सामंतवाद के पतन के कारणों का वर्णन करें।


परिचय:

सामंतवाद एक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था थी, जो मध्यकालीन युग में यूरोप से लेकर भारत और अन्य भागों तक फैली हुई थी। इस प्रणाली में भूमि प्रमुख साधन थी और शक्ति का केंद्र भी। राजा भूमि का स्वामी होता था, और वह इसे अपने विश्वासी सामंतों को देता था, जो बदले में सैनिक सेवा, कर या वफादारी प्रदान करते थे। यह व्यवस्था लम्बे समय तक चली, लेकिन जैसे-जैसे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन आए, सामंतवाद की जड़ें हिलने लगीं और अंततः इसका पतन हुआ। सामंतवाद के पतन के कई कारण रहे, जिन्हें हम विभिन्न दृष्टिकोणों से समझ सकते हैं।


1. आर्थिक कारण

(क) व्यापार और नगरीकरण का विकास:
मध्यकाल के अंतिम चरण में व्यापार और वाणिज्य में तेज़ी से वृद्धि हुई। नई मंडियाँ बनीं, व्यापारी वर्ग उभरने लगा और शहरों का विकास हुआ। इससे पुरानी ज़मींदारी आधारित ग्रामीण व्यवस्था कमजोर होने लगी। अब लोग भूमि के बजाय व्यापार और उद्योग में लाभ देखने लगे।

(ख) मुद्रा अर्थव्यवस्था का प्रसार:
सामंतवाद की व्यवस्था में लेन-देन प्रायः वस्तु-विनिमय (barter system) पर आधारित था। लेकिन धीरे-धीरे मुद्रा का चलन बढ़ा, जिससे लोग नकद भुगतान को प्राथमिकता देने लगे। ज़मींदारों की सैनिक सेवाएँ अब नगद वेतन में तब्दील होने लगीं, जिससे सामंती बंधन ढीले पड़ने लगे।

(ग) कृषि उत्पादन में परिवर्तन:
जैसे-जैसे तकनीकी विकास हुआ, खेती में उपकरणों का प्रयोग बढ़ा और श्रमिकों की आवश्यकता घटने लगी। इससे किसानों का भूमिपति पर निर्भर रहना कम हो गया। साथ ही, भूमि की उपज पर अब सामंतों का पूर्ण नियंत्रण नहीं रह पाया।


2. सामाजिक कारण

(क) श्रमिकों की स्थिति में सुधार:
महामारियाँ जैसे ब्लैक डेथ (Black Death) ने यूरोप की आबादी को काफी घटा दिया, जिससे श्रमिकों की माँग बढ़ी और उनकी स्थिति सशक्त हुई। अब वे अधिक मजदूरी की माँग करने लगे और ज़मींदारों को उनकी शर्तों पर काम करवाना कठिन होने लगा।

(ख) किसान विद्रोह:
अनेक देशों में किसान अपने अधिकारों के लिए उठ खड़े हुए। इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और भारत में समय-समय पर हुए किसान विद्रोहों ने सामंतों की सत्ता को चुनौती दी। ये विद्रोह इस ओर संकेत करते हैं कि किसान अब पुराने बंधनों से आज़ादी चाहते थे।

(ग) शिक्षा और जागरूकता का प्रसार:
मुद्रण कला के विकास और विश्वविद्यालयों की स्थापना से शिक्षा का प्रसार हुआ। लोगों में आत्मचेतना आई और वे अधिकारों के प्रति सजग हुए। सामंती व्यवस्था की असमानता और उत्पीड़न पर अब सवाल उठने लगे।


3. राजनीतिक कारण

(क) केंद्रीकृत राजसत्ता का उदय:
मध्यकाल के अंत तक यूरोप और भारत में राजाओं ने अपनी शक्ति को केंद्रीकृत करना शुरू कर दिया। उन्होंने निजी सेनाओं को समाप्त कर राज्य की स्थायी सेना बनाई। इससे सामंतों की शक्ति कम होने लगी, जो पहले अपने निजी किलों और सेनाओं के बल पर स्वतंत्र रूप से कार्य करते थे।

(ख) राष्ट्रीयता की भावना का विकास:
राजनीतिक एकता और राष्ट्रवाद के उदय ने भी सामंतवाद की नींव को कमजोर किया। लोग अब छोटे-छोटे जागीरदारों के बजाय एक संगठित, शक्तिशाली राष्ट्र की अवधारणा को अधिक महत्व देने लगे।

(ग) कानून का शासन:
राज्य की न्याय प्रणाली का विकास हुआ और अब हर क्षेत्र में राज्य के कानून का पालन आवश्यक हो गया। इससे सामंतों की मनमानी समाप्त होने लगी। राजा अब न्यायपालिका के माध्यम से सीधे प्रजा तक पहुँचने लगे।


4. धार्मिक कारण

(क) चर्च की शक्ति में कमी:
मध्यकाल में चर्च और सामंती व्यवस्था एक-दूसरे के पूरक थे। लेकिन जब चर्च की शक्ति में कमी आई, तो सामंतवाद भी प्रभावित हुआ। यूरोप में प्रोटेस्टेंट आंदोलन और भारत में भक्ति और सूफी आंदोलनों ने धार्मिक कट्टरता और पाखंड के विरुद्ध जन चेतना फैलाई।

(ख) धर्म के नाम पर होने वाले अत्याचार:
सामंतवादी व्यवस्था में धर्म का सहारा लेकर लोगों को दमन में रखा जाता था। जब लोगों ने इसका विरोध करना शुरू किया, तो सामंतवाद को भी आघात पहुँचा।


5. तकनीकी और वैज्ञानिक कारण

(क) कृषि तकनीक में सुधार:
नई कृषि तकनीकों ने खेती की उपज बढ़ा दी और किसान अब सामंतों पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहे। साथ ही, औजारों और यंत्रों की मदद से खेती में मज़दूरों की संख्या कम होने लगी।

(ख) औद्योगिक क्रांति की भूमिका:
यूरोप में औद्योगिक क्रांति ने पूरी आर्थिक व्यवस्था को बदल दिया। अब भूमि की बजाय कारखानों और मशीनों ने उत्पादन का केंद्र स्थान ले लिया। इससे सामंतवादी भूमि पर आधारित अर्थव्यवस्था अप्रासंगिक होती चली गई।

(ग) परिवहन और संचार में बदलाव:
सड़कों, रेलों और डाक व्यवस्था जैसे साधनों ने दूर-दराज़ के क्षेत्रों को जोड़ दिया। इससे न केवल व्यापार बढ़ा, बल्कि लोगों के बीच विचारों का आदान-प्रदान भी हुआ, जिससे वे नई सोच को अपनाने लगे और पुराने सामंती ढाँचे से मुक्त होना चाहने लगे।


6. युद्ध और संघर्ष

(क) दीर्घकालीन युद्धों का प्रभाव:
यूरोप में सौ वर्षीय युद्ध (Hundred Years’ War) और भारत में मराठों और मुगलों के बीच संघर्ष जैसे कई युद्धों ने सामंती शक्ति को कमजोर कर दिया। लंबे युद्धों ने आर्थिक संसाधनों को खत्म किया और आम जनता पर बोझ बढ़ाया।

(ख) बारूद और बंदूकों का इस्तेमाल:
नए हथियारों जैसे बारूद और बंदूकों ने पुराने किलों और घुड़सवार सेनाओं की उपयोगिता को कम कर दिया, जो सामंतों की शक्ति का आधार थे। अब युद्ध के नए तरीके अपनाए जाने लगे और सामंतों की पारंपरिक शक्ति का अंत होने लगा।


7. वैचारिक और बौद्धिक कारण

(क) पुनर्जागरण का प्रभाव:
पुनर्जागरण ने मानव जीवन, स्वतंत्रता और समानता की नई अवधारणाएँ दीं। इस आंदोलन ने तर्क, विवेक और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया, जिससे सामंती विश्वासों और रूढ़ियों को चुनौती मिली।

(ख) मानवतावाद और उदारवाद का उदय:
मानवतावाद और उदारवाद ने लोगों को व्यक्तिगत अधिकारों, स्वतंत्रता और सामाजिक समानता की दिशा में सोचने को प्रेरित किया। सामंती व्यवस्था, जो विशेषाधिकारों और जन्म आधारित पदानुक्रम पर आधारित थी, इस नई सोच से मेल नहीं खाती थी।


8. कानूनी और संवैधानिक बदलाव

(क) संवैधानिक संस्थाओं का विकास:
यूरोप में संसद, अदालतें और नागरिक अधिकारों जैसे संस्थानों के विकास ने लोगों को कानून के सामने बराबरी का अधिकार दिलाया। इससे सामंतों की मनमानी और विशेषाधिकार सीमित हो गए।

(ख) कर व्यवस्था में सुधार:
राजाओं और सरकारों ने अब कर वसूली के लिए सीधे किसानों और व्यापारियों से संपर्क करना शुरू कर दिया, जिससे सामंतों की भूमिका गौण हो गई। इससे उनकी आर्थिक शक्ति में कमी आई।


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