परिचय
‘साकेत’ एक महाकाव्य है जो पौराणिक आख्यान-श्रृंखला के अंतर्गत आता है। इस काव्य के माध्यम से कवि ने सिर्फ पारंपरिक रामकथा का पुनर्प्रस्तुतीकरण नहीं किया, बल्कि उसमें नए दृष्टिकोण से पात्रों, भावनाओं और सामाजिक-मानवीय व्यवहारों को भी स्थान दिया है। कथावस्तु के आधार पर यदि हम देखें, तो यह अशोक, शांत, तपस्वी जीवन और व्यथा-भाव में उज्जवल है।
कथावस्तु का आधार
‘साकेत’ की कथावस्तु मूलतः अयोध्या, राम-कथा, वनवास, परिवार, त्याग और विरह के चारों ओर घूमती है। कवि ने इस काव्य में 12 सर्गों (अथवा बारह सर्गों) का विन्यास किया है। कथावस्तु की मुख्य रूपरेखा इस प्रकार है:
- राम, लक्ष्मण, सीता के वनवास को आरंभ में प्रस्तुत किया गया है।
- अयोध्या में छूट, प्रजा-दुःख, राजकीय एवं पारिवारिक रूप से उत्पीड़न-भावना का चित्रण है।
- इसके बाद विशेष रूप से उर्मिला — लक्ष्मण की पत्नी — के विरह, घर-परिवार में उसकी भूमिका और वह स्थिति जिसमें वह महत्व रखती है, उसे कवि प्रमुखता देता है।
- साथ ही, कैकेयी, जो राम को वनवास भेजने की प्रस्तावक थीं, उनके पश्चाताप-भाव को भी कवि ने मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उभारा है।
- अंत में, इस कथावस्तु में त्याग-भाव, पीड़ा-भाव और अंततः एक उच्चतर सामाजिक-मानवीय संदेश का प्रतिपादन होता है: केवल कथा नहीं, चरित्र-मानव-भावना-परिस्थिति का विश्लेषण।
कथावस्तु के प्रमुख बिंदु
१. अयोध्या-परिस्थिति
प्रारंभ में कवि ने अयोध्या यानी साकेत-नगर का सुन्दर, पावन और वैदिक वातावरण प्रस्तुत किया है। यह पृष्ठभूमि हमें बताती है कि जिस भूमि से राम, लक्ष्मण, सीता और अन्य पात्र जुड़े हैं, वह सिर्फ भौतिक स्थान नहीं है, बल्कि संस्कृति-भाव और आदर्शों का प्रतीक है। इस पृष्ठभूमि में वनवासी प्रकरण और समाज-परिस्थिति का विरोधाभास उजागर होता है।
२. वनवास व त्याग
कथा का अगला चरण वनवास का है — जब राम एवं लक्ष्मण, सीता के साथ वन जाते हैं। यह सिर्फ भौतिक वनवास नहीं, बल्कि आत्मा-त्याग, सामाजिक प्रतिष्ठा का त्याग, परिवार-परंपरा से अलगाव और मानवीय अनुभव का साम्राज्य है। इस तरह कथावस्तु एक गहरे मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी उतरती है।
३. उर्मिला का स्थान
यहाँ ‘साकेत’ अपने दूसरे पहलू से विशिष्ट बनेगा: कवि ने उर्मिला को केवल पार्श्व-पात्र नहीं माना बल्कि उसे कथा-केन्द्र में रखा। उर्मिला का घर में-परिवार में का कर्तव्य, पति-वियोग, सामाजिक प्रतीक्षा, गृह-परिस्थितियों का बोझ, ये सब कथावस्तु में महत्वपूर्ण हैं। कवि ने चारों बहनों में-से उसे-उसकी दशा में-बोझ उठाते हुए प्रस्तुत किया है। यह दृष्टिकोण पारंपरिक रामकथा से अलग है जहाँ मुख्यतः राम-सीता की कथा ही प्रवृत्त रही है।
४. पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण
कथा में पात्र मात्र काल्पनिक न रहकर जीवंत हो उठते हैं। कैकेयी का पश्चाताप, उर्मिला का विरह, राम-लक्ष्मण की अनुभूति, अयोध्यावासियों का दुःख-वियोग—सभी का मनो-चित्रण कवि ने बड़ी संवेदनशीलता से किया है। उदाहरण के लिए: कैकेयी ने मन्थरा को दोष देने के बजाय अपने स्वार्थ-प्रेरणा और वात्सल्य-भावना को स्वीकार किया है।
५. सामाजिक-मानवीय संदेश
कथावस्तु सिर्फ पुराण-आधारित कथा का पुनरावलोकन नहीं कर रही, बल्कि उसमें सामाजिक-मानवीय विमर्श भी है। उदाहरणस्वरूप: आधुनिक युग की ओर संकेत—नारी की भूमिका, त्याग-भाव, परिवार-उत्तरदायित्व, राष्ट्र-चेतना। कवि ने पौराणिक आख्यान को वर्तमान युग की संवेदनाओं और प्रश्नों से भी जोड़ा है।
कथावस्तु का विश्लेषण
‘साकेत’ की कथावस्तु पर विचार करने से निम्नलिखित बातें उभर कर सामने आती हैं:
- पारंपरिक से आधुनिक की ओर बदलाव: रामकथा के पारंपरिक स्वरूप में देव-भूमि, उत्सव, विजय प्रमुख रहती थी। लेकिन ‘साकेत’ में मनुष्य-भाव, पीड़ा-तल, त्याग-गलियारा प्रमुख है। इस तरह कथावस्तु पारंपरिक आख्यान से आधुनिक संवेदना की ओर बढ़ती है।
- नारी-केंद्रित दृष्टिकोण: जिस आख़्यान में मुख्यतः पुरुष-केंद्रित घटनाएँ हों, वहाँ ‘साकेत’ में उर्मिला का केंद्र-स्थान बताता है कैसे कथा-वस्तु को नया दृष्टिकोण मिला है। कथावस्तु में नारी-विरह, गृह-परिस्थिति, आत्म-त्याग आदि विषय गूढ़ता से सामने आए हैं।
- मूल कथा में विस्तार एवं गहनता: रामकथा ने विजय-युद्ध, आदर्श-राज्य, धर्म-कर्म जैसे विषय दिए। पर ‘साकेत’ में वनवास-परिस्थिति, गरीबी-परिवार-वियोग, मनो-दशा-दुःख आदि को भी समावेश मिला है — यही कथा-वस्तु की गहराई है।
- संस्कृति एवं चेतना का समन्वय: कथावस्तु मात्र व्यक्तिगत व पारिवारिक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहती। उसमें राष्ट्र-चेतना, सामाजिक मर्यादा, संस्कृति-लोकभाव का समावेश है। यह इसे अकेले आख्यान नहीं बल्कि चिंतनपूर्ण रचना बनाता है।
- भाव-विरह का माध्यम: कथावस्तु में सुंदर तरीके से विरह-भाव स्थापित है — न केवल प्रेम-विरह बल्कि जीवन-विरह, परिवार-वियोग। इस प्रकार कथा सामान्य सुख-दुःख से ऊपर उठ जाती है और हमें सोचने पर मजबूर करती है।
कथावस्तु में प्रमुख पात्रों एवं घटनाओं का योग
- राम-लक्ष्मण-सीता-उर्मिला-कैकेयी आदि पात्र कथावस्तु को विविध आयाम देते हैं।
- कथा की शुरुआत अयोध्या-स्वप्न-वातावरण से होती है, फिर वनवास-दशा, अंत में घर-परिस्थितियाँ व वियोग-दशा।
- उर्मिला का घर में प्रतिक्षा-दशा और परिवार-भार वह कथा-वस्तु का एक महत्वपूर्ण धारा है।
- कैकेयी का निर्णय, पश्चाताप और सामाजिक प्रभाव, यह भी कथा-वस्तु के अंतर्गत आता है।
- कथावस्तु में समय-चक्र, स्थान-परिवर्तन, मानसिक द्वन्द्व, सामाजिक संवाद आदि शामिल हैं — ये सब मिलकर ‘साकेत’ को विशिष्ट बनाते हैं।