पत्रकारिता का मूल उद्देश्य समाज को सही, संतुलित और निष्पक्ष जानकारी प्रदान करना है, ताकि जनता जागरूक, समझदार और सक्रिय बन सके। लेकिन जब पत्रकारिता अपने इस उद्देश्य से भटक जाती है और सनसनी, अफवाह, भ्रामक सूचनाओं या झूठे तथ्यों के आधार पर खबरें प्रस्तुत करती है, तो उसे “पीत पत्रकारिता” (Yellow Journalism) कहा जाता है। यह पत्रकारिता का वह स्वरूप है जो सत्य की जगह उत्तेजना, नैतिकता की जगह भ्रामकता, और जनहित की जगह निजी स्वार्थों को प्राथमिकता देता है।
पीत पत्रकारिता क्या है?
“पीत पत्रकारिता” उस पत्रकारिता को कहा जाता है जिसमें तथ्यों की पुष्टि किए बिना, भड़काऊ सुर्खियों, भावनात्मक प्रस्तुतियों और सनसनीखेज खबरों के ज़रिए लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश की जाती है। इसमें सत्य या तटस्थता का महत्व कम होता है, और लक्ष्य केवल पाठक या दर्शक संख्या बढ़ाना होता है।
यह शब्द 19वीं सदी के अमेरिका में शुरू हुआ, जब दो प्रमुख अखबारों—The New York World और The New York Journal—ने पाठकों को आकर्षित करने के लिए अतिरंजित, अर्धसत्य या झूठी खबरें छापनी शुरू कीं। आज यह समस्या वैश्विक बन चुकी है, और भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों में भी इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
पीत पत्रकारिता की विशेषताएँ
- सनसनीखेज शीर्षक – खबरों के शीर्षक इस तरह बनाए जाते हैं कि पाठक तुरंत क्लिक करें या अखबार खरीद लें, भले ही खबर का वास्तविक तथ्यों से कोई संबंध न हो।
- तथ्यों की अनदेखी – तथ्यों की पुष्टि किए बिना या उन्हें तोड़-मरोड़कर पेश करना इसकी एक आम प्रवृत्ति है।
- भय या उत्तेजना फैलाना – समाज में डर, नफ़रत, गुस्सा या संवेदना पैदा करने के लिए भ्रामक भाषा और चित्रों का प्रयोग।
- गोपनीयता और मर्यादा का उल्लंघन – किसी की निजी जिंदगी को सार्वजनिक कर देना, अफवाहों को खबर बना देना और नैतिक सीमाओं को लांघ जाना।
- मनोरंजन को खबर बनाना – वास्तविक मुद्दों की जगह सिनेमा, प्रेम-प्रसंग, विवाद और गॉसिप को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना।
पीत पत्रकारिता के प्रभाव
- जनता में भ्रम और असुरक्षा – असत्य या आधे-अधूरे तथ्यों पर आधारित खबरें लोगों में गलतफहमियाँ और भय फैलाती हैं।
- सामाजिक सौहार्द्र को नुकसान – जाति, धर्म, क्षेत्र या राजनीति से जुड़ी भ्रामक खबरें समाज में टकराव को जन्म देती हैं।
- विश्वसनीयता में गिरावट – जब मीडिया बार-बार गलत या झूठी खबरें परोसता है, तो उसकी साख जनता की नजरों में गिरती है।
- राजनीतिक और कॉर्पोरेट दबाव – पीत पत्रकारिता कभी-कभी राजनीतिक दलों या बड़े व्यापारिक घरानों के इशारे पर काम करती है, जिससे निष्पक्षता खत्म हो जाती है।
आज की स्थिति
वर्तमान समय में सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने पीत पत्रकारिता को और भी बढ़ावा दिया है। “क्लिकबेट” शीर्षक, वायरल ट्रेंड्स और फेक न्यूज़ इसके नए रूप बन गए हैं। अब पत्रकारिता का एक बड़ा हिस्सा टीआरपी, लाइक्स और व्यूज़ के पीछे भागने लगा है, जिससे समाज के लिए जरूरी मुद्दे पीछे छूट जाते हैं।
समाधान क्या है?
- मीडिया साक्षरता – लोगों को यह समझना चाहिए कि हर खबर पर आँख मूंदकर भरोसा न करें। स्रोत की जांच करना ज़रूरी है।
- मीडिया की जवाबदेही – मीडिया संस्थानों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और भ्रामक सामग्री से बचना चाहिए।
- नियम और कानून – सरकार और प्रेस काउंसिल को चाहिए कि वे पत्रकारिता के मानकों का पालन न करने वालों पर कार्रवाई करें।
- स्वतंत्र और नैतिक पत्रकारिता को बढ़ावा – उन पत्रकारों और संस्थानों को प्रोत्साहित किया जाए जो निष्पक्ष और तथ्य आधारित पत्रकारिता करते हैं।
निष्कर्ष
‘पीत पत्रकारिता’ न केवल पत्रकारिता की साख को गिराती है, बल्कि लोकतंत्र और समाज के स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है। जब मीडिया अपनी भूमिका को भूलकर केवल लाभ के पीछे भागता है, तो वह सूचना का स्रोत नहीं, बल्कि भ्रम और अस्थिरता का कारण बन जाता है। इसलिए आज ज़रूरत है जिम्मेदार, जागरूक और नैतिक पत्रकारिता की—जो सच बोले, समाज को जोड़ें और देश को मजबूत बनाए।
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