हबीब तनवीर पर टिप्पणी


परिचय:

हबीब तनवीर भारतीय रंगमंच की दुनिया के एक ऐसे चमकते सितारे थे जिन्होंने भारतीय थियेटर को नई पहचान दी। वे एक नाटककार, निर्देशक, कवि और विचारक थे, लेकिन इन सबसे ऊपर वे एक प्रयोगधर्मी कलाकार थे, जिन्होंने भारतीय लोकनाट्य और आधुनिक रंगमंच के बीच एक अनोखा पुल बनाया। उन्होंने नाटकों को मंच पर लाने के तरीके को बदला और उसे आम लोगों के करीब पहुँचाया।


जीवन परिचय:

  • पूरा नाम: हबीब अहमद खान
  • जन्म: 1 सितंबर 1923, रायपुर (छत्तीसगढ़)
  • मृत्यु: 8 जून 2009, भोपाल
  • शिक्षा: नागपुर और अलीगढ़ विश्वविद्यालय से पढ़ाई, बाद में लंदन की रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स (RADA) से रंगमंच की शिक्षा

हबीब तनवीर का जीवन विविध रंगों से भरा हुआ था। वे एक बहुभाषी व्यक्ति थे और उन्होंने उर्दू, हिंदी, अंग्रेज़ी और लोकभाषाओं में काम किया। उन्होंने थियेटर को एक ऐसा मंच बनाया जो न सिर्फ़ शहरी बल्कि ग्रामीण भारत को भी खुद से जोड़ता है।


रंगमंच की शैली और विशेषताएँ:

1. लोक और शास्त्र का संगम:

हबीब तनवीर ने छत्तीसगढ़ी लोक कलाकारों और लोक नाट्य “नाचा” को अपने नाटकों में स्थान देकर उसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनकी शैली में न पारंपरिक रंगमंच की औपचारिकता थी, न ही केवल आधुनिकता का बोज़। यह एक सहज और जन-भावनाओं से जुड़ी प्रस्तुति थी।

2. भाषा का प्रयोग:

उन्होंने थियेटर की भाषा को आम जनता की भाषा बनाया। उनके नाटकों में छत्तीसगढ़ी, हिंदी और उर्दू का ऐसा मेल देखने को मिलता है, जो दर्शकों को सीधे जोड़ता है।

3. कलाकारों का चयन:

वे प्रशिक्षित कलाकारों की बजाय गांव के असली लोक कलाकारों को मंच पर लाते थे। यही उनकी खास बात थी – कला को elitist न बनाकर, grassroots से जोड़े रखना।


प्रमुख नाटक:

  • चरणदास चोर:
    यह हबीब तनवीर का सबसे प्रसिद्ध नाटक है। इसमें एक चोर की कहानी है जो अपने सिद्धांतों के लिए जान दे देता है। यह नाटक ईमानदारी, नैतिकता और समाज की दोहरापन को उजागर करता है।
  • आगरा बाज़ार:
    मिर्ज़ा ग़ालिब के समय के बाज़ार और लोगों की ज़िंदगी को दर्शाने वाला नाटक। यह हबीब तनवीर का पहला बड़ा नाटक था जिसमें उन्होंने पेशेवर कलाकारों की बजाय आम लोगों को मंच पर उतारा।
  • मिट्टी की गाड़ी, कामदेव का अपना सपना, जिन लाहौर नहीं वेख्या — जैसे अन्य नाटक भी उनके प्रयोगशील और वैचारिक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

पुरस्कार और सम्मान:

हबीब तनवीर को भारतीय रंगमंच में उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले:

  • पद्मश्री (1983)
  • पद्मभूषण (2002)
  • संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1969)
  • कलिदास सम्मान
  • बर्लिन इंटरनेशनल थिएटर फेस्टिवल सहित कई विदेशी मंचों पर भी सम्मान

निष्कर्ष:

हबीब तनवीर केवल एक नाटककार नहीं थे, हबीब तनवीर एक आंदोलन थे। उन्होंने रंगमंच को elitism से निकालकर जनता का मंच बनाया। उनकी कला में लोक का रस, आधुनिकता की दृष्टि, और मानवीय संवेदनाओं की गहराई थी। वे आज भी उन कलाकारों के प्रेरणास्रोत हैं जो थियेटर को सिर्फ मंच की चीज़ नहीं, बल्कि समाज बदलने का माध्यम मानते हैं।


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