शब्द शक्ति पर टिप्पणी करें


परिचय:

भारतीय काव्यशास्त्र में ‘शब्द’ और ‘अर्थ’ की सत्ता को अत्यधिक महत्व दिया गया है। जब हम काव्य की बात करते हैं, तो केवल शब्दों का प्रयोग ही नहीं, बल्कि शब्दों की शक्ति और उनकी गूढ़ अर्थवत्ता को समझना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। शब्द जब अपने सामान्य अर्थ से आगे बढ़कर विशेष अर्थ प्रदान करता है, तो वही ‘शब्द शक्ति’ कहलाता है।

‘शब्द शक्ति’ का तात्पर्य है – वह शक्ति या सामर्थ्य जिसके माध्यम से शब्द अर्थ देता है। संस्कृत साहित्य में इसे अत्यंत वैज्ञानिक रूप से परिभाषित किया गया है। शब्द की यह शक्ति अर्थ तक पहुँचने का माध्यम बनती है, और इसी के आधार पर काव्य में गहराई और सौंदर्य की सृष्टि होती है।


शब्द शक्ति के प्रकार:

भारतीय आचार्यों ने शब्द शक्ति को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया है:

1. अभिधा (प्रत्यक्ष शक्ति):

अभिधा वह शक्ति है जिसके द्वारा शब्द अपने मुख्य या सामान्य अर्थ को प्रकट करता है। यह शब्द की प्राथमिक अर्थ देने की शक्ति है।

उदाहरण: “सिंह वन में चलता है।” — यहाँ ‘सिंह’ शब्द से हम सीधे उस जानवर को समझते हैं जिसे सिंह कहते हैं।

अभिधा शक्ति सबसे सामान्य है, और सभी शब्द पहले अभिधा के माध्यम से ही अर्थ देते हैं

2. लक्षणा (लक्षणात्मक शक्ति):

जब शब्द अपने मुख्य अर्थ में प्रयोग नहीं हो सकता या अप्रासंगिक होता है, तब वह संबंधित अर्थ को प्रकट करता है — यही लक्षणा शक्ति है। यह शक्ति तब सक्रिय होती है जब मुख्य अर्थ ग्रहण करना असंभव या अनुपयुक्त हो

उदाहरण: “गंगा में स्नान किया।” — यहाँ ‘गंगा’ का अर्थ केवल जल नहीं, बल्कि गंगा का जल है।

यहाँ ‘गंगा’ शब्द का मूल अर्थ नदी है, लेकिन लक्षणा शक्ति से इसका अर्थ नदी का जल माना गया।

3. व्यंजना (ध्वनि या व्यंजक शक्ति):

जब कोई शब्द अपने सामान्य या लक्षणा अर्थ के अतिरिक्त कोई गूढ़, अप्रकट या सांकेतिक अर्थ देता है, तब वह व्यंजना कहलाती है।

यह वही शक्ति है जिसे आनंदवर्धन ने ‘ध्वनि सिद्धांत’ के रूप में प्रतिष्ठित किया। काव्य में व्यंजना ही वह शक्ति है जो रस, भाव और सौंदर्य को जन्म देती है।

उदाहरण: “वह चंद्रमुखी लड़की” — यहाँ ‘चंद्रमुखी’ शब्द केवल सुंदरता को प्रकट नहीं करता, बल्कि भावुकता, आकर्षण और कोमलता जैसे अनेक अर्थों को संकेतित करता है।

व्यंजना शब्द शक्ति का सबसे गूढ़ और प्रभावशाली रूप है और यही काव्य को गद्य से अलग करता है।


अन्य अवधारणाएँ:

कुछ आचार्यों ने शब्द शक्ति में तत्सामानाधिकरण, व्यतिरेक, औचित्य, प्रसंगानुकूलता आदि तत्वों को भी शामिल किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि एक शब्द कई स्तरों पर अर्थ संप्रेषण करता है


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