परिचय:
उपभोक्ता व्यवहार के अध्ययन में जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है, तो उपभोक्ता की मांग भी बदलती है। इस परिवर्तन को दो भागों में बाँटा जा सकता है:
- प्रतिस्थापन प्रभाव (Substitution Effect)
- आय प्रभाव (Income Effect)
प्रतिस्थापन प्रभाव यह बताता है कि जब किसी वस्तु की कीमत घटती है, तो वह वस्तु तुलनात्मक रूप से सस्ती हो जाती है और उपभोक्ता अन्य महंगी वस्तुओं की जगह उसका अधिक उपभोग करता है।
प्रतिस्थापन प्रभाव को दो प्रमुख अर्थशास्त्रियों – जॉन हिक्स (J.R. Hicks) और येवगेनी स्लत्स्की (E. Slutsky) ने अपने-अपने ढंग से समझाया है। दोनों का तरीका अलग है, लेकिन उद्देश्य एक ही है – यह जानना कि किसी वस्तु की कीमत में बदलाव से उपभोक्ता के व्यवहार में क्या परिवर्तन आता है।
1. हिक्सियन प्रतिस्थापन प्रभाव (Hicksian Substitution Effect):
हिक्सियन प्रतिस्थापन प्रभाव का सिद्धांत जॉन हिक्स ने दिया था।
इस प्रभाव को समझने के लिए हिक्स ने एक ऐसी स्थिति मानी जहाँ उपभोक्ता की संतोष स्तर (utility level) को समान बनाए रखा जाता है।
इसमें यह देखा जाता है कि जब कीमत बदलती है, और उपभोक्ता को इतना मुआवजा मिल जाता है कि वह अपनी पुरानी संतुष्टि बनाए रख सके, तो वह वस्तुओं के बीच किस तरह विकल्प चुनता है।
मुख्य बिंदु:
- संतोष स्तर (Utility) स्थिर रहता है।
- उपभोक्ता को सैद्धांतिक रूप से इतना समायोजन दिया जाता है कि वह उसी संतोष स्तर पर बना रहे।
- इसका उपयोग उपयोगिता विश्लेषण में किया जाता है।
- यह प्रतिस्थापन केवल सापेक्ष कीमतों में परिवर्तन के आधार पर होता है, आय में परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं होता।
उदाहरण:
मान लीजिए उपभोक्ता वस्तु A और B का उपभोग करता है। वस्तु A की कीमत घट जाती है।
अब हिक्स कहता है: “हम उपभोक्ता की क्रयशक्ति को इतना कम कर दें कि वह अपने पुराने संतोष स्तर पर ही बना रहे। फिर देखें कि वह A और B का नया संयोजन कैसे चुनता है।”
इससे हमें मिलेगा हिक्सियन प्रतिस्थापन प्रभाव।
2. स्लत्स्की प्रतिस्थापन प्रभाव (Slutsky Substitution Effect):
स्लत्स्की प्रतिस्थापन प्रभाव का सिद्धांत रूसी अर्थशास्त्री येवगेनी स्लत्स्की ने प्रस्तुत किया।
यह प्रभाव उस स्थिति को दर्शाता है जब उपभोक्ता की पुरानी वस्तुओं की खरीदारी की क्षमता (purchasing power) को स्थिर रखा जाता है। यानी उपभोक्ता को इतना मुआवजा दिया जाता है कि वह पुराना संयोजन (same bundle of goods) फिर से खरीद सके।
मुख्य बिंदु:
- वस्तुओं का पुराना संयोजन स्थिर रहता है।
- उपभोक्ता को उतनी ही आय दी जाती है कि वह पहले जितनी वस्तुएँ खरीद सके।
- यह अधिक व्यावहारिक (practical) तरीका है।
- यह प्रतिस्थापन कीमत में परिवर्तन और वास्तविक आय के समायोजन को दर्शाता है।
उदाहरण:
उसी उदाहरण में अगर A की कीमत घटती है, तो स्लत्स्की कहता है: “उपभोक्ता को इतनी अतिरिक्त आय दे दो कि वह पहले जितनी A और B खरीदता था, उतनी ही अब भी खरीद सके। अब देखो कि वह क्या नया संयोजन चुनता है।”
जो अंतर दिखेगा, वही होगा स्लत्स्की प्रतिस्थापन प्रभाव।
हिक्सियन और स्लत्स्की प्रतिस्थापन प्रभाव में प्रमुख अंतर:
बिंदु | हिक्सियन प्रतिस्थापन प्रभाव | स्लत्स्की प्रतिस्थापन प्रभाव |
---|---|---|
1. आविष्कारक | जॉन हिक्स (J.R. Hicks) | येवगेनी स्लत्स्की (E. Slutsky) |
2. क्या स्थिर रखा जाता है? | उपभोक्ता की संतोष स्तर (Utility) | उपभोक्ता का वस्तुओं का पुराना संयोजन (Same Bundle) |
3. मुआवजा किस आधार पर? | उपभोक्ता को इतना मुआवजा कि पुराना utility level बना रहे | उपभोक्ता को इतनी आय कि वह पहले की तरह वस्तुएँ खरीद सके |
4. ध्यान किस पर केंद्रित है? | संतोष स्तर को स्थिर रखने पर | खरीदारी की शक्ति को स्थिर रखने पर |
5. कौन-सा अधिक व्यवहारिक है? | तुलनात्मक रूप से अधिक सैद्धांतिक | अधिक व्यावहारिक और गणनात्मक |
6. ग्राफ में दर्शाना | सम उपयोगिता वक्र (Indifference Curve) पर आधारित | बजट रेखा (Budget Line) पर आधारित |
7. उपयोग | अधिकतर विश्लेषणात्मक या सैद्धांतिक मॉडल में | व्यावहारिक नीति निर्धारण और उपभोक्ता व्यवहार में |
सरल भाषा में अंतर समझिए:
- हिक्स कहता है: “चलो उपभोक्ता की खुशी (संतोष) को बराबर रखते हैं और देखते हैं वह कैसे विकल्प बदलता है।”
- स्लत्स्की कहता है: “चलो उपभोक्ता की क्रयशक्ति को बराबर रखते हैं (कि वह पहले जितनी वस्तुएँ खरीद सके) और फिर देखते हैं विकल्प कैसे बदलते हैं।”
चार्ट के माध्यम से संक्षेप:
मापदंड | Hicksian SE | Slutsky SE |
---|---|---|
Focus | संतोष (Utility) | क्रयशक्ति (Purchasing Power) |
क्या स्थिर रहता है | Utility level | Same bundle of goods |
विश्लेषण का प्रकार | सैद्धांतिक (Theoretical) | व्यवहारिक (Practical) |
ग्राफ आधार | Indifference Curve | Budget Line |