‘रोलां बार्थ’ पर टिप्पणी

रोलां बार्थ (Roland Barthes) 20वीं सदी के एक प्रमुख फ्रांसीसी साहित्यिक सिद्धांतकार, आलोचक, दार्शनिक और सांस्कृतिक चिन्तक थे। वे साहित्य, भाषा, छवि, संस्कृति और अर्थवत्ता के विश्लेषण के लिए जाने जाते हैं। बार्थ का कार्य विशेष रूप से उत्तर-संरचनावाद (Post-Structuralism), विमर्श विश्लेषण और पाठ-सम्बंधी सिद्धांतों में क्रांतिकारी माना जाता है। उनका दृष्टिकोण यह था कि साहित्य केवल सौंदर्य का माध्यम नहीं है, बल्कि एक सामाजिक, वैचारिक और वैचारिक संरचना भी है, जो अर्थ को गढ़ती और पुनर्गठित करती है।

बार्थ का जन्म 1915 में हुआ था और उन्होंने 1950 के दशक से अपने लेखन के माध्यम से साहित्यिक आलोचना में एक नया मोड़ लाना शुरू किया। उन्होंने अपने शुरुआती लेखन में संरचनावादी दृष्टिकोण अपनाया, जहाँ वे भाषा और अर्थ की संरचना को विश्लेषित करते थे। लेकिन जैसे-जैसे उनका चिंतन विकसित हुआ, उन्होंने संरचनावाद की सीमाओं को महसूस किया और उत्तर-संरचनावाद की ओर मुड़े।

बार्थ की एक प्रसिद्ध कृति है “The Death of the Author” (लेखक की मृत्यु), जो 1967 में प्रकाशित हुई। इसमें उन्होंने यह तर्क दिया कि किसी भी साहित्यिक कृति का अर्थ लेखक के इरादों पर निर्भर नहीं करता, बल्कि पाठक की व्याख्या पर आधारित होता है। उनका यह विचार साहित्यिक आलोचना की दुनिया में एक बड़ा परिवर्तन था। वे कहते हैं कि जब तक लेखक जीवित रहता है (आलोचकों की नजर में), तब तक पाठ सीमित रहता है, लेकिन लेखक की “मृत्यु” के साथ पाठ स्वतंत्र होता है और अनगिनत अर्थों की संभावनाएँ उसमें जन्म लेती हैं।

इस विचार के अनुसार, पाठ एक ‘बहु-आर्थिक’ (plural) संरचना है। यह निश्चित अर्थ प्रदान नहीं करता, बल्कि पाठक के अनुभव, ज्ञान और दृष्टिकोण के अनुसार नए अर्थों को जन्म देता है। इसने आलोचना के क्षेत्र में ‘पाठक केंद्रित’ दृष्टिकोण को बल दिया।

बार्थ ने भाषा और संस्कृति के बीच के संबंध को भी गहराई से समझाया। उनकी कृति “Mythologies” (1957) में उन्होंने रोजमर्रा की चीजों जैसे फैशन, विज्ञापन, खाना, फिल्म, खेल आदि में छिपे सामाजिक मिथकों का विश्लेषण किया। उन्होंने दिखाया कि कैसे पूंजीवादी संस्कृति साधारण प्रतीत होने वाली चीजों में विचारधारा को छिपा देती है। बार्थ ने इन मिथकों को “दूसरी भाषा” (second-order signification) कहा, जिसमें प्रतीक केवल वस्तुओं को नहीं दर्शाते, बल्कि विचारधारात्मक संदेश भी पहुँचाते हैं।

उनका सेमीओटिक्स (संकेत विज्ञान) की ओर झुकाव भी महत्वपूर्ण था। उन्होंने सॉस्यूर की भाषा-संरचना की धारणाओं को आगे बढ़ाते हुए यह बताया कि कैसे चिन्ह (signs) केवल वस्तुओं की ओर इशारा नहीं करते, बल्कि सामाजिक रूप से निर्मित अर्थों का निर्माण करते हैं।

बार्थ ने “Writerly” और “Readerly” पाठ की अवधारणा दी। Readerly पाठ वह होता है जो पारंपरिक होता है और पाठक को निष्क्रिय बनाए रखता है — जैसे केवल मनोरंजन या तयशुदा अर्थ प्रदान करने वाले उपन्यास। इसके विपरीत, Writerly पाठ वह है जो पाठक को सक्रिय बनाता है, जहाँ अर्थ निश्चित नहीं होता, बल्कि पाठक उसमें नये अर्थों की रचना करता है।

बार्थ के विचार केवल साहित्य तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने फिल्म, फोटोग्राफी और दृश्य संस्कृति पर भी गहन लेखन किया। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “Camera Lucida” (1980) फोटोग्राफी के दार्शनिक पक्ष को छूती है, जहाँ वे व्यक्तिगत स्मृति, मृत्यु और छवि के अर्थ को भावुक और बौद्धिक दोनों रूपों में समझते हैं।

इस प्रकार, रोलां बार्थ ने साहित्यिक अध्ययन को केवल कलात्मक प्रशंसा से ऊपर उठाकर सांस्कृतिक आलोचना, सामाजिक संरचना और अर्थ की गतिशील प्रक्रिया के रूप में स्थापित किया। वे आज भी साहित्य, मीडिया और संस्कृति के अध्ययन में एक केंद्रीय नाम माने जाते हैं।

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