सप्रसंग व्याख्या (“देख-देख राधा रूप अपार अपरुब के बिहि आनि मिलाओल खिति-खिति लावनि-सार।”)

पंक्ति:
“देख-देख राधा रूप अपार अपरुब के बिहि आनि मिलाओल खिति-खिति लावनि-सार।”


प्रसंग

यह पंक्ति विद्यापति की काव्य रचना से ली गई है। विद्यापति ने राधा-कृष्ण के प्रेम और उनके सौंदर्य के वर्णन में अद्भुत कल्पना और काव्यात्मकता का परिचय दिया है। इस पंक्ति में राधा के अनुपम सौंदर्य का वर्णन किया गया है। विद्यापति राधा के सौंदर्य को अद्वितीय और अतुलनीय मानते हैं, जो संपूर्ण सृष्टि के सौंदर्य का सार है। यह सौंदर्य केवल देखने योग्य नहीं, बल्कि अनुभव करने योग्य है।


संदर्भ

यह पंक्ति राधा के सौंदर्य को लेकर कृष्ण और अन्य गोपियों की भावनाओं को व्यक्त करती है। राधा का रूप ऐसा है, जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति ने अपने सभी अनुपम और दिव्य तत्वों को मिलाकर उनका निर्माण किया है।


व्याख्या

इस पंक्ति में राधा के रूप और सौंदर्य की विशेषताओं को दर्शाया गया है।

  1. “देख-देख राधा रूप अपार”:
    • राधा का रूप इतना अनुपम और असीम है कि इसे देखकर बार-बार देखने की इच्छा होती है।
    • उनका सौंदर्य इतना अद्वितीय है कि देखने वाले की आँखें इसे देखकर तृप्त नहीं होतीं।
    • “अपर” का अर्थ है अतुलनीय या जिसकी तुलना न की जा सके।
  2. “अपरुब के बिहि आनि मिलाओल”:
    • यहाँ कवि ने राधा के सौंदर्य को प्रकृति की विभिन्न सुंदरताओं का सम्मिश्रण बताया है।
    • यह सौंदर्य साधारण नहीं है, बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति ने सभी अद्भुत और दुर्लभ गुणों को राधा के रूप में समेट दिया है।
  3. “खिति-खिति लावनि-सार”:
    • “खिति-खिति” का अर्थ है सृष्टि या प्रकृति के विभिन्न तत्व।
    • राधा का सौंदर्य प्रकृति के सौंदर्य का सार है।
    • “लावनि-सार” का अर्थ है सौंदर्य का सार, अर्थात राधा का रूप सृष्टि की सुंदरता का चरम बिंदु है।

भावार्थ

इस पंक्ति का मुख्य उद्देश्य राधा के अनुपम और दिव्य सौंदर्य को व्यक्त करना है। यह सौंदर्य केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से भी गहराई लिए हुए है।

  1. राधा का असीम सौंदर्य:
    • राधा का रूप इतना अद्वितीय है कि इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे सृष्टि ने अपनी पूरी शक्ति और सुंदरता को राधा के रूप में संजो दिया हो।
    • यह सौंदर्य केवल देखने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा को भी आनंदित करता है।
  2. प्रकृति और सौंदर्य का समन्वय:
    • विद्यापति ने राधा के रूप को प्रकृति की विभिन्न सुंदरताओं के मिश्रण के रूप में प्रस्तुत किया है।
    • उनके रूप में सृष्टि के सभी सुंदर और अद्भुत तत्व समाहित हैं।
  3. भक्ति और श्रृंगार रस का समन्वय:
    • इस पंक्ति में श्रृंगार रस का अद्भुत चित्रण है, जिसमें भक्ति का भाव भी समाहित है।
    • राधा का सौंदर्य लौकिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता और प्रेम का प्रतीक है।

साहित्यिक सौंदर्य

विद्यापति की भाषा, शैली और काव्यात्मकता इस पंक्ति में स्पष्ट दिखाई देती है।

  • चित्रात्मक वर्णन: राधा के रूप का इतना सजीव चित्रण किया गया है कि पाठक इसे अपनी कल्पना में अनुभव कर सकते हैं।
  • भावनात्मक गहराई: राधा के सौंदर्य को देखकर जो भाव उत्पन्न होते हैं, वे केवल लौकिक नहीं, बल्कि आत्मिक हैं।
  • श्रृंगार और भक्ति का समन्वय: इस पंक्ति में श्रृंगार और भक्ति रस का अद्भुत मेल है।

निष्कर्ष

यह पंक्ति राधा के सौंदर्य का अतुलनीय और दिव्य वर्णन करती है। विद्यापति ने अपने काव्य में राधा-कृष्ण के प्रेम और सौंदर्य को जिस कोमलता और गहराई से व्यक्त किया है, वह अनुपम है। राधा का रूप सृष्टि की सुंदरता का सार है, जो देखने वाले को आत्मिक आनंद प्रदान करता है। इस पंक्ति में श्रृंगार और भक्ति रस का अद्वितीय समन्वय देखने को मिलता है।

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