हिन्दी व्याकरण में वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है जिसे बोला और लिखा जा सकता है। अथवा
“वह ध्वनि जो किसी शब्द को बनाने में सहायक हो, वर्ण कहलाती है।”
वर्ण के परिभाषा
वर्ण उसे मूल ध्वनि को कहते हैं जिसके खंड या टुकड़े ना हो सके। या “वर्ण वह ध्वनि है जो स्वतंत्र रूप से उच्चारित की जा सके और जिसका उपयोग शब्द बनाने में किया जाता है।”
वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है, जिससे मिलकर शब्द बनते हैं।
जैसे :— अ, आ, इ, ई, क,ख,च,छ आदि।
वर्ण माला हिंदी
वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते है।
हिन्दी में कुछ कितने वर्ण होते है?
हिन्दी में मुख्य कुल 44 वर्ण होते है। जिन्हें दो वर्गों में बांटा जाता है।
- स्वर — ये 11 होते है। (अ से औ तक)
- व्यंजन — ये 33 होते है ( क से ह तक)
- मूल या मुख्य वर्ण – 44 (11 स्वर, 33 व्यंजन)- “अं, अः, ड़, ढ़, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र” को छोड़कर
- उच्चारण के आधार पर कुल वर्ण- 45 (10 स्वर, 35 व्यंजन) – “ऋ, अं, अः, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र” को छोड़कर
- लेखन के आधार पर वर्ण 52 (11) स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)
- मानक वर्ण – 52 (11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन)
हिंदी वर्ण/अक्षर
स्वर वर्ण
जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता हो। और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। अथवा
जिन्हें बोलने में किसी की सहायता नहीं लेनी पड़ती है उन्हें स्वर कहते है।
इसकी संख्या 11 होते है — अ,आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ ,ओ, औ ।
नोट :— अं को अनुस्वर और अः को विसर्ग कहते है। तथा इन दोनों के सम्मिलित रूप को आयोगवाह कहते है।
अं → अनुस्वर, अः → विसर्ग, अं + अः → आयोगवाह
स्वर के कितने भेद होते है
हिन्दी में 11 स्वरों को तीन वर्गों में बांटा गया है।
- हृस्व स्वर / मूल स्वर / एकमात्रिक स्वर / लघु स्वर
- दीर्घ स्वर
- संयुक्त स्वर
हृस्व स्वर
जिन्हें बोलने में एक मात्रा का समय लगे, उन्हें हृस्व स्वर कहते है। इसे मूल स्वर / एकमात्रिक स्वर / लघु स्वर भी कहा जाता है।
इसकी संख्या 4 है — अ, इ, उ, ऋ।
दीर्घ स्वर
जिन्हें बोलने में दो मात्रा का समय कहे उन्हें दीर्घ स्वर कहते है।
इसकी संख्या 3 है — आ, ई, ऊ ।
संयुक्त स्वर
दो अलग अलग मूल स्वर के संयोग से बने स्वर को संयुक्त स्वर कहते है।
इसकी संख्या 4 है — ए, ऐ, ओ, औ
नोट :- कुछ व्याकरणिक दीर्घ स्वर और संयुक्त स्वर को अलग अलग नहीं एक ही मानते है। इस प्रकार दीर्घ स्वरको संख्या 11 हो जाती है। और इसके जगह पर प्लुत स्वर को तीसरा भेद मानते है।
प्लुत स्वर
हृस्व स्वर के उच्चारण में जितना समय लगता है, उससे तिगुना समय जिस स्वर के उच्चारण में लगता है उसे प्लुत स्वर कहते है।
जैसे — ॐ, ओऽम्, राऽऽम , संगीत के स्वर जैसे — साऽऽऽ, रेऽऽऽ आदि।
संध्य और सामान स्वर :
- संध्य स्वर — जब दो विजातीय या भिन्न या असमान स्वर एक दूसरे से जुड़ते हैं, तब जो नया स्वर बनाता है उसे संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 4 है- ए, ऐ, ओ, औ।
- समान स्वर — जब दो सजातीय या समान स्वर एक दूसरे से जुड़ते हैं, तब जो नया स्वर बनाता है उसे दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 3 है- आ, ई, ऊ।
जीभ के प्रयोग के आधार पर तीन भेद :
- अग्र स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्र भाग काम करता है उन्हें अग्र स्वर कहते हैं। ये स्वर निम्न हैं – इ, ई, ए, ऐ।
- मध्य स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य भाग काम करता है उन्हें मध्य स्वर कहते हैं। ये स्वर निम्न है- अ।
- पश्च स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च भाग काम करता है उन्हें पश्च स्वर कहते हैं। ये स्वर निम्न है-आ, उ, ऊ, ओ, औ।
संवृत और विवृत स्वर:
- संवृत स्वर — संवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार सकरा हो जाता है। ये संख्या में चार होते है – इ, ई ,उ, ऊ।
- अर्द्ध संवृत स्वर — अर्द्ध संवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार कम सकरा होता है। ये संख्या में 2 होते है – ए, ओ।
- विवृत स्वर — विवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार पूरा खुला होता है। ये संख्या में 2 है आ, आँ।
- अर्द्ध विवृत स्वर — अर्द्ध विवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार अधखुला होता है। ये संख्या में 4 होते है अ, ऐ, औ, ऑ।
स्वर वर्णों की सूची:
क्रम | स्वर | उच्चारण |
---|---|---|
1. | अ | /a/ (कम) |
2. | आ | /aa/ (आम) |
3. | इ | /i/ (इमली) |
4. | ई | /ee/ (ईख) |
5. | उ | /u/ (उल्लू) |
6. | ऊ | /oo/ (ऊँट) |
7. | ऋ | /ri/ (ऋषि) |
8. | ए | /e/ (एक) |
9. | ऐ | /ai/ (ऐनक) |
10. | ओ | /o/ (ओखली) |
11. | औ | /au/ (औरत) |
स्वरों की विशेषताएं
- स्वर स्वतंत्र रूप से उच्चरित होते हैं।
- इन्हीं से मात्राएँ बनती हैं।
- स्वर सभी व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते हैं।
- स्वर के बिना कोई शब्द नहीं बन सकता।
मात्रा
स्वरों के बदले हुए स्वरूप को मात्रा कहते हैं। या उच्चारण करने में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं। स्वरों की मात्राएँ निम्न हैं-
स्वर से बनने वाली मात्राएँ:
स्वर | मात्रा | उदाहरण |
---|---|---|
अ | (0 मात्रा) | घर |
आ | ा | गा |
इ | ि | कि |
ई | ी | की |
उ | ु | कुल |
ऊ | ू | फूल |
ऋ | ृ | ऋषि |
ए | े | रेखा |
ऐ | ै | बैल |
ओ | ो | मोर |
औ | ौ | दौड़ |
व्यंजन वर्ण
स्वर के सहयोग से उच्चारित होने वाले तथा उच्चारण में वायु के बहाव में किसी-न-किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न करने वाले वर्ण व्यंजन कहलाते हैं। अर्थात्
जिन्हें बोलने में स्वर की सहायता लेनी पड़ती है, उन्हें व्यंजन कहते है।
व्यंजनों का अपना मूल स्वरूप इस प्रकार हैं- क् च् छ् ज् झ त् थ् ध् आदि। इसमें अ लगने पर व्यंजनों के नीचे का हलंत् चिह्न हट जाता है। तब ये इस प्रकार लिखे जाते हैं- क च छ ज झ त थ ध आदि।
इसकी संख्या 33 होती है — क से ह तक जो निम्न है :-
क, ख, ग, घ, ङ
च, छ, ज, झ, ञ
ट, ठ, ड, ढ, ण
त, थ, द, ध, न
प, फ, ब, भ, म
य, र, ल, व
श, ष, स, ह
क्ष, त्र, ज्ञ, श्र को संयुक्ताक्षर या संयुक्त वर्ण कहते है।
व्यंजन के कितने भेद होते है
हिन्दी के 33 व्यंजनों को तीन वर्गों में बांटा गया है।
- स्पर्श व्यंजन / वर्गीय व्यंजन
- अतःस्थ व्यंजन
- उष्म व्यंजन
स्पर्श व्यंजन
जिन्हें बोलने में मुख के विभिन्न अंग का आपस में स्पर्श होते है। उसे स्पर्श व्यंजन कहते है। इसे वर्गीय व्यंजन भी कहते है क्योंकि यह पाँच-पाँच के वर्गों में बांटा होता है।
इसकी संख्या 25 है — क से म तक।
वर्गीय व्यंजन
वर्ग | वर्ण |
---|---|
क-वर्ग | क, ख, ग, घ, ङ |
च-वर्ग | च, छ, ज, झ, ञ |
ट-वर्ग | ट, ठ, ड, ढ, ण |
त-वर्ग | त, थ, द, ध, न |
प-वर्ग | प, फ, ब, भ, म |
अतःस्थ व्यंजन
स्वर और व्यंजन की बीच की स्थिति वाले व्यंजन को व्यंजन को अतःस्थ व्यंजन कहते है।
इसकी संख्या 4 है — य, र, ल, व ।
उष्म व्यंजन
जिन्हें बोलने में मुख से गर्म वायु निकलती है, उसे उष्म व्यंजन कहते है।
इसकी संख्या 4 है — श, ष, स, ह ।
संयुक्त व्यंजन
दो अलग- अलग व्यंजनों के मेल से बने व्यंजन को संयुक्त व्यंजन कहते है।
- क्ष = क् + ष – अक्षर,
- ज्ञ = ज् + ञ – ज्ञान,
- त्र = त् + र – नक्षत्र
- श्र = श् + र – श्रवण
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