भारतीय समाज एक बहुस्तरीय संरचना है, जिसमें जाति, वर्ग, धर्म, लिंग और अन्य सामाजिक विभाजनों के आधार पर असमानता और भेदभाव व्याप्त है। इस संरचना में हाशिए पर मौजूद वर्ग उन व्यक्तियों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है, जिन्हें मुख्यधारा के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दायरों से बाहर रखा गया है। इन वर्गों की अस्मिता उनके संघर्ष, पहचान, और उनके अधिकारों के लिए किए गए आंदोलन का प्रतीक है।
हाशिए पर रहने वालों की अस्मिता का स्वरूप
हाशिए की अस्मिताएँ उन व्यक्तियों और समुदायों की पहचान को दर्शाती हैं, जो समाज के केंद्र से दूर रखे गए हैं। इनमें दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिलाएँ, LGBTQ+ समुदाय और अन्य वंचित समूह शामिल हैं। इन समुदायों को न केवल भौतिक और आर्थिक रूप से शोषित किया गया, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी दरकिनार किया गया है। उनकी अस्मिता उनके अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्षों में निहित है।
हाशिए की अस्मिताओं के प्रमुख पहलू
1. जातिगत अस्मिता
भारतीय समाज में जाति एक प्रमुख कारक है, जिसने दलित और पिछड़े वर्गों को हाशिए पर धकेला। दलित अस्मिता का संघर्ष जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता, और सामाजिक अपमान के खिलाफ रहा है। दलित साहित्य और आंदोलनों ने इन समुदायों की आवाज को मुखर किया है। ओमप्रकाश वाल्मीकि की ‘जूठन’ और जोशीला दलित आंदोलन इस अस्मिता के उदाहरण हैं।
2. लैंगिक अस्मिता
महिलाओं को पितृसत्तात्मक समाज में हमेशा द्वितीयक माना गया। उनकी अस्मिता उनके अधिकारों, स्वतंत्रता, और आत्मनिर्भरता के संघर्ष में निहित है। महिला आंदोलन और स्त्री साहित्य ने इस अस्मिता को प्रमुखता दी है। प्रभा खेतान की ‘अन्या से अनन्या’ और महादेवी वर्मा की रचनाएँ इस दिशा में उल्लेखनीय हैं।
3. आदिवासी अस्मिता
आदिवासी समुदायों को उनकी भूमि, संस्कृति और जीवनशैली से वंचित किया गया। उनकी अस्मिता उनके सांस्कृतिक अधिकारों और संसाधनों की लड़ाई में निहित है। आदिवासी साहित्य और आंदोलन उनके संघर्षों और अस्तित्व की पहचान को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करते हैं।
4. अल्पसंख्यक और LGBTQ+ अस्मिता
धार्मिक अल्पसंख्यकों और LGBTQ+ समुदाय ने भी अपने अधिकारों और सामाजिक स्वीकार्यता के लिए संघर्ष किया है। उनकी अस्मिता उनके अस्तित्व, अभिव्यक्ति और समान अधिकारों की मांग के रूप में प्रकट होती है।
हाशिए की अस्मिता का महत्व
हाशिए पर मौजूद वर्गों की अस्मिता का महत्व उनके संघर्षों को पहचानने और समाज में समानता स्थापित करने में निहित है। यह अस्मिता हमें यह समझने में मदद करती है कि समाज में सबकी आवाज महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से विविधता, समावेशिता, और न्याय जैसे मूल्यों को बल मिलता है।
निष्कर्ष
“हाशिए की अस्मिताएँ” न केवल एक सामाजिक मुद्दा हैं, बल्कि वे समाज के समावेशी विकास और न्यायपूर्ण व्यवस्था की मांग करती हैं। यह अस्मिताएँ हमें यह सिखाती हैं कि समाज तब तक प्रगति नहीं कर सकता, जब तक कि हर वर्ग को समान अवसर, सम्मान, और अधिकार प्राप्त न हों। इन आवाजों को पहचानना और उनका सम्मान करना ही समाज को सशक्त और न्यायपूर्ण बना सकता है।
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