है ?
उत्तर – जो प्राणी सांसारिक विषयों के अस्तित्व से दूर है, जो मान – अपमान से परे है, हर्ष और शोक दोनों से दूर है। उन प्राणियों में ही ब्रह्म का निवास बताया है। काम – क्रोध – लोभ – मोह जी से नहीं छूते, ऐसे प्राणियों में निश्चय ही ब्रह्म का निवास होता है।
प्रश्न 7. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है ?
उत्तर –कवि गुरु नानक कहते हैं कि गुरु की कृपा से ईश्वर से एकाकार होने की युक्ति मिलती है। जिस तरह पानी – पानी के साथ मिलकर अपने अस्तित्व को अर्पित कर देता है। उसी प्रकार मानव भी गुरु की कृपा से ईश्वर के प्रथम पद को प्राप्त करके अपने जीवन को उसी में समर्पित कर देता है।
प्रश्न 8. व्याख्या करें। ( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
(क) राम नाम बिनु अरुझि मरै।
उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूली भाग – 2 में संकलित गुरुनानक के पदों से ली गई है। यहाँ पर कवि ने जीवन की प्रासंगिकता पर विशेष बल दिया है।
यहाँ पर कवि ने यह बताया है कि मनुष्य सांसारिक सुखों की इच्छा करता है। ईश्वर से अलग होकर वह ईर्ष्या, क्रोध, और घमंड से युक्त होकर संसार के कुएँ में गाड़ा जा रहा है। यह जीवन की सार्थकता राम नाम की स्मरण में है। ( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
(ख) कंचन माटी जानै ।
उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग – 2 में संकलित गुरु नानक के पदों से ली गई है। यहां पर कवि ने जीवन की विधियों पर चोट किया है।
ईश्वर भक्ति के बिना यह जीवन सुननी है। बाह्य आडंबर में स्थित वह सोने को मिट्टी समझने लगता है। आध्यात्मिक सुख को छोड़कर व सांसारिक वैभव की खोज में इधर-उधर भटकने लगता है। ( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना ।
उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग – 2 में संकलित गुरु नानक के पदों से ली गई है। यहां पर कवि ने सांसारिक जीवन से दूर एक नई पहचान बनाने पर बल दिया है।
ईश्वर की चरणों में समर्पित होने वाला सांसारिक हर्ष-शोक, मान- अपमान जैसी गतिविधियों पर ध्यान नहीं देता। राम नाम ही उसका जीवन है, और ईश्वर स्तुति ही उसकी जीवन की पराकाष्ठा है। ( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
(घ) नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी ।
उत्तर – प्रस्तुत व्याख्या पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक गोधूलि भाग – 2 में संकलित गुरु नानक के पदों से ली गई है।
यहां पर कवि ने राम नाम का जाप करके परम तत्व पाने की महत्ता पर विशेष बल दिया है। ईश्वर में लीन रहने वाला मनुष्य सारिक जीवन से दूर रहता है, और गुरु की कृपया पाकर वह गोविंद का एकाकार प्राप्त कर लेता है। ( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
प्रश्न 9. आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों की क्या प्रासंगिकता है ? अपने शब्दों में विचार करें।
उत्तर – कवि गुरु नानक निर्गुण भक्ति धारा के कवि हैं। कवि ने ईश्वर रूपी सत्य की उपासना करने पर विशेष बल दिया है जो अगोचर है। वर्तमान समय में रहन-सहन, खान-पान और पूजा पाठ में भी बदलाव आ गया है। आजकल सांसारिक जीवन को सुखी बनाने के कई उपाय किए जा रहे हैं। आजकल खर्च भी आधीक किए जा रहे हैं ताकि काम सुचारु रुप से संपन्न हो सके। आजकल लोग नानक के पदों पर व्यंग्य करते हैं, पर नानक के पद आज की भक्ति भावना पर व्यंग्य करते हैं।
( राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा )
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