काव्य लक्षण पर टिप्पणी


काव्य लक्षण

परिचय:

‘काव्य’ शब्द सुनते ही मन में सौंदर्य, भाव, कल्पना और अभिव्यक्ति की छवि उभरती है। साहित्य में काव्य को सबसे सशक्त और प्रभावकारी माध्यम माना गया है, जो केवल सूचनाएँ नहीं देता, बल्कि संवेदना, अनुभूति और रस उत्पन्न करता है। ऐसे में यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि कविता को काव्य बनाने वाली विशेषता क्या है? यानी – काव्य लक्षण क्या है?

‘लक्षण’ का अर्थ है — वह गुण जिससे किसी वस्तु की पहचान हो। अतः ‘काव्य लक्षण’ का तात्पर्य है — वह विशेषता जो किसी रचना को काव्य बनाती है, जिससे वह सामान्य गद्य, संवाद या जानकारी देने वाली रचना से भिन्न हो जाती है।


भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य लक्षण की अवधारणा:

भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य लक्षण को लेकर विविध मत और परंपराएँ रही हैं। यह मत विभिन्न आचार्यों द्वारा उनके समय, अनुभव और साहित्यिक दृष्टिकोण के अनुसार प्रस्तुत किए गए। इन सबका उद्देश्य एक ही रहा — काव्य की आत्मा को पहचानना और परिभाषित करना।


1. भरत मुनि का दृष्टिकोण: रसात्मकता को लक्षण

भरत मुनि, जो नाट्यशास्त्र के रचयिता माने जाते हैं, उन्होंने काव्य की आत्मा को रस बताया। उनके अनुसार:

“विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः।”

अर्थात्, विभाव (उत्प्रेरक), अनुभाव (भावों की अभिव्यक्ति) और संचारी भावों (सहायक भावों) के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है और वही काव्य की विशेषता है।

उनकी दृष्टि में काव्य का उद्देश्य केवल वर्णन नहीं, बल्कि भावानुभूति है, जो रस के माध्यम से संभव होती है। इस मत ने काव्य को केवल शब्दों का खेल न मानकर एक आध्यात्मिक और भावनात्मक यात्रा के रूप में देखा।


2. भामह का दृष्टिकोण: शब्दार्थ सौंदर्य

भामह ने काव्यालंकार ग्रंथ में कहा:

“शब्दार्थौ साहितौ काव्यम्।”

अर्थात् जब शब्द और अर्थ का सुंदर संयोग होता है, तब काव्य बनता है।

भामह का मानना था कि शब्द और अर्थ अकेले उपयोगी नहीं होते, बल्कि जब दोनों का उचित मेल होता है और वे सुंदरता से प्रस्तुत होते हैं, तब ही काव्य का जन्म होता है। उन्होंने अलंकारों को काव्य की शोभा माना और उन्हें काव्य लक्षण का अभिन्न अंग बताया।


3. वामन का दृष्टिकोण: रीति को आत्मा मानना

वामन ने काव्यालंकारसूत्रवृत्ति में कहा:

“रीतिरात्मा काव्यस्य।”

अर्थात्, कविता की आत्मा उसकी ‘रीति’ या विशिष्ट भाषा-शैली होती है।

वामन के अनुसार, काव्य तब जन्म लेता है जब उसमें विशिष्ट गद्य-शैली होती है, जिसमें माधुर्य, ओज, प्रसाद गुण, तथा छंद और भाषा की सुघटित संरचना होती है। उन्होंने काव्य लक्षण को शैलीगत विशेषता से जोड़ा।


4. दंडी और गुण सिद्धांत:

दंडी ने ‘काव्यादर्श’ में कहा कि काव्य वह है जिसमें गुण और अलंकार होते हैं। गुणों में मुख्यतः तीन तत्व माने गए – प्रसाद (सहजता), माधुर्य (मधुरता) और ओज (ऊर्जा)। ये गुण पाठक को आकर्षित करते हैं।

उनका मत था कि केवल अर्थ या शब्द नहीं, बल्कि भाषा की संपूर्णता और प्रभावशीलता ही काव्य को काव्य बनाती है।


5. आनंदवर्धन और ध्वनि-सिद्धांत:

आनंदवर्धन ने काव्य लक्षण को एक नई ऊँचाई दी। उन्होंने कहा:

“काव्यस्य आत्मा ध्वनि:”

अर्थात्, काव्य की आत्मा ध्वनि (व्यंजना) है। यहाँ ‘ध्वनि’ से आशय है – वह अर्थ या भाव जो स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया, पर संकेत के माध्यम से पाठक को अनुभूत होता है

उनका मानना था कि जब कविता में कोई गहरा अर्थ, संकेत, भावना या रहस्य छिपा होता है, और वह पाठक में विशेष संवेदना उत्पन्न करता है, तभी वह सच्चा काव्य होता है।

ध्वनि के तीन प्रकार बताए गए –

  1. अर्थध्वनि,
  2. शब्दध्वनि,
  3. उभयध्वनि

इस दृष्टिकोण ने काव्य को केवल सुंदरता नहीं, अंतर्भावना और गूढ़ता से जोड़ दिया।


6. अभिनवगुप्त का दृष्टिकोण: रस और ध्वनि का समन्वय

अभिनवगुप्त ने आनंदवर्धन के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए कहा:

“रसात्मकं वाक्यमेव काव्यम्।”

अर्थात, वह वाक्य जो रस उत्पन्न करे, वही काव्य है। उन्होंने काव्य को एक अनुभूति आधारित कलारूप माना, जिसमें रस की उपस्थिति अनिवार्य है।

अभिनवगुप्त के अनुसार, रस तब ही उत्पन्न होता है जब शब्दों के माध्यम से कोई छिपा हुआ भाव (ध्वनि) पाठक के अंतर्मन तक पहुँचता है।


7. विश्वनाथ और प्रबन्ध दृष्टिकोण:

विश्वनाथ कविराज ने अपने ग्रंथ साहित्यदर्पण में काव्य को इस रूप में परिभाषित किया:

“वाक्यं रसात्मकं काव्यम्।”

अर्थात, वह वाक्य (या काव्यांश) जिसमें रस की अभिव्यक्ति हो – वही काव्य है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि काव्य एक पूर्ण रचना (प्रबन्ध) होती है, जिसमें भावनात्मक संतुलन, कलात्मक भाषा और सौंदर्य का समन्वय होता है।


8. आधुनिक दृष्टिकोण:

आधुनिक युग में काव्य लक्षण को केवल परंपरागत मापदंडों तक सीमित नहीं रखा गया है। अब यह स्वीकार किया जाता है कि काव्य वह है जो मानव-मन की गहराइयों को छूता है, भले ही वह किसी परंपरागत रस, अलंकार या छंद का पालन करे या नहीं।

समकालीन आलोचकों के अनुसार, सत्य की कलात्मक अभिव्यक्ति, मानवीय अनुभवों की संवेदनशील प्रस्तुति और सामाजिक-राजनीतिक चेतना भी अब काव्य लक्षण का हिस्सा माने जाते हैं।


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