पत्रकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र पर टिप्पणी

भारतेन्दु हरिश्चंद्र हिंदी पत्रकारिता, साहित्य और समाज सुधार के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व हैं। उन्हें “आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक” और “हिंदी पत्रकारिता के पितामह” के रूप में जाना जाता है। वे उन गिने-चुने व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हिंदी भाषा को साहित्यिक स्तर पर स्थापित करने का कार्य किया। पत्रकारिता, नाटक, कविता, सामाजिक चेतना और राष्ट्रभक्ति—इन सभी क्षेत्रों में भारतेन्दु जी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।

प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को वाराणसी में एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे साहित्य, संस्कृति और समाज के प्रति अत्यंत जागरूक थे। उन्हें संस्कृत, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान था। उनके पिता गोपालचंद्र ‘गिरिधरदास’ भी एक कवि थे, जिनका प्रभाव हरिश्चंद्र पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

पत्रकारिता में योगदान

भारतेन्दु जी ने जब पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा, तब भारत पर ब्रिटिश शासन था और जनता में राजनीतिक तथा सामाजिक जागरूकता की भारी कमी थी। उन्होंने पत्रकारिता को केवल सूचना का माध्यम न मानकर, उसे सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना का मंच बनाया। उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से जनता को न केवल शिक्षित किया, बल्कि उनमें आत्मसम्मान, स्वदेश प्रेम और स्वतंत्रता की भावना भी जगाई।

उन्होंने 1873 में ‘कविवचन सुधा’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन शुरू किया, जो उस समय की एक अत्यंत लोकप्रिय और प्रभावशाली पत्रिका बनी। इसके माध्यम से उन्होंने सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक अंधविश्वासों और अंग्रेजी शासन की नीतियों की आलोचना की। उन्होंने पत्रकारिता को जनजागरण का हथियार बनाया।

भाषाई और साहित्यिक योगदान

भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने हिंदी भाषा को सहज, सरल और व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया। उन्होंने हिंदी को संस्कृत के जटिल शब्दों से मुक्त कर एक ऐसी भाषा में ढाला जो आम जनमानस द्वारा आसानी से समझी जा सके। उन्होंने नाटक, कविता, निबंध, यात्रा-वृत्तांत, और रिपोर्ताज जैसे विभिन्न साहित्यिक रूपों में लिखा और हर विधा में हिंदी को सशक्त बनाया।

उनकी प्रमुख कृतियों में अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सत्य हरिश्चंद्र आदि शामिल हैं। ये रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध हैं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक सन्देशों से भी परिपूर्ण हैं।

सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना

भारतेन्दु जी एक जागरूक और संवेदनशील नागरिक थे। उन्होंने तत्कालीन सामाजिक समस्याओं पर खुलकर कलम चलाई। बाल विवाह, स्त्री शिक्षा, जात-पात, विदेशी वस्त्रों का विरोध, स्वदेशी आंदोलन आदि विषयों पर उनके विचार बहुत स्पष्ट और दृढ़ थे। वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं के पक्षधर थे, लेकिन समाज की बुराइयों पर भी तीव्र प्रहार करते थे।

निष्कर्ष

भारतेन्दु हरिश्चंद्र सिर्फ एक साहित्यकार या पत्रकार नहीं थे, वे एक आंदोलन थे। उन्होंने पत्रकारिता को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाया और हिंदी भाषा को जन-जन तक पहुँचाया। उनकी पत्रकारिता तथ्यपरक, साहसी और राष्ट्रवादी थी।

आज जब हम स्वतंत्र और जागरूक पत्रकारिता की बात करते हैं, तो भारतेन्दु जी का नाम स्वाभाविक रूप से हमारे मन में आता है। वे आज भी पत्रकारों और लेखकों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके विचार और रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हिंदी पत्रकारिता की नींव को मज़बूती प्रदान करती हैं।

इसलिए यह कहना बिल्कुल उचित होगा कि भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने पत्रकारिता को एक मिशन बनाया और उसकी दिशा व दशा दोनों को बदल कर रख दिया।

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