परिचय:
सआदत हसन मंटो उर्दू साहित्य के उन चंद लेखकों में गिने जाते हैं जिन्होंने समाज को उसकी असल शक्ल में दिखाने का साहस किया। वे न केवल एक महान अफ़साना निगार (कहानीकार) थे, बल्कि अपने समय के सबसे बेबाक और विवादित लेखक भी रहे। उन्होंने शब्दों से वो काम किया जो तलवारें भी नहीं कर पातीं – उन्होंने सच को बिना मिलावट, बिना डर और बिना लाग-लपेट के काग़ज़ पर उतारा।
जीवन परिचय:
- जन्म: 11 मई 1912, लुधियाना (पंजाब, भारत)
- मृत्यु: 18 जनवरी 1955, लाहौर (पाकिस्तान)
- शिक्षा: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से
- प्रसिद्ध विधा: अफ़साना (Short Story), नाटक, निबंध, फिल्म पटकथा
सआदत हसन का जीवन संघर्षों से भरा था। उन्होंने बहुत छोटी उम्र में लेखन शुरू किया और बहुत जल्दी अपने तीखे विचारों के लिए प्रसिद्ध हो गए। भारत-पाक विभाजन ने उनके जीवन और लेखन दोनों पर गहरा प्रभाव डाला।
लेखन शैली और विशेषताएँ:
- यथार्थवाद (Realism):
मंटो की कहानियाँ कल्पना नहीं, हकीकत से बनी होती थीं। उन्होंने समाज के सबसे दबे-कुचले, हाशिए पर खड़े लोगों की ज़िंदगी को अपना विषय बनाया। - विवादस्पद पर बेबाकी:
उन्होंने सेक्स, वेश्यावृत्ति, मानसिक विकार, धार्मिक कट्टरता जैसे विषयों को बिना डर के लिखा। इसीलिए उन पर कई बार अश्लीलता के मुकदमे भी चले। - सादा भाषा, गहरी बात:
मंटो की भाषा आम आदमी की थी, मगर उनके शब्दों में इतनी ताकत होती थी कि सीधे दिल और दिमाग़ को झकझोर देते।
प्रमुख कहानियाँ:
- टोबा टेक सिंह:
विभाजन की पागलपनभरी राजनीति पर सबसे मार्मिक व्यंग्य। एक पागल के माध्यम से मंटो ने बताया कि असल पागल कौन है – पागलखाने के भीतर या बाहर? - ठंडा गोश्त:
इंसानी हवस और हिंसा की हदों को दिखाने वाली एक विवादित मगर सशक्त कहानी। - काली शलवार, बू, खोल दो, हथकड़ी, निजात
– ये सभी कहानियाँ समाज की परतों को खोलती हैं, जहाँ हम इंसान कम और नकाब पहने हुए प्राणी ज़्यादा नज़र आते हैं।
विवाद और मुकदमे:
सआदत हसन पर ब्रिटिश हुकूमत से लेकर पाकिस्तानी सरकार तक ने कई मुकदमे चलाए। उनके खिलाफ अश्लीलता के आरोप लगाए गए, लेकिन मंटो का तर्क हमेशा यही रहा:
“अगर मेरी कहानियाँ अश्लील हैं, तो समाज अश्लील है। मैं तो सिर्फ़ उसका आईना हूँ।”
सआदत हसन और विभाजन:
1947 का भारत-पाकिस्तान विभाजन सआदत हसन के लेखन में सबसे निर्णायक मोड़ साबित हुआ। उन्होंने उस दर्द, बर्बरता, और इंसानियत के टूटते रिश्तों को अपनी कहानियों में दर्ज किया, जो इतिहास की किताबें नहीं बता पातीं। सआदत हसन का दिल इस बँटवारे में टूट गया था – और यही टूटन उनके अंतिम दिनों में शराब और अकेलेपन का कारण बनी।
निष्कर्ष:
सआदत हसन मंटो सिर्फ़ एक लेखक नहीं, एक चेतना हैं। उन्होंने शब्दों से समाज की चुप चीख़ों को आवाज़ दी। उन्होंने दिखाया कि साहित्य का असली काम सिर्फ मनोरंजन नहीं, समाज को उसके सच से रूबरू कराना भी है। सआदत हसन ने जो लिखा, वो आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना उनके समय में था – शायद और भी ज़्यादा।
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