भूमिका
लैंगिक न्याय (Gender Justice) का मतलब है समाज में सभी लिंगों—पुरुष, महिला, ट्रांसजेंडर आदि—को समान अधिकार, अवसर और सम्मान मिलना। यह केवल महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए जरूरी है। लैंगिक न्याय के बिना न तो कोई समाज तरक्की कर सकता है, न ही कोई देश। लेकिन आज भी दुनिया में करोड़ों महिलाएँ और लड़कियाँ भेदभाव, असमानता और अन्याय का सामना कर रही हैं।
इस उत्तर में हम वैश्विक स्तर पर लैंगिक असमानता के विभिन्न पहलुओं और उससे जुड़े आंकड़ों पर चर्चा करेंगे।
1. शिक्षा में लैंगिक असमानता
शिक्षा हर व्यक्ति का अधिकार है, लेकिन आज भी कई जगहों पर लड़कियाँ स्कूल नहीं जा पातीं।
- UNESCO की 2023 रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 129 मिलियन लड़कियाँ स्कूल से बाहर हैं।
- खासकर दक्षिण एशिया और अफ्रीका में माध्यमिक और उच्च शिक्षा तक पहुँच में लड़कियाँ पिछड़ रही हैं।
- कई जगहों पर पारिवारिक और सामाजिक दबाव के कारण लड़कियों की शिक्षा जल्दी रोक दी जाती है।
2. आर्थिक भागीदारी और वेतन में अंतर
महिलाएँ पुरुषों के बराबर काम करती हैं, फिर भी उन्हें समान वेतन नहीं मिलता।
- World Economic Forum की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 36% कम कमाई करती हैं।
- वैश्विक श्रम शक्ति में पुरुषों की भागीदारी 72% है, जबकि महिलाओं की केवल 47%।
- महिलाएँ अधिकतर अस्थायी और असंगठित क्षेत्रों में काम करती हैं, जहाँ उन्हें सामाजिक सुरक्षा और स्थायित्व नहीं मिलता।
3. राजनीतिक भागीदारी में असमानता
राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सीमित है।
- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 तक विश्व की केवल 26.5% सांसद महिलाएँ हैं।
- दुनिया में मात्र 15 देश हैं जहाँ राष्ट्रप्रमुख महिला हैं।
- ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक, महिलाओं की हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ रही है, लेकिन अब भी यह संतोषजनक नहीं है।
4. स्वास्थ्य सेवाओं में भेदभाव
महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- WHO के अनुसार, हर साल लाखों महिलाएँ प्रसव के दौरान उचित चिकित्सा के अभाव में जान गंवाती हैं।
- भारत सहित कई देशों में कुपोषण, एनीमिया और यौन स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का शिकार महिलाएँ अधिक होती हैं।
- कई बार परिवार में महिलाओं के इलाज को प्राथमिकता नहीं दी जाती।
5. घरेलू हिंसा और यौन शोषण
यह आज का सबसे बड़ा और गंभीर मुद्दा है।
- UN के अनुसार, दुनिया की हर तीसरी महिला अपने जीवन में शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होती है।
- कोरोना महामारी के दौरान घरेलू हिंसा के मामले तेजी से बढ़े, जिसे “Shadow Pandemic” कहा गया।
- बहुत-सी महिलाएँ डर या समाज के दबाव के कारण अपनी शिकायत दर्ज नहीं करवा पातीं।
6. डिजिटल क्षेत्र में असमानता
आज का युग डिजिटल है, लेकिन यहाँ भी लैंगिक असमानता है।
- विकासशील देशों में लड़कियों की इंटरनेट तक पहुँच लड़कों के मुकाबले बहुत कम है।
- महिलाओं को साइबर बुलिंग, ट्रोलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न का अधिक सामना करना पड़ता है।
- डिजिटल शिक्षा और अवसरों से महिलाएँ वंचित रह जाती हैं, जिससे उनके विकास पर असर पड़ता है।
7. कानून और नीतियाँ
लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए कई कानून बनाए गए हैं।
- संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास लक्ष्य SDG-5 के तहत लैंगिक समानता को प्रमुख लक्ष्य माना है।
- भारत में POSH Act (कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न कानून), महिला आरक्षण, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, सुकन्या योजना जैसे प्रयास किए गए हैं।
- लेकिन इन योजनाओं का सही और प्रभावी क्रियान्वयन जरूरी है।
8. कुछ सकारात्मक संकेत
हाल के वर्षों में लैंगिक समानता की दिशा में कुछ प्रगति भी देखने को मिली है।
- शिक्षा, खेल, व्यवसाय, विज्ञान और राजनीति में महिलाएँ आगे आ रही हैं।
- कई महिलाएँ आज CEO, वैज्ञानिक, अंतरिक्ष यात्री, सैन्य अधिकारी और उद्यमी बन रही हैं।
- सोशल मीडिया और जागरूकता अभियानों ने महिलाओं की आवाज को मंच दिया है।
निष्कर्ष
लैंगिक न्याय कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि मानव अधिकार है। जब तक समाज में महिलाओं और पुरुषों को समान अवसर और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक कोई भी देश विकास की दौड़ में आगे नहीं बढ़ सकता।
आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि दुनिया को लैंगिक न्याय के क्षेत्र में अभी लंबा सफर तय करना है। इसके लिए सिर्फ सरकारें नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह अपने घर, समाज और कार्यस्थल पर समानता का व्यवहार करे।
हमें यह समझना होगा कि लैंगिक न्याय सिर्फ महिलाओं की लड़ाई नहीं, यह पूरे मानव समाज की बेहतरी का प्रश्न है।
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